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ताइवान ने कैसे रोक लिया कोरोना का प्रकोप?

हमें फॉलो करें ताइवान ने कैसे रोक लिया कोरोना का प्रकोप?
, सोमवार, 16 मार्च 2020 (08:37 IST)
विलियम यांग/ईशा भाटिया
 
चीन के इतने करीब होने के बावजूद ताइवान में कोरोना संक्रमण के केवल 50 मामले ही सामने आए हैं। ताइवान ने ऐसा क्या किया कि नॉवल कोरोना वायरस वहां तेजी से फैल नहीं पाया?
 
चीन से शुरू हुआ नॉवल कोरोना वायरस अब 132 देशों तक पहुंच चुका है और दुनियाभर में करीब 1.50 लाख लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है। लेकिन चीन के करीब स्थित ताइवान पर इसका इतना बड़ा असर नहीं दिखा है।
जनवरी में जब संक्रमण शुरू हुआ था, तब जानकारों का मानना था कि चीन के बाद सबसे ज्यादा मामले ताइवान में ही देखने को मिलेंगे। लेकिन चीन में जहां 80 हजार से भी ज्यादा मामले सामने आए हैं, ताइवान ने इसे सिर्फ 50 मामलों पर ही रोक रखा है। जानकारों का कहना है कि ताइवान ने जिस फुर्ती के साथ वायरस की रोकथाम के लिए कदम उठाए, यह उसी का नतीजा है।
 
अमेरिका की स्टैनफॉर्ड यूनिवर्सिटी के डॉक्टर जेसन वैंग का कहना है कि ताइवान ने बहुत जल्दी ही मामले की गंभीरता को पहचान लिया था कि 2002 और 2003 में सार्स एपिडेमिक के बाद ताइवान ने नेशनल हेल्थ कमांड सेंटर स्थापित किया। यह अगली महामारी से निपटने के लिए बनाया गया था।
 
चीन में जैसे ही कोरोना पीड़ितों के मामले बढ़ने लगे, ताइवान ने बिना देर करते हुए चीन, हांगकांग और मकाऊ पर ट्रैवल बैन लगा दिया। इतना ही नहीं, ताइवान की सरकार ने सर्जिकल मास्क के निर्यात पर भी रोक लगा दी ताकि देश में इसकी कमी न हो सके।
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वैंग बताते हैं कि सरकार ने अपने संसाधनों को बहुत सोच-समझकर इस्तेमाल किया कि ताइवान की सरकार ने नेशनल हेल्थ इंश्योरेंश, इमिग्रेशन और कस्टम के डाटा का समाकलन किया। लोगों की ट्रैवल हिस्ट्री को इससे जोड़कर मेडिकल अधिकारी पता लगा पाए कि किन-किन लोगों को संक्रमण हो सकता है?
यहां तक कि ताइवान की सरकार ने ऐसे ऐप भी तैयार किए जिनके जरिए लोग देश में प्रवेश करते वक्त क्यूआर कोड को स्कैन कर अपने लक्षण और अपनी यात्राओं की जानकारी दे सकें। इसके बाद इन लोगों के फोन पर मैसेज भेजा जाता जिसे वे कस्टम अधिकारियों को दिखाते। अधिकारी इस तरह से पहचान कर पाते कि किसे प्रवेश करने देना है और किस पर नजर रखनी है?
 
वैंग बताते हैं कि नई तकनीक की मदद से ताइवान की सरकार बहुत कुछ करने में सफल हो पाई। न केवल सरकार ने अपना काम संजीदगी से किया, बल्कि ताइवान की जनता ने भी अपनी सरकार का साथ दिया। उन्हें जो भी निर्देश दिए गए, लोगों ने उनका पालन किया।
 
अमेरिका की ओरिगॉन यूनिवर्सिटी के चुनहुई ची कहते हैं कि सार्स के दौरान लोगों को बहुत-सी मुश्किलों को सामना करना पड़ा था। वे यादें अभी भी ताजा हैं। इससे लोगों में सामाजिक एकजुटता का अहसास हुआ। उन्होंने इस बात को समझा कि इस मुश्किल घड़ी में वे सब एकसाथ हैं और इसलिए सरकार जो कह रही है, उसे मानना ही सही है।
 
पिछले कुछ दशकों में ताइवान ने बायोमेडिकल रिसर्च में बहुत निवेश किया है। कोरोना वायरस कोविड-19 के मामले में भी सरकार बहुत जल्द वायरस को टेस्ट करने के सेंटर बनाने में कामयाब रही। अब वहां की टीम ऐसे टेस्ट पर काम कर रही है जिसके जरिए महज 20 मिनट में पता चल सकेगा कि टेस्ट किए गए व्यक्ति में कोरोना है या नहीं? यह अपने आखिरी चरण में है। मकसद है ऐसी टेस्ट किट तैयार करना जिससे लोग खुद अपना टेस्ट कर सकेंगे।
 
ताइवान फिलहाल विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO का हिस्सा नहीं है। चीन की लगातार कोशिश रही है कि ताइवान को इसका हिस्सा न बनने दिया जाए। लेकिन मौजूदा हालात में ताइवान सरकार संयुक्त राष्ट्र से अपने तजुर्बे साझा कर रही है और दुनिया को मदद करने के लिए तैयार दिख रही है।
 
वैंग का कहना है कि WHO को यह समझना होगा कि वैश्विक स्तर पर किसी भी महामारी का सामना करने के लिए हर देश को हिस्सा बनाना जरूरी है। ऐसे में उम्मीद है कि कोरोना महामारी के चलते ताइवान संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी का अंग बन सकेगा।

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