रिपोर्ट ईशा भाटिया सानन
कोरोना संकट से बखूबी निपटने को लेकर जर्मनी की दुनियाभर में तारीफ हो रही है। देश अब कोरोना टेस्ट की क्षमता को बढ़ाकर 9 लाख प्रति सप्ताह करना चाहता है।
जर्मनी अब तक कोरोना के कुल 25 लाख टेस्ट कर चुका है। 20 से 27 अप्रैल के बीच 4,67,137 टेस्ट हुए। इससे पहले 13 से 19 अप्रैल के बीच 3,23,449 और उससे पहले के 2 हफ्तों में कुल 4,08,173 टेस्ट हुए। 1 हफ्ते में 3 से 4 लाख का आंकड़ा काफी ज्यादा लग सकता है लेकिन ऐसा तब हुआ, जब देश टेस्ट करने की क्षमता को 7 लाख तक बढ़ा चुका था। अब इसे और भी ज्यादा बढ़ाने की बात की जा रही है। ऐसे में एक तरफ देश के मेडिकल सिस्टम की सराहना हो रही है, तो दूसरी ओर संसाधनों की बर्बादी को लेकर आलोचना भी हो रही है।
टेस्ट न किए जाने की एक बड़ी वजह यह रही कि सरकार ने निर्धारित किया था कि सिर्फ उन्हीं लोगों का परीक्षण किया जाएगा जिनमें कोरोना जैसे लक्षण हों और जो किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हों। जाहिर है, टेस्ट किट की बर्बादी को बचाने के लिए ऐसा कदम लिया गया था।
कोरोना वायरस की स्थिति पर नजर बनाए हुए जर्मनी के रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट की सलाह पर ही इस तरह का नियम बनाया गया था। लेकिन इस बीच इंस्टीट्यूट ने नियमों को बदलने की बात कही है। अब हल्के से लक्षण होने पर भी टेस्ट किया जा सकेगा।
साथ ही रॉबर्ट कॉख इंस्टीट्यूट के लोथार वीलर ने चेतावनी दी है कि बिना किसी योजना के टेस्टिंग करने का कोई फायदा नहीं होगा। उनके अनुसार वृद्धाश्रमों और अस्पतालों में सबसे ज्यादा टेस्टिंग की जानी चाहिए क्योंकि यहां लोगों का संक्रमित होने का खतरा सबसे अधिक है। जर्मनी में टेस्ट न हो पाने की एक और वजह है यहां का स्वास्थ्य बीमा।
कोरोना संकट के कारण बीमा कंपनियों पर अचानक ही बहुत खर्च आ गया है और वे किसी तरह इससे बचने की कोशिश कर रही हैं। शुरुआत में तो कंपनियों ने टेस्ट का खर्च उठाने से साफ साफ इंकार कर दिया था। लेकिन संकट बढ़ता देख इसे बदला गया। इस बीच कंपनियां सिर्फ उन्हीं मामलों में खर्चा उठाने को तैयार हैं जहां मरीज में भारी लक्षण दिख रहे हों।
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जर्मनी के सरकारी न्यूज चैनल एआरडी से बातचीत में लोथार वीलर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही सरकार से बातचीत के बाद इस समस्या का समाधान भी निकाला जा सकेगा। स्वास्थ्य मंत्री येंस श्पान का भी मानना है कि बीमा कंपनियों को इस खर्च की जिम्मेदारी लेनी होगी। इतना ही नहीं उन्होंने अस्पताल में काम करने वालों के स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के लिए उनके नियमित टेस्ट कराने की भी पैरवी की है।
करीब 1 महीना पहले जर्मनी में टेस्ट किए जा रहे लोगों में से 9 फीसदी पॉजिटिव पाए गए थे, जबकि पिछले हफ्ते यह आंकड़ा गिरकर 5.4 फीसदी पर पहुंच गया। जर्मनी के लिए यह एक अच्छी खबर जरूर है लेकिन अन्य आंकड़े यह भी दिखाते हैं कि संक्रमण दर एक बार फिर बढ़ने लगी है।
लॉकडाउन नियमों में छूट दिए जाने से पहले यह दर 0.7 हो गई थी लेकिन इस बीच यह 1 पर पहुंच चुकी है यानी इस वक्त हर एक व्यक्ति एक और व्यक्ति को संक्रमित कर रहा है। चांसलर मर्केल पहले ही चेतावनी दे चुकी हैं कि संक्रमण दर के 1.3 हो जाने की स्थिति में जून तक देश के सभी अस्पताल अपनी सीमा तक पहुंच जाएंगे और सभी लोगों को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जा सकेंगी।
इस बीच जर्मनी ट्रैवल बैन को 14 जून तक बढ़ा चुका है और लॉकडाउन को भी 3 से 10 मई तक के लिए बढ़ा दिया गया है। 6 मई को चांसलर मर्केल आगे के कदमों के बारे में जानकारी देंगी।