दिल्ली के किसान पारंपरिक खेती से अलग वैकल्पिक खेती की तरफ बढ़ रहे हैं। जमीन पर खेती करने वाले किसान अब छत पर फसल उगाने के हुनर सीख रहे हैं।
उत्तरी दिल्ली में स्थित तिब्बती रिफ्यूजी कॉलोनी के पीछे यमुना नदी के किनारे पिछले तीस साल से खेती करने वाले संतोष कहते हैं कि जमीन पर खेती करने के मुकाबले छत पर खेती करना ज्यादा आसान और कम मेहनत वाला है। वह संतोष खेती के परंपरागत तरीके से आगे वैकल्पिक खेती के कौशल प्राप्त कर उत्साहित हैं।
छत पर खेती का विचार अजीब लगता है लेकिन दिल्ली में कई इमारतों की छतों पर इस तरह की खेती हो रही है। अंबेडकर यूनिवर्सिटी में फेलो इन एक्शन रिसर्च, सेंटर फॉर डेवलेपमेंट प्रैक्टिस के निशांत चौधरी के दिमाग में दिल्ली के ऐसे किसानों की मदद करने का ख्याल आया, जिनकी जमीन पर दूषित पानी से खेती होती है और उस पर दिल्ली विकास प्राधिकरण गाहे-बगाहे कार्रवाई करता है। दिल्ली में राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने यमुना किनारे खेती और कृषि से जुड़ी अन्य गतिविधियों पर रोक लगा रखी है।
निशांत चौधरी ने डॉयचे वेले को बताया, 'दिल्ली में जो किसान यमुना किनारे खेती करते हैं उन पर दिल्ली विकास प्राधिकरण की कार्रवाई का खतरा मंडराता रहता है, क्योंकि यमुना किनारे की जमीन पर केंद्र सरकार दावा करती है।' इसीलिए उन्होंने सोचा, क्यों ना विस्थापित होने वाले किसानों के लिए ऐसा मॉडल तैयार किया जाए जिससे उनकी आजीविका चलती रहे और वे आर्थिक तौर पर कमजोर होने से बचे।
कोकोपीट से खेती
निशांत बताते हैं, 'मैंने जमीन की बजाय छत पर खेती के उपायों के बारे में सोचा और रिसर्च के बाद किसानों के साथ मिलकर मॉडल तैयार किया। मैंने इसका नाम क्यारी रखा।' यह एक तरह का बस्ता होता है जो बहुत ही मजबूत मैटेरियल से बना होता है।
इसमें में नारियल का खोल (सूखा छिलका) मुख्य तौर पर डाला जाता है। छत पर ज्यादा वजन ना पड़े और पानी रिसने की समस्या ना हो इसके लिए मिट्टी का इस्तेमाल नहीं होता है। इस बस्ते में नारियल के खोल के अलावा कुछ मिश्रण और मिलाया जाता है जिससे फसल तेजी से और गुणवत्ता के साथ होती है।
इस खास बस्ते में नारियल के खोल के अलावा कई तरह के जैविक चीजें पड़ती हैं। नारियल का खोल मिट्टी के मुकाबले 10 से 15 गुणा ज्यादा हल्का होता है। इस मिश्रण में 12 और चीजें पड़ती हैं जिसे निशांत ने किसानों की मदद से तैयार किया है।
निशांत कृषि उत्पादों की मात्रा के मुकाबले गुणवत्ता पर ज्यादा जोर देते हैं। वह कहते हैं, "हम क्वालिटी का खास ध्यान रखते हैं। इन क्यारियों में केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है। हम केमिकल की जगह पारंपरिक कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं जैसे छाछ, नींबू, मिर्ची वगैरह, जो घर पर आसानी से पाई जाती है। इस कारण सब्जी की गुणवत्ता उच्चतम होती है।”
बिना मिट्टी और कम पानी से खेती
निशांत ने रिसर्च कर ऐसा मॉडल तैयार किया जिसमें मिट्टी की खपत नहीं होती और पानी भी कम से कम लगता है। निशांत बताते हैं कि उन्हें इस मॉडल की प्रेरणा केरल से मिली। छत पर खेती करने के लिए निशांत ने ऐसी क्यारी बनाई है जो वॉटर प्रूफ होती है और उससे पानी का छत पर टपकने का खतरा नहीं रहता है।
हर क्यारी में नारियल का खोल, कंपोस्ट और कुछ खास तरह की सामग्री डाली जाती है जिससे फसल अच्छी होती है। नारियल के खोल की वजह से छत पर इस खास बस्ते का वजन नहीं पड़ता है, साथ ही इस बस्ते में पानी भी कम लगता है।
उदाहरण के तौर पर चार फीट के एक बस्ते में गर्मियों के दिनों में 5 लीटर पानी दिन में दो बार लगता है जबकि सर्दियों में दो दिन में एक बार 5 लीटर पानी से काम चल जाता है। जैविक पदार्थ होने की वजह से मेहनत भी कम लगता है।
क्यारी बनाने की ट्रेनिंग लेने वाले और उस पर काम करने वाले किसान संतोष बताते हैं, "इस क्यारी की खास बात ये है कि इसमें गैरजरूरी चीजें नहीं होती, चाहे घास हो या जंगली पेड़, ये काफी हल्का होता जिससे बार-बार खुदाई की जरूरत नहीं होती। जब हम जमीन पर खेती करते हैं तो उसमें मेहनत कई गुना ज्यादा लगती है, पानी का इस्तेमाल भी ज्यादा होता है लेकिन मुझे लगता है कि भविष्य में हमें इस तरह की खेती पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।”
भविष्य की खेती
यमुना किनारे खेती करने वाले 25 किसानों को निशांत छत पर खेती करने की ट्रेनिंग दे चुके हैं। किसान अब निजी छत पर इस खास बस्ते को लगा कर वहां पैदावर को बढ़ावा दे रहे हैं।
जैविक सामग्री से लैस इन क्यारियों में किसान भिंडी, टमाटर, बैंगन, मेथी, पालक, चौलाई, पोई साग और मिर्च उगा चुके हैं। उनके मुताबिक पानी मीठा होने की वजह से सब्जियां भी स्वादिष्ट होती हैं।
कई सालों से यमुना के किनारे खेती करने वाली रजनी कहती हैं, "हम यमुना किनारे खेती के लिए जो पानी का इस्तेमाल करते हैं वह पीने लायक नहीं होता है। इससे फसल भी उतनी अच्छी नहीं होती है, लेकिन नारियल के खोल वाले बस्ते में जो उपज होती है तो वह स्वाद से भरपूर होती है। इस बस्ते में काम करने का मजा ही अलग है।”
निशांत कहते हैं कि दिल्ली में जिस तरह से खेती के लिए जमीन कम हो रही हैं भविष्य में इन क्यारियों की मांग बढ़ेगी, 4 फीट गुणा 4 फीट की चार क्यारियों लगाने पर एक परिवार अपने महीने भर की जरूरत की सब्जी उगा सकता है। एक घंटा इन क्यारियों में समय लगाने से मन लायक सब्जी उगाई जा सकती है।