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शी के राज में कैसे ध्वस्त हो गया चीन का मानवाधिकार आंदोलन?

हमें फॉलो करें शी के राज में कैसे ध्वस्त हो गया चीन का मानवाधिकार आंदोलन?

DW

, मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022 (17:24 IST)
-वीके/एए (एएफपी)
 
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के 10 साल के शासन में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ा है। देश का जागृत समाज लगभग तबाह कर दिया गया है। मानवाधिकार कार्यकर्ता चार्ल्स वो वक्त याद करते हैं जब चीन में जागृत सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक बड़ा तबका फलने-फूलने लगा था। तब वह अपना समय मजदूर वर्ग के लोगों का जीवन बेहतर बनाने में लगा पा रहे थे।
 
अब वक्त बदल गया है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पद पर बैठे 10 साल हो गए हैं। इन 10 सालों में चार्ल्स और उन जैसे हजारों लोगों की बेहतर समाज बनाने की उम्मीदें धराशायी हो चुकी हैं। सामाजिक संगठनों को तहस-नहस कर दिया गया है और कुछ नया करने की कोशिशें नाकाम हो चुकी हैं। चार्ल्स खुद चीन छोड़कर जा चुके हैं जबकि उनके बहुत से साथी जेल में हैं। चार्ल्स बताते हैं कि 2015 के बाद पूरा जागृत सामाजिक तबका धराशायी होने लगा और उसमें दरारें पड़ने लगीं।
 
अमेरिका की मानवाधिकार रिपोर्ट पर चीन में हल्ला क्यों?
 
शी जिनपिंग तीसरी बार देश के राष्ट्रपति बनने की कोशिशों में लगे हैं। पिछले 10 साल से सत्ता में रहते हुए उन्होंने देश की राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्थाओं में आमूलचूल बदलाव किए हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि उनके कार्यकाल में देश के सामाजिक आंदोलनों, स्वतंत्र मीडिया और अकादमिक आजादी को बड़ा नुकसान पहुंचा है। बहुत से गैर-सरकारी संगठनों को बंद कर दिया गया है। बड़ी संख्या में मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील जेल में हैं।
 
समाचार एजेंसी एएफपी ने चीन के 8 सामाजिक कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों से बात की जिन्होंने बताया कि शी के राज में कैसे चीन की सिविल सोसायटी ध्वस्त हुई है और जो बचे हैं वे किस तरह खतरे उठाते हुए काम कर रहे हैं।
 
ये बुद्धिजीवी बताते हैं कि जो लोग काम कर रहे हैं उन्हें सुरक्षा बलों द्वारा प्रताड़ित किया जाता है। कई लोगों को पूछताछ के लिए हर हफ्ते थाने में बुला लिया जाता है। समलैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मुझसे और मेरे सहकर्मियों से कई बार 24 घंटे लगातार पूछताछ की गई है। हम लगातार और ज्यादा बेबस होते जा रहे हैं। बात चाहे धन की हो या काम करने की आजादी की या फिर निजी स्तर पर।
 
धीरे-धीरे कुचला गया आंदोलन
 
चीन की सिविल सोसायटी की यह स्थिति एकदम नहीं हुई है बल्कि यह एक लंबी प्रक्रिया रही है। कार्यकर्ताओं के लिए धीरे-धीरे मुश्किलें बढ़ती गई हैं। 2015 में '709 क्रैकडाउन' नाम के एक अभियान के तहत 300 से ज्यादा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों को गिरफ्तार कर लिया गया। इस अभियान को 709 नाम इसलिए दिया गया क्योंकि यह 9 जुलाई को शुरू किया गया था।
 
तब से बहुत से वकील या तो जेलों में बंद हैं या फिर सख्त निगरानी में जीवन जी रहे हैं। कई अन्यों को वकालत से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
 
चीन के कार्यकर्ताओं के लिए एक और बुरा दौर तब आया जब 2016 में कथित एनजीओ कानून पास किया गया जिसके तहत गैर सरकारी संगठनों पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए और उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए पुलिस को असीमित अधिकार दिए गए। पर्यावरण के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता ने बताया कि 2014 में हम विरोध स्वरूप बैनर लगा सकते थे, जमीन पर वैज्ञानिक काम कर सकते थे और पर्यावरणीय उल्लंघनों की पोल खोलने के लिए मीडिया के साथ मिलकर काम कर सकते थे।
 
नाम न छापने की शर्त पर बातचीत को तैयार हुए यह कार्यकर्ता कहते हैं कि अब हालात एकदम अलग हैं। वह कहते हैं कि अब स्थिति यह है कि कुछ भी करने से पहले हमें पुलिस को सूचित करना होता है। हर परियोजना को अब किसी सरकारी विभाग के साथ मिलकर ही चलाया जा सकता है, जो अक्सर निगरानी समिति की तरह काम करता है।
 
कई कार्यकर्ता मानते हैं कि शी जिनपिंग से पहले राष्ट्रपति रहे हू चिन थाओ के दौर के मुकाबले अब हालात में जमीन-आसमान का फर्क है। एक समलैंगिक अधिकार समूह के सदस्य कार्ल अपना पूरा नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं कि 2015 के आसपास विश्वविद्यालयों में कई समूह और संगठन उभर आए थे।
 
मी टू आंदोलन का दमन
 
2018 में जब दुनियाभर में MeToo आंदोलन शुरू हुआ तो सरकार ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के प्रति शून्य-सहिष्णुता का रुख अख्तियार कर लिया। तब दर्जनों छात्र आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। कार्ल कहते हैं कि जिन गतिविधियों की पहले इजाजत रहती थी, वे भी प्रतिबंधित कर दी गई। वैचारिक प्रसार जैसे राजनीतिक शिक्षा की कक्षाओं आदि की संख्या तेजी से बढ़ा दी गई।
 
2022 में बीजिंग की प्रतिष्ठित शिंगुआ यूनिवर्सिटी में दो छात्रों को सतरंगी झंडे बांटने के लिए आधिकारिक चेतावनी जारी की गई जबकि समलैंगिक अधिकारों के लिए काम करने वाले दर्जनों समूहों के सोशल मीडिया अकाउंट बंद कर दिए गए।
 
इन कठोर परिस्थितियों का नतीजा यह हुआ है कि बहुत से कार्यकर्ता या तो देश छोड़कर चले गए हैं या फिर उन्होंने अपना काम बंद कर दिया है। कुछ ही हैं जो तमाम तरह की प्रताड़नाओं और परेशानियों के बावजूद खुलकर काम कर रहे हैं। इक्विटी नामक मानवाधिकार संगठन के संस्थापक फेंग युआन कहते हैं कि शायद इस वक्त हम अपने निम्नतम धरातल पर हैं। लेकिन अब भी लोग लगातार बोल रहे हैं।
 
लेकिन बहुत से लोग मानने लगे हैं कि यह एक ऐसा युद्ध है जिसे जीता नहीं जा सकता। पर्यावरण के लिए काम करने वाले एक कार्यकर्ता कहते हैं कि मुझे ऐसा लगता है कि मेरी सारी कोशिशें बेकार हो चुकी हैं।Edited by: Ravindra Gupta

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