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तीन गुना ज्यादा तेजी से पिघल रही है पृथ्वी की बर्फ

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DW

, मंगलवार, 25 अप्रैल 2023 (07:58 IST)
ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक पर बिछी बर्फ की चादर 30 साल पहले की तुलना में हर साल तीन गुना ज्यादा पिघल रही है। 50 अलग अलग सेटेलाइटों से ली गई तस्वीरों का इस्तेमाल कर वैज्ञानिकों की एक टीम ने यह जानकारी हासिल की है।
 
ग्रीनलैंड की बर्फ तो पिछले कुछ सालों में पिघलने के मामले में सबको पीछे छोड़ रही है। 2017 से 2020 के बीच ग्रीनलैंड की बर्फ इस दशक के शुरुआत की तुलना में सालाना 20 प्रतिशत ज्यादा की दर से पिघली है। इतना ही नहीं 1990 के दशक के शुरुआती सालों की तुलना में यह सात गुना ज्यादा है।
 
रिसर्च रिपोर्ट के सह-लेखक रुथ मोतराम का कहना है कि नये आंकड़े, "सचमुच विनाशकारी हैं, हम ग्रीनलैंड की ज्यादा से ज्यादा बर्फ गंवा रहे हैं।" रिसर्च रिपोर्ट की प्रमुख लेखिका इनेस ओतोसाका का कहना है कि बर्फ के तेजी से पिघलने के पीछे निश्चित रूप से इंसानी गतिविधियों के कारण हो रहा जलवायु परिवर्तन है।
 
कितनी पिघली है बर्फ
1992 से 1996 के बीच बर्फ की दो चादरों से तकरीबन 116 अरब टन बर्फ हर साल पिघली। इनमें से दो तिहाई अंटार्कटिक से थी। इन दोनों चादरों में दुनिया के ताजे पानी की 99 फीसदी बर्फ है। ताजा आंकड़े दिखा रहे हैं कि 2017 से 2020 के बीच यहां से करीब 410 अरब टन बर्फ पिघल गई। इसमें से दो तिहाई हिस्सा ग्रीनलैंड की बर्फ का है।
 
रिसर्च टीम में शामिल ट्वीला मून यूएस नेशनल स्नो एंड आइस सेंटर की डेपुटी लीड साइंटिस्ट हैं। उनका कहना है, "यह विनाशकारी रास्ता है, इस दर से बर्फ का खत्म होना आधुनिक सभ्यता में अभूतपू्र्व है।" रिसर्च से पता चला है कि इन दोनों बर्फ की चादरों में से 1992 से अब तक पृथ्वी पर 8।3 लाख करोड़ टन बर्फ पिघल चुकी है।
 
इतनी बड़ी मात्रा में बर्फ पिघलने से निकला पानी पूरे अमेरिका को 33।6 इंच पानी वाली बाढ़ ला सकता है या फ्रांस को15 मीटर ऊंचे पानी में डूबो सकता है।
 
सागरों में बढ़ता पानी
धरती पर विशाल महासागरों की मौजूदगी के चलते 1992 से अब तक पिघली बर्फ के कारण सागर का जलस्लतर  औसत रूप से एक ईंच से भी कम ऊपर गया है। वैश्विक रूप से महासागरों का जलस्तर ऊपर जा रहा है। पहले महासागरों के जलस्तर के बढ़ने में बर्फ के पिघलने का सिर्फ 5 फीसदी योगदान था जो अब बढ़ कर एक चौथाई से ज्यादा हो गया है। बाकी का हिस्सा गर्म पानी के विस्तार और ग्लेशियरों के पिघलने से होता है।
 
नासा और यूरोपीय स्पेस एजेंसी के संयुक्त प्रयासों से बनी 65 वैज्ञानिकों की एक टीम निरंतर बर्फ के पिघलने पर नजर रखती है। ये वैज्ञानिक 17 अलग अलग सेटेलाइट मिशन का उपयोग करते हैं और तीन अलग अलग तरीकों से बर्फ के पिघलने का अध्ययन करते हैं। ओतोसाका ने बताया कि सारे सेटेलाइट, रडार, ग्राउंड ऑब्जर्वेशन और कंप्युटर सिम्युलेशन बुनियादी रूप से एक ही बात कह रहे हैं कि बर्फ की चादर का पिघलना तेज हो रहा है।
 
रिसर्चरों ने गुरुत्वाकर्षण और बर्फ की ऊंचाई में आये बदलाव का इस्तेमाल कर यह मापा कि कितनी बर्फ गिरी और कितनी पिघली। बर्फ के पहाड़ों के टूटने से कितनी बर्फ पिघली और नीचे से आने वाले गर्म पानी की वजह से कितनी बर्फ गायब हुई। कोलोराडो यूनिवर्सिटी के आइस रिसर्चर और नासा के चीफ साइंटिस्ट वलीद अब्दालती का कहना है, "यह महत्वपूर्ण है क्योंकि सागरों का बढ़ता जलस्तर करोड़ों लोगों को विस्थापित करेगा या फिर उनकी आर्थिक स्थिति पर असर डालेगा और इसकी कीमत एक दो अरब नहीं हजारों अरब डॉलर में होगी।
 
लंबे समय से वैज्ञानिक मानते आ रहे थे कि बर्फ के ये विशाल भंडार बहुत धीरे धीरे बदलते हैं। नये उपकरणों की मदद से हुई खोजों ने दिखाया है कि यह बदलाव बहुत ज्यादा तेजी से हो रहा है, जिससे चिंता बढ़ रही है।
 
एनआर/सीके (एपी)

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