सबसे अनूठी है सिक्किम की चुनावी तस्वीर

DW
गुरुवार, 11 अप्रैल 2024 (08:11 IST)
Sikkim election news : छोटे-से पर्वतीय राज्य सिक्किम में चुनाव की तस्वीर देश के दूसरे राज्यों के मुकाबले अनूठी है। यहां विधानसभा की एक ऐसी सीट भी है जो भौगोलिक नक्शे पर ही नहीं है। ऐसा देश में और कहीं नहीं है।
 
आजादी के 27 साल बाद भारत का हिस्सा बने सिक्किम में लोकसभा की महज एक और विधानसभा की 32 सीटें हैं। जाहिर है कि इस राज्य के चुनाव का राष्ट्र की मुख्यधारा की राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ता। बावजूद इसके यहां कई खासियतें हैं। यहां लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ ही होते रहे हैं। इस साल भी पहले चरण में 19 अप्रैल को राज्य में मतदान होना है। देश में सात चरणों में मतदान पूरा होने के बाद भले वोटों की गिनती चार जून को होगी। लेकिन अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में दो जून को ही वोटों की गिनती होगी। इसकी वजह यह है कि राज्य विधानसभा का कार्यकाल दो जून तक ही है।
 
राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों का असर नहीं
पश्चिम बंगाल के अलावा भूटान, चीन और नेपाल की सीमा से सटे सामरिक रूप से बेहद अहम सिक्किम के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियां चुनाव मैदान में उतरती तो हैं लेकिन उनको कभी कोई कामयाबी नहीं मिली है। वर्ष 1975 में भारत में विलय के बाद से ही यहां क्षेत्रीय दलों का बोलबाला रहा है।
 
पहले मुख्यमंत्री नर बहादुर भंडारी लंबे समय तक इस पद पर बने रहे। उसके बाद उनके सहयोगी रहे पवन चामलिंग ने सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) नाम से नई पार्टी बना कर यहां अपनी सत्ता बनाए रखी। हालांकि सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) ने पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में एसडीएफ के दबदबे को चुनौती देते हुए उसे ना सर्फ राज्य की सत्ता से बेदखल किया बल्कि इस इकलौती लोकसभा सीट पर भी कब्जा जमा लिया।
 
वर्ष1996 से लगातार इस सीट पर सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट का दबदबा रहा था। इसके साथ ही सिक्किम गोरखा प्रजातांत्रिक पार्टी, सिक्किम हिमाली राज्य परिषद और सिक्किम जन एकता पार्टी जैसे राजनीतिक दलों का भी यहां पर असर देखने को मिलता है। पिछले लोकसभा चुनाव में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने बड़ा उलटफेर करते हुए जीत हासिल की थी। इस सीट से इंद्रा हांग सुब्बा सांसद हैं।
 
इस बार इस सीट पर 14 उम्मीदवार हैं। इनमें एसकेएम के इंद्र हांग सुब्बा के अलावा भाजपा के डी।सी।नेपाल और कांग्रेस के गोपाल छेत्री शामिल हैं। एसडीएफ के पी।डी।राई के अलावा बाकी उम्मीदवार स्थानीय दलों के हैं। इस सीट पर एकमात्र महिला उम्मीदवार बीना राय निर्दलीय चुनाव लड़ रही हैं। पूर्व मुख्यमंत्री नर बहादुर भंडारी की पत्नी दिल कुमारी भंडारी लोकसभा (1991-96) में सिक्किम का प्रतिनिधित्व करने वाली अंतिम महिला थीं।
 
विकास और भ्रष्टाचार का मुद्दा
सत्तारूढ़ एसकेएम ने यहां विकास को अपना सबसे प्रमुख मुद्दा बनाया है। उधर, विपक्षी दलों ने संसद में लिंबू और तामंग समुदाय के लिए सीटों के आरक्षण और राज्य सरकार के कथित भ्रष्टाचार को अपना सबसे बड़ा मुद्दा बनाया है।
 
