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मछलियां झुंड में क्यों तैरती हैं?

हमें फॉलो करें मछलियां झुंड में क्यों तैरती हैं?
, शनिवार, 27 जनवरी 2018 (11:33 IST)
आपने अक्सर देखा होगा कि सूरज ढलने से पहले परिंदे झुंड बना लेते हैं और एक खास तरह का पैटर्न बना कर उड़ने लगते हैं। ऐसा ही कुछ चींटियां भी करती हैं। भेड़, हिरण और यहां तक कि हाथी भी झुंड बना कर चलते हैं।
 
जानवरों के इस बर्ताव को कलेक्टिव एनिमल बिहेवियर कहा जाता है। साथ चलने और झुंड में सामूहिक व्यवहार पर काफी रिसर्च हुई है। जर्मनी की कॉन्सटांस यूनिवर्सिटी में इन दिनों मछलियों के झुंड पर शोध चल रहा है। इसके लिए कोंसटांस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर इएन कूजीन ने एक बड़ा हौद बनवाया है। उसके अंदर छोटी मछलियां डाली गई हैं। हौद के अंदर रोशनी और साए वाले इलाके हैं। हौद में यदि मछलियों को देखा जाए तो पता चलता है कि मछलियां साए वाले इलाके से होकर चलती हैं और जहां तक संभव हो रोशनी वाले इलाके में जाने से बचती हैं।
 
छोटी मछलियों के लिए ये अत्यंत जरूरी सुरक्षात्मक कदम है क्योंकि रोशनी में उनकी त्वचा चमकती है और दुश्मन उन्हें देख सकते हैं। लेकिन यदि इएन कूजीन हौद में सिर्फ एक मछली को तैरने के लिए छोड़ दें तो उसे साए वाला हिस्सा दिखाई नहीं देता। छोटी मछलियां सिर्फ झुंड में उसे देख सकती हैं। प्रो। इएन कूजीन बताते हैं, "झुंड के बारे में एक मजेदार बात ये है कि वे सामूहिक अक्लमंदी दिखाते हैं। ग्रुप अक्सर ऐसी समस्याओं का हल कर लेते हैं जो उसका अकेला सदस्य नहीं कर सकता।"
 
लेकिन आखिरकार ये सामूहिक अक्लमंदी पैदा कैसे होती है? झुंड वे क्षमताएं कैसे पैदा करता है जो एक अकेली मछली के पास नहीं है? रिसर्चर लंबे समय से इस पहेली को सुलझाने में लगे हैं। वे मछलियों को तैरा कर उन पर नजर रखते हैं और इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करते हैं। लेकिन इन प्रश्नों का जवाब उन्हें एक पुरानी रूसी किताब में मिलता है। दिमित्री राडाकोव का मानना है कि समूह अपने गुण विकसित करते हैं।
 
इएन कूजीन और उनके साथी इस विचार को आधुनिक तकनीकों के सहारे जांचते हैं। रिसर्चरों ने बारकोड तैयार किया है जिन्हें वे छोटी मछलियों की पीठ पर चिपकाते हैं। इस तरह हर मछली को उसकी अपनी पहचान मिलती है। इसकी मदद से उनकी हर समय साफ तौर पर शिनाख्त की जा सकती है। उसके बाद वे मछलियों को बड़े टब में छोड़ देते हैं। उम्मीद के मुताबिक मछलियां तैरना शुरू करती हैं, एक छांव वाले हिस्से से दूसरे छांव वाले हिस्से की ओर।
 
इसके बाद उनकी वीडियोग्राफी की गई और फिर एक सॉफ्टवेयर की मदद से हर एक मछली के तैरने की राह की जांच की गई। इसमें रिसर्चरों ने देखा कि जब मछलियां साए के पास पहुंचती हैं तो धीमे तैरने लगती हैं। इएन कूजीन ने देखा कि मछलियों की रफ्तार झुंड की तस्वीर को किस तरह बदलती है।
 
वो बताते हैं, "एक बार उनकी गति को ट्रैक करने के बाद हम हरेक मछली की रफ्तार, उसके असर और मछलियों के बीच सामाजिक असर को देख सकते हैं और हम उनके बीच के संबंधों को समझ सकते हैं। ये हमें यह समझने में मदद करता है कि किस तरह सामूहिकता और उनके बीच संचार का नेटवर्क ग्रुप की समस्याओं को सुलझाने में मदद करता है। हम पाते हैं कि सामाजिक संबंध एकल मछलियों के बीच स्प्रिंग की तरह है, इस तरह यदि एक मछली साए की तरफ बढ़ती है और धीमी हो जाती है लेकिन दूसरी मछली उसी गति में आगे बढ़ती रहती है तो स्प्रिंग टाइट हो जाता है, और वह दूसरे पर ताकत का इस्तेमाल करने लगता है, साए वाले इलाके की ओर आने के लिए, हालांकि उसे पता नहीं होता कि वहां साए वाला इलाका है।"
 
स्प्रिंग मछलियों के झुंड के मूल सिद्धांतों में एक है। इस सिद्धांत के मुताबिक झुंड में जीवों को अपने पड़ोसी से बराबर समान दूरी बनाए रखना होता है। यदि कोई मछली धीमी हो जाए और पीछे रह जाए तो दूरी बढ़ने लगती है यानि स्प्रिंग खिंचने लगता है और मूल दूरी बनाए रखने का दबाव बढ़ जाता है। और साए से बाहर निकली मछली साए की ओर तैरने लगती है।
 
रिपोर्ट: आरनॉल्ड ट्रुम्पर/एमजे

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