दस साल पहले रोमेनिया में अब तक के सबसे बड़े उड़ने वाले डायनोसोर का कंकाल मिला था। उड़ने वाले डायनासोर को टेरोसॉरस कहते हैं और साढ़े छह करोड़ सालों बाद भी इसके कंकाल से इसके बारे में बड़ी सारी जानकारी मिल रही हैं।
जर्मनी के म्यूनिख शहर से करीब 100 किलोमीटर दूर डायनासोर म्यूजियम में वैज्ञानिक छह करोड़ साठ लाख साल पुराने एक विशाल डायनासोर की हड्डियों को जोड़ कर उसका कंकाल तैयार करने में जुटे हैं। ये हड्डियां एक टेरोसॉरस की हैं यानि वो डायनासोर जो उड़ सकता था। ये अब तक मिले सबसे बड़े टेरोसॉरस की हड्डियां हैं।
पहली बार इसे जोड़ कर डायनासोर को संपूर्ण रूप में देखा जा सकेगा। रोमेनिया के जीवाश्म विज्ञानी माट्याश व्रेमियर ने इसे खोजा था। उन्होंने इसके पहले भी कई अहम खोज किए हैं लेकिन इस खोज पर यकीन कर पाना उनके लिए भी मुश्किल था। माट्याश व्रेमियर बताते हैं, "असल खोज तो यह समझने की थी कि हमें क्या मिल गया है। हम टेरोसॉरस के बारे में जितना जानते थे, उसकी तुलना में ये इतना बड़ा था, इतना विशाल कि मेरे दिमाग ने तो यकीन करने से ही इंकार कर दिया।"
अब तक वैज्ञानिक मानते आए थे कि टेरोसॉरस के पंख ज्यादा से ज्यादा दस मीटर तक फैल सकते हैं लेकिन इस कंकाल का आकार पंद्रह मीटर का है। यानी एक बहुत बड़े ट्रक जितना। आज अगर ये जिंदा होते तो इंसान इनकी पीठ पर बैठ कर बड़ी आसानी से उड़ सकते। ठीक वैसे ही जैसे गेम ऑफ थ्रोन्स में राजकुमारी ड्रैगन की सवारी करती है।
टेरोसॉरस का यह जीवाश्म 2009 में रोमेनिया की पहाड़ियों में मिला था। माट्याश व्रेमियर ने दूरबीन से कंकाल के एक हिस्से को देखा था। पूरे कंकाल को इन पहाड़ियों से बाहर निकालना भी काफी पेचीदा काम था। इस जीवाश्म की खोज में शामिल लोगों में जीवाश्म विज्ञानी रायमुंड आल्बेर्ट्सडॉर्फेन भी थे। वे बताते हैं कि टेरोसॉरस की हड्डियों का मिलना बहुत ही दुर्लभ है। ऐसा इसलिए क्योंकि दूसरे डायनासोर की तुलना में उड़ने वाले डायनासोर की हड्डियां बहुत नाज़ुक होती हैं।
रायमुंड आल्बेर्ट्सडॉर्फेन के मुताबिक, "हड्डियों की बाहरी परत बहुत ही पतली होती थी और हड्डियों के अंदर भी कुछ नहीं होता था, बस एक स्पंज जैसा ढांचा जो 90 फीसदी तो हवा ही था। इससे उनका वजन कम हो जाता था और उनकी उड़ने की क्षमता बहुत बढ़ जाती थी। मतलब कि ये हड्डियां बहुत हल्की होती थीं।"
अब तक इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है कि उड़ने वाले ये डायनासोर जमीन पर कैसे चलते थे। लेकिन वैज्ञानिकों का अंदाजा है कि इसके लिए इन्हें चारों पैरों की जररूत पड़ती होगी। अब पैर तो दो ही हैं तो बाकी दो का काम यह शायद पंखों को बगल में दबा कर लिया करते होंगे। अभी यह भी साफ नहीं है कि इनमें उड़ने की क्षमता कहां से आई।
कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि वे ऊंचाई वाली किसी जगह से छलांग लगाते थे, जैसा कि ग्लाइडर के साथ किया जाता है। हालांकि ऐसा भी मुमकिन है कि बड़े आकार वाले डायनासोर को उड़ने की ज़रूरत ही ना पड़ती हो क्योंकि उन्हें किसी से खतरा नहीं होता था। इस खोज के चलते डायनासोर की दुनिया के कई रहस्यों से पर्दा उठ रहा है। इसके साथ ही जर्मनी के इस म्यूजियम में आने वाले लोगों की भीड़ भी तेजी से बढ़ रही है।
रिपोर्ट: आर्नो ट्रुंपर/एनआर