कौन बनेगा मुख्यमंत्री: कांग्रेस की स्थायी समस्या
, मंगलवार, 16 मई 2023 (07:56 IST)
चारु कार्तिकेय
Karnataka Political News : कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री चुनना कांग्रेस पार्टी के लिए अगली चुनौती बन गई। प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार (DK Shivkumar) और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (Siddarmaiah) दोनों पद पाने के इच्छुक हैं और दोनों में से कोई भी अपनी दावेदारी से पीछे हटने को इच्छुक नहीं है।
ऐसे में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ेगा और या तो दोनों में से किसी एक को चुनना पड़ेगा या समझौते का कोई फार्मूला निकालना पड़ेगा। लेकिन राज्य स्तर के नेताओं के बीच मुख्यमंत्री पद के लिए खींचतान पार्टी के लिए स्थायी समस्या बन गई है।
यही हुआ था छत्तीसगढ़ में
इस समय राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ऐसी ही खींचतान चल रही है और हाल के सालों में दूसरे राज्यों में भी इसी तरह की लड़ाई देखी गई है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इसी साल चुनाव होने वाले हैं लिहाजा इन दोनों राज्यों में पार्टी ने अगर स्थिति पर जल्दी काबू नहीं पाया तो उसे चुनावों में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
राजस्थान में सचिन पायलट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं लेकिन पार्टी उन्हें लेकर पशोपेश की स्थिति में नजर आ रही है। ना तो पायलट की शिकायतों को माना जा रहा है और ना उनके खिलाफ अनुशासनहीता के आधार पर कार्रवाई की जा रही है।
छत्तीसगढ़ में 2018 भी पार्टी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंघदेव के बीच बंटी हुई थी। 2018 में राज्य में ठीक वैसे ही दृश्य देखने को मिल रहे थे जैसे आज कर्नाटक में दिखाई दे रहे हैं।
पार्टी विधानसभा चुनाव जीत चुकी थी लेकिन दोनों नेता मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी अपनी दावेदारी पर डटे हुए थे। तब ढाई-ढाई साल का एक फार्मूला निकाला गया था जिसके तहत तय हुआ था कि पहले ढाई सालों के लिए बघेल मुख्यमंत्री रहेंगे और उसके बाद ढाई सालों के लिए सिंघदेव।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि बघेल ने ढाई सालों के बाद पद नहीं छोड़ा और तब से लेकर अभी तक दोनों नेताओं के खेमों में झगड़ा चल रहा है लेकिन पार्टी हाई कमांड झगड़े को सुलझा नहीं पाया है।
झगड़े से गंवाई सत्ता
इससे पहले 2021 में पंजाब विधानसभा चुनाव के पहले वहां भी तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच भी ऐसी ही खींचतान चल रही थी।
आपसी मतभेदों का पार्टी को इतना नुकसान हुआ कि पार्टी चुनाव भी हार गई और सिंह ने पार्टी भी छोड़ दी। उन्होंने शुरू में अपनी नई पार्टी बनाई लेकिन बाद में अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर दिया और खुद भी बीजेपी में शामिल हो गए।
एक नजर मध्य प्रदेश पर भी डाल लेते हैं। 2018 में ही वहां भी चुनाव हुए थे जो कांग्रेस ने जीते थे। उस समय कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे और हाई कमांड ने साथ दिया कमलनाथ का।
लेकिन मुश्किल से डेढ़ साल के अंदर सिंधिया ने 22 विधायकों के साथ पार्टी से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस की सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी राज्य में फिर से सत्ता में आ गई।
भारतीय राजनीति के जानकार इसे कांग्रेस की संगठनात्मक कमी के रूप में देखते हैं। वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह स्पष्ट रूप से कांग्रेस में केंद्रीय नेतृत्व के कमजोर होने का ही नतीजा है, जैसा इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के जमाने में नहीं था।
कम लोकतंत्र या ज्यादा?
हालांकि उन्होंने माना कि एक मजबूत केंद्रीय नेतृत्व भी कई बार पार्टी के संगठन का नुकसान कर बैठता है, इसलिए दोनों रास्तों के बीच के मार्ग को तलाशने की जरूरत है।
उन्होंने यह भी कहा कि इसके अलावा कांग्रेस पार्टी को मध्यस्थता में कुशल नेताओं की भी सख्त जरूरत है जो अलग अलग राज्य में ऐसे हालात में लड़ रहे नेताओं को समझा सकें और समस्या का समाधान निकाल सकें।
वहीं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने डीडब्ल्यू को बताया कि कांग्रेस में लोकतांत्रिक केन्द्रवाद नहीं है बल्कि अराजकता की हद तक लोकतंत्र है। उन्होंने सीपीएम का उदाहरण देते हुए कहा कि ज्योति बसु जैसे नेता प्रधानमंत्री पद स्वीकार नहीं करने का अपनी पार्टी का आदेश इसलिए नहीं टाल पाए क्योंकि वह पार्टी में बहुमत से लिया गया फैसला था।
उर्मिलेश कहते हैं, "मैं नहीं चाहूंगा कि कांग्रेस में सीपीएम जैसा लोकतंत्र आए लेकिन इस समस्या का सीधा इलाज है नेतृत्व के फैसले को राज्यों के विधायक दल पर छोड़ देना। विधायक दल जिसे चुने उसे मुख्यमंत्री बनने दिए जाए।"
कई समीक्षक अक्सर कांग्रेस वर्किंग कमिटी (सीडब्ल्यूसी) के लोकतंत्रीकरण की जरूरत को भी रेखांकित करते हुए कहते हैं। रामाशेषन भी इस बात का समर्थन करते हुए कहती हैं कि सीडब्ल्यूसी ही नहीं अगर पार्टी में हर स्तर पर निष्पक्ष तरीके से चुन कर आए नेताओं को ही नियुक्त किया जाए तो उससे भी इस समस्या का अंत करने में मदद मिल सकती है।
अगला लेख