नागरिकता कानून के पास हो जाने के बाद पाकिस्तान से आए हिन्दू परिवार यहां ज्यादा खुश हैं। उनके मुताबिक वे अब आजादी से अपने धर्म का पालन कर सकते हैं। भारत ने पड़ोसी देशों से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देनी शुरू कर दी है।
7 साल पहले धर्मवीर सोलंकी पाकिस्तान के हैदराबाद शहर में अपने घर को छोड़कर भारत आ गए और उन्होंने पलटकर वापस जाने के बारे में दोबारा कभी नहीं सोचा। सोलंकी बताते हैं कि जब उनकी ट्रेन सीमा पार करते हुए भारतीय जमीन में दाखिल हुई तो उन्हें इससे ज्यादा खुशी अब तक कभी नहीं हुई थी।
बाहरी दिल्ली स्थित रिफ्यूजी कॉलोनी में सोलंकी और उनके जैसे सैकड़ों हिन्दू, मुस्लिमबहुल पाकिस्तान से आकर यहां रह रहे हैं। सोलंकी कहते हैं कि मुझे ऐसा लगता है कि मेरा दोबारा जन्म हुआ है। पाकिस्तान से आए हिन्दू परिवारों ने रिफ्यूजी कॉलोनी में अपना नया घर बना लिया है।
सोलंकी की तरह भारत में शरण चाहने वाले लोगों को पिछले साल पारित कानून के तहत सबसे ज्यादा लाभ मिला है। नए नागरिकता कानून के तहत हिन्दू, सिख, बौद्ध, पारसी, जैन और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता मिलेगी, जो साल 2015 के पहले भारत आए थे। अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में अल्पसंख्यक माने जाने वालों के लिए ही पिछले साल यह कानून बना था।
हालांकि इस सूची में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया था। धर्म के आधार पर नागरिकता देने को लेकर भारत में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। आलोचकों का कहना है कि यह कानून मुसलमानों के साथ भेदभाव और भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान को कमजोर करता है।
लेकिन पाकिस्तान के हिन्दुओं के लिए भारत में शरण देने की मोदी सरकार की प्रतिबद्धता के पहले से ही अधिक से अधिक हिन्दू भारत आ रहे हैं। यह सिलसिला नया कानून बनने के पहले से ही जारी है। पिछले 15 महीनों में भारतीय गृह मंत्रालय को 16,121 पाकिस्तानी नागरिकों से लंबी अवधि के वीजा के लिए आवेदन मिले। इसके पहले के सालों में सैकड़ों आवेदन मिलते रहे हैं, जो कि बढ़ते-बढ़ते हजारों में पहुंच गए।
इस बीच शरणार्थियों का भारत आना अस्थायी रूप से थम गया है, क्योंकि कोरोना वायरस से संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सीमा सील कर दी गई है। सोलंकी कहते हैं कि कई लोग अब भी भारत आने के लिए बेताब हैं। पाकिस्तान से आने वाले अक्सर धार्मिक यात्रा का वीजा लेकर आते हैं और उसके बाद नागरिकता मिलने तक रुक जाते हैं। सोलंकी को अब भी भारतीय नागरिकता मिलने का इंतजार है। हालांकि कोरोना वायरस के कारण प्रक्रिया में विलंब हो चुका है।
मजनूं का टीला में स्थित अपने घर पर बैठे सोलंकी समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहते हैं कि नागरिकता कानून पास हो चुका है। हमारे लोगों को जमीन मिलनी चाहिए और आम नागरिकों की तरह सुविधाएं भी मिलनी चाहिए। सोलंकी जहां रहते हैं, वहां ईंट और बल्लियों के कच्चे मकान या फिर झोपड़ी है। कॉलोनी में न तो बिजली और न ही पानी की सप्लाई है।
इस रिफ्यूजी बस्ती में 600 लोग इसी तरह से रहते हैं। कई युवा फेरी लगाने का काम करते हैं तो कुछ सोलंकी की तरह मजदूरी करते हैं। कई लोगों का कहना है कि वे पाकिस्तान में इससे बेहतर हालात में रहते थे लेकिन वे भारत में सुरक्षित महसूस करते हैं।
इस शरणार्थी कैंप से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर एक और कैंप है। सिग्नेचर ब्रिज के पास एक नई कॉलोनी हाल के सालों में बसी है। पिछले साल जुलाई तक यहां कुछेक ही झोपड़ियां थीं लेकिन अब यहां सैकड़ों लोग रहते हैं। आसपास के पेड़ों से इकट्ठा की गई लकड़ी की मदद से झुग्गियां तैयार की गईं। यहां भी बिजली और पानी की सप्लाई नहीं है। परिवार लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाते हैं।
35 साल की निर्मा बागरी कहती हैं कि कम से कम हमारी बेटियां तो यहां सुरक्षित हैं और हम यहां आजादी के साथ अपने धर्म को मान सकते हैं। कई संस्थाएं इनकी मदद के लिए खाना, कपड़े, सोलर लालटेन और अन्य घरेलू सामान दान करती हैं। (फ़ाइल चित्र)