क्या चीन अमेरिका की जगह ले सकता है
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय संगठनों से बाहर निकाल रहे हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि चीन इस खाली जगह को भरने के लिए सामने आएगा। क्या चीन अमेरिका की जगह ले सकता है?
-शामिल शम्स | मू चुई
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका को अंतरराष्ट्रीय संगठनों से बाहर निकाल रहे हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि चीन इस खाली जगह को भरने के लिए सामने आएगा। क्या चीन अमेरिका की जगह ले सकता है? क्या वह सचमुच ऐसा करना चाहेगा? अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वैंस के इस साल म्युनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में शामिल होने की वजह से कॉन्फ्रेंस पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों का खूब ध्यान गया, खासतौर से यूरोपीय नेताओं का।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी ने यूरोपीय संघ के देशों को काफी उलझन में डाल रखा है। उनके अंदर अनिश्चितता की भावना को कॉन्फ्रेंस में भी बखूबी महसूस किया गया। इसलिए सारी नजरें वैंस पर टिकी थीं कि वह उन चिंताओं को कैसे दूर करते हैं।
शुक्रवार को जेडी वैंस के भाषण ने इस मामले में अगर कुछ किया तो वो चिंता बढ़ाने का ही था। यूरोप की तीखी आलोचना ने कॉन्फ्रेंस में शामिल होने वाले कई लोगों का मूड बिगाड़ दिया। जर्मन रक्षा मंत्री पिस्टोरियस ने उनकी बातों को 'अस्वीकार्य' बताया तो यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने यहां तक सलाह दे डाली, 'यूरोप और अमेरिका का दशकों पुराना रिश्ता अब खत्म हो रहा है।'
इस बीच चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी म्युनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया। उनका रुख यूरोपीय देशों के प्रति ज्यादा समझदारी और समाधान वाला था। उन्होंने कहा कि उनका देश यूरोप को प्रतिद्वंद्वी नहीं सहयोगी के रूप में देखता है। वांग यी ने यूक्रेन-रूस शांति वार्ता में 'रचनात्मक भूमिका' निभाने का भी प्रस्ताव दे दिया।
वांग यी ने जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स से कहा कि चीन वैश्विक शांति और स्थिरता को बनाए रखने के सकारात्मक द्विपक्षीय कोशिशों के तहत जर्मनी के साथ 'हर तरफ सहयोग' बढ़ाना चाहता है।
चीन के लिए बढ़िया मौका
ट्रंप के शासन में अमेरिका का अपनी ओर देखना बढ़ता जा रहा है। अमेरिका अंतरराष्ट्रीय संगठनों और समझौतों से बाहर निकल रहा है और नाटो से बाहर जाने की धमकी दे रहा है। दूसरी तरफ चीन वैश्विक मामलों में ज्यादा दिलचस्पी ले रहा है और अपनी भूमिका बढ़ा रहा है।
तो क्या इसका एक मतलब यह निकाला जाए कि चीन अब अमेरिका की जगह दुनिया का पंच बनना चाहता है?
हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और चीन के विशेषज्ञ ग्राहम एलिसन ने म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस के दौरान डीडब्ल्यू से कहा, 'मेरी राय में सवाल बढ़ती ताकत का नहीं है, चीन जो हो सके वह बनना चाहता है। अगर अमेरिका व्यापार समझौतों से बाहर निकलता है तो जो चीन जैसे देश जो आर्थिक रूप से आगे बढ़ने के लिए इन समझौतों को चाहते हैं, उस खाली जगह को भरेंगे।'
एलिसन ने कहा कि अगर ट्रंप अंतरराष्ट्री संस्थाओं से बाहर निकलते रहे तो, 'चीन आगे निकल जाएगा। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यह देख लिया है कि वहां काफी ज्यादा मौका बन रहा है और अगर अमेरिका ने अपना दांव ठीक से नहीं खेला तो बीजिंग के लिए सफलता आसान हो जाएगी।'
चीन एशिया और अफ्रीका समेत दुनिया के कई हिस्सों में भारी निवेश कर रहा है। इससे इन इलाकों में उसकी पकड़ बीते दशकों में मजबूत हुई है। चाहे अफगानिस्तान हो या फिर मध्य पूर्व, चीन ने वहां अपने प्रभाव का इस्तेमाल विवादों की मध्यस्थता में किया है।
क्या यूरोप और चीन साथ आ सकते हैं?
पेकिंग यूनिवर्सिटी में चाइना सेंटर फॉर इकोनॉमिक रिसर्च के निदेशक याओ यांग ने डीडब्ल्यू से कहा कि अगर यूरोप करीबी संबंध चाहता है तो उसे चीन के प्रति स्वतंत्र नीति अपनाने की जरूरत है।
याओ का कहना है, 'अगर अमेरिका अपने घरेलू मुद्दों को ज्यादा प्रमुखता देना चाहता है तो यूरोप को भी यही करना चाहिए। उसे अपनी रक्षा के लिए यही करना चाहिए और अपनी विदेश नीति के लिए भी। चीन और यूरोप के लिए साथ मिलकर करने को बहुत कुछ है।'
हालांकि चीन का रूस से करीबी रिश्ता इस मामले में बाधा बन सकता है। चीन ने हाल ही में ट्रंप के रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ यूक्रेन में युद्ध खत्म करने पर बातचीत करने का स्वागत किया है। चीन ने यह भी कहा कि वह अपनी भूमिका निभाना चाहता है।
एलिसन का कहना है, 'चीन खुद को शांति कायम करने वाले के रूप में दिखाना चाहता है कि वह युद्ध के पक्ष में नहीं है और युद्ध खत्म करने की मुहिम में शामिल होना चाहता है।' याओ का मानना है कि यूक्रेन में रूसी युद्ध का खत्म होना चीन के आर्थिक हित में है। उन्होंने ध्यान दिलाया, 'चीन रूस और यूक्रेन दोनों से व्यापार करता है। तो बीजिंग निश्चित रूप से इलाके में शांति के लिए दबाव बनाना चाहेगा।'
हालांकि यूरोप के लिए चीन पर भरोसा करने कि लिए यह जरूरी होगा कि शी उस समझौते का समर्थन न करें, जो उनके हितों के खिलाफ हो। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने म्युनिख में यूरोपीय नेताओं को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि उस पर विश्वास किया जा सकता है और अगर सभी पक्ष मिलकर बातचीत करें तो यूक्रेन में शांति आ सकती है।