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वेज-नॉन वेज नहीं, जमाना है फ्लेक्सिटेरियन का

हमें फॉलो करें वेज-नॉन वेज नहीं, जमाना है फ्लेक्सिटेरियन का
, सोमवार, 15 अक्टूबर 2018 (11:29 IST)
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर जलवायु परिवर्तन, पानी की किल्लत और प्रदूषण जैसी समस्याओं से निपटना है तो दुनिया को फ्लेक्सीटेरियन डाइट अपनानी होगी। तो जानते हैं क्या है फ्लेक्सिटेरियन डाइट।
 
 
फ्लेक्सिटेरियन की खासियत
यह वेजेटेरियन और नॉन वेजेटेरियन डाइट का मिला जुला रूप है। फ्लेक्सिटेरियन डाइट में मीट खाना पूरी तरह छोड़े बिना आपको अपने खाने में साग सब्जियों की मात्रा बढ़ानी होगी।
 
 
बढ़ता चलन
फ्लेक्सिटेरियन डाइट का चलन बढ़ रहा है क्योंकि इससे ना सिर्फ कार्बन फुटप्रिंट घटाने में मदद मिलती है बल्कि सेहत भी अच्छी रहती है। आप ज्यादातर सब्जियां खाते हैं, लेकिन कभी कभी मीट की डिश भी ले सकते हैं।
 
 
दालें और मेवे
अगर आप मीट कम खाएंगे तो आपको अपने खाने में प्रोटीन के दूसरे शाहाकारी स्रोतों को ज्यादा शामिल करना होगा। दालें, बींस, मटर और मेवे प्रोटीन की बढ़िया स्रोत हैं।
 
 
काबू रहेगा कॉलेस्ट्रोल
कई अध्ययनों में यह बात साबित हो चुकी है कि दालें और बीन्स हाई कॉलेस्ट्रोल को कम करने में मददगार होती हैं। इसीलिए इन्हें खाने की सलाह डॉक्टर लगातार देते हैं।
 
 
सेहतमंद लाइफस्टाइल
अगर आप फ्लेक्सीटेरियन खाने के साथ साथ लगातार कसरत भी करते हैं तो आपका लाइफस्टाइल सेहतमंद होगा। ब्रेस्ट कैंसर या फिर प्रोस्टैट कैंसर जैसी बीमारियां का खतरा भी इससे कम होता है।
 
 
प्रोसेस्ड मीट से बचें
वैज्ञानिकों का कहना है कि अच्छी सेहत के लिए बैकन, सॉसेज, सलामी या फिर हैम जैसे प्रोसेस्ड मीट उत्पादों से बचना चाहिए क्योंकि उनमें बहुत अधिक सैच्युरेटेड फैट और नमक होता है।
 
 
कैंसर का खतरा
प्रोसेस्ड मीट उत्पादों में ना तो ज्यादा प्रोटीन बचते हैं और ना ही खनिज तत्व। डब्ल्यूएचओ का कहना है कि हर दिन 50 ग्राम प्रोसेस्ड मीट खाने से आंत कैंसर का खतरा बढ़ता है।
 
 
धरती की खातिर
वैज्ञानिकों के मुताबिक दुनिया फ्लेक्सिटेरियन खाने को अपना ले तो ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन बहुत कम हो जाएगा। खासकर इससे कृषि के क्षेत्र में होने वाले उत्सर्जन को आधा किया जा सकता है।
 

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