Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

बदहाली के शिकार हैं सरकारी स्कूल

हमें फॉलो करें बदहाली के शिकार हैं सरकारी स्कूल
, बुधवार, 11 मार्च 2020 (10:57 IST)
रिपोर्ट : प्रभाकर, कोलकाता
 
देश के 40 फीसदी से भी ज्यादा सरकारी स्कूलों में न तो बिजली है और न ही खेलने का मैदान। मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति की ताजा रिपोर्ट से इसका पता चला है।
 
समिति ने स्कूल शिक्षा विभाग के बजट में 27 फीसदी कटौती के लिए भी सरकार की आलोचना की है। इस रिपोर्ट से पता चलता है कि कोई दशकभर पहले शिक्षा का अधिकार कानून के लागू होने के बावजूद सरकारी स्कूलों की हालत इतनी दयनीय क्यों है और लाखों छात्र बीच में ही स्कूल क्यों छोड़ रहे हैं?
रिपोर्ट क्या कहती है?
 
मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति ने बीते सप्ताह संसद में जो रिपोर्ट पेश की है, वह देश में सरकारी स्कूलों की दयनीय हालत की हकीकत पेश करती है। इसमें कहा गया है कि देश के लगभग आधे सरकारी स्कूलों में न तो बिजली है और न ही छात्रों के लिए खेलकूद का मैदान।
 
समिति ने स्कूल शिक्षा विभाग के लिए बजट प्रावधानों की 27 फीसदी कटौती पर भी गहरी चिंता जताई है। स्कूली शिक्षा विभाग ने सरकार से 82,570 करोड़ रुपए मांगे थे लेकिन उसे महज 59,845 करोड़ रुपए ही आवंटित किए गए।
 
सर्वेक्षण के ताजा आंकड़ों के हवाले रिपोर्ट में कहा गया है कि महज 56 फीसदी स्कूलों में ही बिजली है। मध्यप्रदेश और मणिपुर की हालत तो सबसे बदतर है। इन दोनों राज्यों में महज 20 फीसदी सरकारी स्कूलों तक ही बिजली पहुंच सकी है।
 
ओडिशा व जम्मू-कश्मीर के मामले में तो यह आंकड़ा 30 फीसदी से भी कम है। रिपोर्ट के मुताबिक देश में 57 फीसदी से भी कम स्कूलों में छात्रों के लिए खेलकूद का मैदान है। रिपोर्ट के मुताबिक आज भी देश में 1 लाख से ज्यादा सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जो अकेले शिक्षक के दम पर चल रहे हैं।
देश का कोई ऐसा राज्य नही है, जहां इकलौते शिक्षक वाले ऐसे स्कूल न हो। यहां तक कि राजधानी दिल्ली में भी ऐसे 13 स्कूल हैं। इन स्कूलों में इकलौते शिक्षक के सहारे पढ़ाई-लिखाई के स्तर का अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है।
 
रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे पर भी चिंता जताई गई है। इसमें सरकार की खिंचाई करते हुए कहा गया है कि हाल के वर्षों में हायर सेकंडरी स्कूलों की इमारत को बेहतर बनाने, नए कमरे, पुस्तकालय और प्रयोगशालाएं बनाने की प्रगति बेहद धीमी है।
 
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2019-20 के लिए अनुमोदित 2,613 परियोजनाओं में से चालू वित्त वर्ष के पहले 9 महीनों के दौरान महज 3 परियोजनाएं ही पूरी हो सकी है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि इन परियोजनाओं में ऐसी देरी से सरकारी स्कूलों से छात्रों के मोहभंग की गति और तेज हो सकती है।
 
समिति ने कहा है कि 31 दिसंबर, 2019 तक किसी भी सरकारी हायर सेकंडरी स्कूल में एक भी नई कक्षा नहीं बनाई जा सकी है। यह हालत तब तरह है जबकि वर्ष 2019-20 के लिए 1,021 नई कक्षाओं के निर्माण को मंजूरी दी गई थी।
 
इसी तरह 1,343 प्रयोगशालाओं के अनुमोदन के बावजूद अब तक महज 3 की ही स्थापना हो सकी है। पुस्तकालयों के मामले में तो तस्वीर और भी बदतर है। 135 पुस्तकालयों और कला-संस्कृति कक्षों के निर्माण का अनुमोदन होने के बावजजूद अब तक एक का भी काम पूरा नहीं हुआ है।
लगभग 40 फीसदी स्कूलों में चारदीवारी नहीं होने की वजह से छात्रों की सुरक्षा पर सवालिया निशान लग रहे हैं। रिपोर्ट में सरकार को इन स्कूलों में चारदीवारी बनाने और तमाम स्कूलों में बिजली पहुंचाने की सलाह दी गई है।
 
भारत में नरेन्द्र मोदी सरकार ने मेडिकल और इंजीनियरिंग के और भी ज्यादा उत्कृष्ट संस्थान शुरू करने की घोषणा की है। आईआईएम जैसे प्रबंधन संस्थानों के केंद्र जम्मू-कश्मीर, बिहार, हिमाचल प्रदेश और असम में भी खुलने हैं। लेकिन बुनियादी ढांचे और फैकल्टी की कमी की चुनौतियां हैं। यहां सीट मिल भी जाए तो फीस काफी ऊंची है।
 
इससे पहले एनुअल स्टेट्स ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट में कहा गया था कि सरकारी स्कूलों में 5वीं कक्षा में पढ़ने वाले 55.8 फीसदी छात्र दूसरी कक्षा की पुस्तकें तक नहीं पढ़ सकते। इसी तरह 8वीं के 70 फीसदी छात्र ठीक से गुणा-भाग नहीं कर सकते। इससे इन स्कूलों में शिक्षा के स्तर का पता चलता है।
 
वैसे केंद्र की तमाम सरकारें शिक्षा के अधिकार पर जोर देती रही हैं। इस कानून में साफ गया है कि सरकारी और निजी स्कूलों मे हर 30-35 बच्चों पर 1 शिक्षक होना चाहिए। हालांकि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में छात्र-शिक्षक अनुपात का औसत बीते 1 दशक के दौरान काफी सुधरा है। लेकिन अहम सवाल यह है कि जब देश के लगभग 13 लाख में से 1 लाख सरकारी स्कूल इकलौते शिक्षक के भरोसे चल रहे हों तो यह अनुपात बेमतलब ही है।
 
शिक्षाविदों का कहना है कि तमाम सरकारें शिक्षा के कानून अधिनियम का हवाला देकर सरकारी स्कूलों के मुद्दे पर चुप्पी साध लेती हैं। अब तक किसी ने भी इन स्कूलों में आधारभूत सुविधाओं की बेहतरी या शिक्षा का स्तर सुधारने की दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की है।
 
एक शिक्षाविद् प्रोफेसर रमापद कर्मकार कहते हैं कि सरकारी स्कूलों में आधारभूत ढांचे और शिक्षकों का भारी अभाव है। महज मिड डे मील के जरिए छात्रों में पढ़ाई-लिखाई के प्रति दिलचस्पी नहीं पैदा की जा सकती। लेकिन किसी भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया है।
 
वे कहते हैं कि जब तक सरकारी स्कूलों में आधारभूत सुविधाएं जुटाने और शिक्षकों के खाली पदों को भरने की दिशा में ठोस पहल नही होती, हालत दयनीय ही बनी रहेगी। यही वजह है कि निजी स्कूलों में छात्रों की भीड़ लगातार बढ़ रही है। (फ़ाइल चित्र)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

क्या लहसुन खाने से ख़त्म हो जाता है कोरोना वायरस?