वो देश जिसे चार हिस्सों में बांटा गया और जुड़कर वो महाशक्ति बन गया

Webdunia
बुधवार, 1 मई 2019 (12:23 IST)
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी को चार अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया गया। एकीकरण के बाद ये एक महाशक्ति बन गया। यूरोपीय संघ का सबसे बड़ा देश होने के नाते उसकी जिम्मेदारी यूरोप को साथ रखना है।
 
 
यूरोपियन संसद के चुनावों में जर्मनी की महत्वपूर्ण भूमिका है। वह यूरोपीय संघ में सिर्फ जनसंख्या के आधार पर सबसे बड़ा देश नहीं है बल्किन आर्थिक क्षमता के हिसाब से भी। इसके अलावा जर्मनी की सत्ताधारी सीएसयू पार्टी के यूरोपीय सांसद मानफ्रेड वेबर इन चुनावों में अपने संसदीय दल का नेतृत्व कर रहे हैं। चुनावों के बाद मानफ्रेड वेबर के यूरोपीय आयोग का अध्यक्ष बनने की बड़ी संभावना है। आयोग प्रमुख यूरोपीय संघ की सरकार का मुखिया होता है।
 
 
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में दुनिया का सबसे अग्रणी देश जर्मनी यूरोप में भी सबसे विकसित देशों में से है। करीब सवा आठ करोड़ की जनसंख्या और 3,57,386 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल वाले जर्मनी की राजधानी बर्लिन है। जर्मनी को जर्मन भाषा में डॉयचलैंड कहा जाता है।
 
विभाजन और एकीकरण
साल 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के चार हिस्से कर दिए गए। इन पर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस का कब्जा था। लेकिन 1949 में लोकतांत्रिक जर्मनी की घोषणा के बाद सिर्फ दो हिस्से रह गए। अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन वाले हिस्से ने मिलकर एक लोकतांत्रिक देश बना लिया जिसे फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी के नाम से जाना गया। बचे हुए हिस्से पूर्वी जर्मनी में जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक के नाम से साम्यवादी देश बना। शीतयुद्ध के दिनों पूर्वी जर्मनी सोवियत यूनियन के प्रभाव में था और पश्चिमी जर्मनी अमेरिका के प्रभाव में था।
 
 
पश्चिमी जर्मनी जल्दी विकास करने लगा और पूर्वी जर्मनी इसमें पिछड़ गया। इन असमानताओं के चलते पूर्वी जर्मनी के लोग पश्चिमी जर्मनी में आने लगे। इसको रोकने के लिए 1961 में बर्लिन में दीवार बना दी गई। इस दीवार को अवैध रूप से पार करने वाले लोगों को गोली मार दी जाती थी। ये सब 1989 तक चलता रहा। जीडीआर की 40वीं वर्षगांठ पर बढ़ते असंतोष और लोकतांत्रिक आंदोलन के बीच 1989 में दीवार गिरा दी गई। दरअसल कम्युनिस्ट पार्टी की एक घोषणा के बाद दीवार के साथ बनी सीमा चौकियां खोल दी गईं। दोनों ही ओर के लोगों ने बड़े उत्साह से इसका स्वागत किया और जल्द ही नतीजा दोनों जर्मनी का विलय के फैसले के रूप में सामने आया। विलय के बाद पूर्वी जर्मनी ने पश्चिमी जर्मनी की लोकतांत्रिक व्यवस्था अपना ली।
 
 
भारत जैसी व्यवस्था
जर्मनी की लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुत सी बातें भारत से मिलती हैं। भारत की तरह यहां भी दो सदनों वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था है। निचला सदन बुंडेस्टाग और ऊपरी सदन को बुंडेसराट कहते है। बुंडेस्टाग भारत की लोकसभा के जैसे काम करती है। लेकिन यहां सरकार बनाने का तरीका भारत से अलग है। यहां पर सरकार बनाने के लिए संसद में 50 प्रतिशत प्लस एक वोट पाना जरूरी है। चांसलर की नियुक्ति से पहले संसद में बहुमत साबित करना भी जरूरी होता है। सरकार को गिराने के लिए भी पहले नई सरकार का बहुमत तय करना जरूरी होता है।
 
 
बुंडेसराट का हिसाब भी भारत की राज्यसभा से अलग है। यह राज्यों का प्रतिनिधि सदन है और इसमें भी राज्यों की जनसंख्या के हिसाब से सीटें बांटी गई हैं। इसका सभापति किसी एक राज्य का मुख्यमंत्री होता है। वह पदेन उपराष्ट्रपति भी होता है। इसका कार्यकाल एक साल का होता है। हर राज्य के मुख्यमंत्री को क्रम के हिसाब से इस पद पर आने का मौका मिलता है। बुंडेसराट के सदस्य चुने हुए सांसद नहीं होते। अलग-अलग मुद्दों पर बहस के लिए अलग-अलग प्रतिनिधि राज्य सरकारों द्वारा बुंडेसराट में भेजे जाते हैं।
 
 
गठबंधन सरकारें
अलग-अलग विचारधाराओं वाली पार्टियों और मतदाताओं के चलते जर्मनी में अबतक गठबंधन की सरकारें ही बनती रही हैं। जर्मनी में विचारधाराओं और एजेंडे के हिसाब से अलग-अलग पार्टियां बनी हुई हैं। जर्मनी की छह मुख्य पार्टियों में अंगेला मैर्केल की क्रिस्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन सीडीयू रूढ़िवादी पार्टी है। सीडीयू की सहोदर पार्टी क्रिश्चियन सोशल यूनियन भी कंजरवेटिव पार्टी है लेकिन वह सिर्फ बवेरिया प्रांत में सक्रिय है जहां सीडीयू की कोई ईकाई नहीं है।
 
 
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी एसपीडी कामगार समर्थक मध्यमार्गी वामपंथी पार्टी है, अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी एएफडी धुर दक्षिणपंथी पार्टी है तो फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी एफडीपी व्यक्तिगत और नागरिक स्वतंत्रता का समर्थन करने वाली उदारवादी पार्टी है। दी लिंके वामपंथी पार्टी है तो ग्रीन पार्टी पर्यावरणवादी राजनीतिक विचारधारा पर चलती है। अभी जर्मनी में सीडीयू-सीएसयू और एसपीडी की गठबंधन सरकार है। जर्मनी से यूरोपियन पार्लियामेंट में 96 सदस्य चुने जाएंगे।
 
 
रिपोर्ट ऋषभ कुमार शर्मा

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