वर्ष 1975 में भारत में विलय के बाद यहां पहली बार 1979 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे। भारत में विलय के बाद काजी लेंदुप दोरजी राज्य के मुख्यमंत्री बने थे। उसके बाद नर बहादुर भंडारी की अगुवाई वाली सिक्किम संग्राम परिषद ने कोई 15 वर्षों तक यहां राज किया। भंडारी बाद में कई बार दल बदलते रहे। पहले चुनाव से ही स्थानीय लोग क्षेत्रीय दलों और नेताओं पर ही भरोसा जताते रहे हैं।
 
संविधान की धारा 371 (एफ) के तहत इस राज्य और यहां के लोगों को कई विशेषाधिकार हासिल हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस धारा की रक्षा के लिए राष्ट्रीय दलों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। 1975 से पहले पहले यहां चोग्याल शासकों का राज था।
 
वर्ष 2019 में सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा ने 17 सीटें जीत कर सरकार का गठन किया था। बाद में एसडीएफ के दो विधायक भी उसके साथ आ गए। तब एसकेएम ने भाजपा के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था। लेकिन इस बार वह अकेले मैदान में है। इस बार भी उसका मुकाबला एसडीएफ से ही है।
 
विधान सभा में अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 12 सीटें आरक्षित हैं। राज्य के 4।66 लाख वोटरों में करीब आधी यानी 2।31 लाख महिलाएं हैं। बावजूद इसके उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम रहा है। पिछली बार 15 महिलाएं चुनाव मैदान में थी और उनमें से तीन को जीत हासिल हुई थी। लेकिन इस बार 12 उम्मीदवारों को ही टिकट मिला है।
 
भौगोलिक नक्शे पर नहीं है एक सीट
सिक्किम विधानसभा चुनाव का जिक्र होने पर उसकी एकमात्र सीट की ही सबसे ज्यादा चर्चा होती है। राज्य विधानसभा की 32वीं सीट किसी भौगोलिक नक्शे पर नहीं है। संघ नाम की इस सीट पर मतदान राज्यभर में फैले पंजीकृत बौद्ध मठों में रहने वाले लामा या बौद्ध भिक्षु ही करते हैं। इस सीट के लिए उम्मीदवार का चयन भी उन पंजीकृत वोटरों में से ही किया जाता है। संघ विधानसभा क्षेत्र देश में अकेली ऐसी सीट है जो बौद्ध भिक्षुओं के लिए आरक्षित है। राज्य के 111 मठों में पंजीकृत बौद्ध लामा ही इस चुनाव में उम्मीदवार बन सकते हैं और वही मतदान कर सकते हैं।
 
राज्य के मुख्य चुनाव अधिकारी डी। आनंदन बताते हैं कि संघ सीट के मतदाता भी आम मतदाताओं की तरह ही अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर सकते हैं। फर्क यही है कि उनके लिए मतदान केंद्रों में अलग ईवीएम की व्यवस्था रहेगी। ऐसे मतदान केंद्रों में तीन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें रखी जाएंगी। उनमें से एक-एक लोकसभा व विधानसभा चुनावों के लिए होंगी और तीसरी संघ की सीट पर मतदान के लिए।
 
वह बताते हैं कि राज्य के 51 मतदान केंद्रों में यह व्यवस्था की गई है। इस सीट के लिए 111 बौद्ध मठों में करीब तीन हजार मतदाता है।
 
पिछली बार विपक्षी सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा (एसकेएम) के उम्मीदवार के तौर पर वर्ष 2014 और 2019 में लगातार दो बार संघ की सीट जीतने वाले सोनम लामा बताते हैं कि इस सीट का इतिहास सदियों पुराना है। भारत में विलय से पहले यहां आम लोगों और बौद्ध लामाओं में से ही मंत्री चुने जाते थे। इस बार विपक्षी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ) के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे शेरिंग लामा कहते हैं कि मंत्रिमंडल में लामाओं के प्रतिनिधित्व की परंपरा वर्ष 1640 में चोग्याल राजाओं के शासनकाल से ही चली आ रही थी।
 

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