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क्या पुराने किले की खुदाई में निकलेगा प्राचीन इंद्रप्रस्थ

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, गुरुवार, 19 जनवरी 2023 (07:57 IST)
स्वाति मिश्रा
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) जल्द ही दिल्ली स्थित पुराना किला परिसर में फिर से खुदाई शुरू करने वाला है। माना जाता है कि पुराना किला परिसर जिस जगह पर मौजूद है, वहां जमीन के नीचे हजारों सालों का इतिहास दबा है।
 
एएसआई पहले भी इस जगह पर खुदाई करवा चुका है। इससे पहले सबसे हालिया खुदाई 2013-14 और 2017-18 में हुई थी। इस खुदाई का मकसद दिल्ली की "सांस्कृतिक निरंतरता" को सामने लाना है। साथ ही, पहले खोदी गईं खंदकों को संरक्षित करने पर भी ध्यान दिया जाएगा।
 
दिल्ली कई साम्राज्यों की सत्ता के केंद्र में रही है। 11वीं से 17वीं सदी के बीच यहां कई शासकों ने किलेबंदी में बसाहटें बसाईं। इतिहासकार मानते हैं कि ऐतिहासिक क्रम में दिल्ली के भीतर सात प्रमुख शहर बसे। इनके नाम हैं- लाल कोट, महरौली, सिरी, तुगलकाबाद, फिरोजाबाद, शेरगढ़, शाहजहानाबाद। पुराना किला का संबंध दिल्ली के छठे प्राचीन शहर शेरगढ़ से माना जाता है।
 
मौजूदा किले का इतिहास
दिल्ली शहर के पूर्वी छोर के पास बने इस किले का निर्माण सबसे पहले 1533 में मुगल बादशाह हुमायूं ने शुरू करवाया। यह हुमायूं द्वारा बसाये गए किलाबंद शहर दीनपनाह का हिस्सा था। बाद में शेरशाह सूरी ने हुमायूं को हरा दिया और दिल्ली पर नियंत्रण कर लिया। 1540 में शेरशाह सूरी ने इस किले का निर्माण आगे बढ़ाया। 1555 में हुमायूं ने दिल्ली को वापस जीता और इस किले का निर्माण पूरा करवाया। 1556 में अपनी मौत तक हुमायूं ने शेरगढ़ से ही शासन किया।
 
इस किला परिसर में मौजूद शेर मंडल नाम की इमारत की सीढ़ियों से गिरकर हुमांयू की मौत हुई। कई इतिहासकार मानते हैं कि यह परिसर की उन इमारतों में है, जिसे शेरशाह ने बनवाया था। दिल्ली वापस जीतने के बाद हुमांयू ने इस इमारत को अपनी लाइब्रेरी बनाया। 27 जनवरी, 1556 को हुमायूं यहीं पर था, जब उसने किला-ए-कुहना मस्जिद से आ रही अजान की आवाज सुनी। वह जल्दी में सीढ़ियां उतर रहा था, जब अपने कपड़े में उसका पांव फंसा और वो सीढ़ियों से नीचे गिर गया। यही उसकी मौत की वजह बनी। 
 
हुमायूं की मौत के बाद 1571 तक अकबर ने भी दीन पनाह से ही राज किया। इसके बाद वह अपनी राजधानी आगरा के फतेहपुर सीकरी में ले गया। राजधानी बदल जाने के बाद इस जगह की रौनक में कमी आई। जहांगीर के बाद बादशाह बने शाहजहां ने फिर से दिल्ली को राजधानी के लिए चुना तो, लेकिन दीनपनाह में आने की जगह उसने राजधानी के लिए शाहजहानाबाद बसाया।
 
पांडवों की प्राचीन राजधानी से जुड़ा मत
यहां पूर्व में हो चुकी खुदाई से पता चलता है कि इस इलाके में पहले भी बसाहट रही थी। अनुमान है कि बसाहटों का ये सिलसिला 300 ईसापूर्व तक जा सकता है। कई जानकार यह अनुमान भी लगाते हैं कि शायद पुराना किला परिसर के नीचे प्राचीन इंद्रप्रस्थ शहर के भी अवशेष मिल सकते हैं। मुगल काल के कुछ ऐतिहासिक लेखनों में भी इस बात का जिक्र मिलता है कि हुमांयू ने प्राचीन इंद्रप्रस्थ शहर की ही लोकेशन पर किला बनवाया था। संस्कृति मंत्रालय द्वारा अपनी वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, अबुल फजल ने भी अपनी किताब आईने अकबरी में यह लिखा है।
 
इंद्रप्रस्थ का जिक्र महाभारत में मिलता है। प्रचलित कहानी कुछ यूं है कि जुए में कौरवों के हाथों राजपाट गंवाने के बाद शर्त के मुताबिक, पांडवों ने अज्ञातवास पूरा किया और हस्तिनापुर लौटकर अपना हिस्सा मांगा। संघर्ष टालने के लिए युधिष्ठिर ने खांडवप्रस्थ के जंगलों में नया राज्य बसाया, जिसकी राजधानी इंद्रप्रस्थ थी। बौद्ध स्रोतों में भी इंद्रप्रस्थ का जिक्र मिलता है और इसे कुरु महाजनपद की राजधानी बताया गया है।
 
पुराना किला में 20वीं सदी के शुरुआती सालों तक लोगों की बसाहट थी। लेकिन 20वीं सदी के पहले दशक में अंग्रेजी हुकूमत ने कोलकाता से राजधानी बदलकर दिल्ली लाने का फैसला किया। एक तो कोलकाता (तब कलकत्ता) के मुकाबले दिल्ली की भौगोलिक स्थिति ज्यादा मध्य में थी। साथ ही, दिल्ली मुगलों के दौर में भी राजधानी रह चुकी थी। दस्तावेज बताते हैं कि 1914 तक पुराना किला परिसर में एक गांव हुआ करता था। अंग्रेजों के दिल्ली को राजधानी बनाने की प्रक्रिया के दौरान पुराना किला की खोयी रौनक वापस लौटी। ऐसे में वहां बसे गांव को हटाकर परिसर खाली करवा दिया गया।
 
पहले हुई खुदाई में क्या मिला
पुराना किला में पहले हो चुकी खुदाइयों में पेंटेड ग्रे वेअर (पीजीडब्ल्यू) मिले, जिन्हें लौह युग का माना जाता है। अनुमान है कि ये 600 ईसा पूर्व से 1200 ईसा पूर्व के समय के हैं और इनका संबंध गंगा के पश्चिमी मैदानों और घग्घर-हकरा घाटी की बसाहट से है। इसके अलावा यहां कई और साम्राज्यों से जुड़े अवशेष, जैसे- टेराकोटा, मूर्तियां और सिक्के भी मिल चुके हैं। साथ ही, मौर्य काल के पहले के लेयर्स के भी साक्ष्य मिले हैं।
 
यमुना नदी के नजदीक होने के कारण यह व्यापारिक गतिविधियों का एक अहम ठिकाना था। मौर्य, शुंग, कुषाण, राजपूत और मुगल काल में, यानी प्राचीन से लेकर मध्यकालीन और फिर अंग्रेजों के दौर में भी इसकी काफी अहमियत थी। इतिहासकारों के मुताबिक, यह दिल्ली की शायद इकलौती ऐसी जगह है, जहां अलग-अलग परतों में पिछले करीब ढाई हजार सालों के सांस्कृतिक अवशेष मिलते हैं।  
 
2013-14 और 2017-18 में हुई खुदाई से पहले 1954-55 और 1969-72 के दौरान भी यहां खुदाई की गई थी। इसमें एएसआई के पूर्व पुरातत्वेत्ता और पद्म विभूषण पुरस्कार विजेता बी बी लाल की अहम भूमिका मानी जाती है। बी बी लाल 1968 से 1972 तक एएसआई के निदेशक रहे थे। वह उन शुरुआती पुरातत्वेत्ताओं में गिने जाते हैं, जिन्होंने 50 के दशक में पुराना किला में खुदाई शुरू की।
 
हालांकि लाल की पुरातात्विक खुदाइयों के द्वारा रामायण और महाभारत काल से संबंध खोजने और संबंध स्थापित करने कुछ कोशिशें विवादित भी रहीं। इन्हीं अभियानों में से एक में मिट्टी के नीचे पीजीडब्ल्यू के अवशेष मिले थे। लाल ने दावा किया था कि पुराना किला, दरअसल पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ है। हालांकि इन दावों की अभी तक पुष्टि नहीं हो सकी है।
 

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