2008 की विश्वव्यापी मंदी ने दुनियाभर में लाखों लोगों को परेशान किया। क्या यूरोप की अर्थव्यवस्था फिर से उसी तरफ फिसल रही है। यूरोपीय संघ ने चेतावनी दी है कि इन सर्दियों में यूरो मुद्रा वाले 19 देशों का समूह यूरोजोन आर्थिक मंदी का सामना करेगा। इस मंदी के लिए महंगाई और ईंधन की ऊंची कीमतों को जिम्मेदार बताया जा रहा है। ब्रिटेन भी मंदी में फंसने लगा है।
यूरोपीय संघ के अधिकारियों के मुताबिक 2020-2021 में कोविड-19 महामारी ने आर्थिक गतिवधियों को भारी दबाव में डाला। महामारी से जरा राहत मिलते ही रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। यूक्रेन युद्ध के बाद से दुनियाभर के बाजारों में जीवाश्म ईंधन और गैस महंगी हो गई है। इसका सीधा असर मांग, ट्रांसपोर्ट, प्रोडक्शन और बिजली उत्पादन पर पड़ा है। यूरोपीय संघ के आर्थिक कमिश्नर पाओलो जेंतिलोनी के मुताबिक हमारे सामने कुछ मुश्किल महीने हैं। ऊर्जा के ऊंचे दाम, तेज महंगाई अब अपना असर दिखाने लगे हैं।
महंगाई अभी और दबाव डालेगी
28 देशों के समूह यूरोपीय संघ के अधिकारियों का कहना है कि 2022 की आखिरी तिमाही में यूरोप में महंगाई अपने चरम बिंदु तक पहुंच सकती है। यूरोपीय आयोग के मुताबिक 2023 की पहली तिमाही तक आर्थिक गतिविधियां चरमराती रहेंगी। उम्मीद है कि यूरोप में वसंत में विकास फिर लौट आएगा।
महंगाई को प्रमुख कारण बताते हुए आयोग ने कहा कि पीछे धकेलने वाली ताकत के कारण मांग अब भी सुस्त पड़ी है। आर्थिक गतिविधियां भी खाली पड़ी हैं, 2023 में विकास दर 0.3 फीसदी तक जा सकती है।
जर्मनी की चिंताएं ज्यादा बड़ी
दुनिया की चौथी और यूरोपीय संघ की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी पर मंदी का सबसे बुरा असर पड़ने जा रहा है। अनुमानों के मुताबिक आर्थिक विकास के उलट जर्मनी की जीडीपी अगले साल भी 0.6 कमजोर होगी। महंगाई और चीन के साथ कारोबार में आ रही परेशानियां इसकी बड़ी वजहें हैं।
चीन, जर्मनी का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है लेकिन जीरो कोविड नीति के कारण चीन के अहम आर्थिक केंद्र बीच बीच में लॉकडाउन से गुजर रहे हैं। चीन में जर्मन मशीनरी की मांग कमजोर होने का असर जर्मनी पर दिख रहा है। घरेलू बाजार में ऊर्जा की ऊंची कीमतों ने लोगों को पैसा बचाने पर मजबूर कर दिया है।
जर्मनी में उपभोक्ताओं के लिए बनाए जाने वाले उत्पादों में इस वक्त 10.4 फीसदी महंगाई दर है। जर्मनी के एकीकरण के बाद ऐसा पहली बार हुआ है। सितंबर में यह दर 10 फीसदी थी, जो अक्टूबर अंत में 10.4 फीसदी हो गई। 70 साल बाद यह पहला मौका है, जब महंगाई की ये दर महीनेभर के भीतर इतनी तेजी से ऊपर गई है। ये आंकड़े जर्मनी के संघीय सांख्यिकी विभाग ने जारी किए हैं।
जर्मनी के केंद्रीय बैंक, बुंडेसबांक ने फरवरी में ही मंदी का ऐलान कर दिया था लेकिन तब यही उम्मीद जताई जा रही थी कि कुछ महीनों बाद हालात ठीक हो जाएंगे। अब नजरें अगली उम्मीद पर हैं।
एक्स मेम्बर की हालत भी खस्ता
ब्रेक्जिट निर्णय के साथ यूरोपीय संघ से अलग होने वाला ब्रिटेन भी मंदी में फंसने लगा है। सितंबर में खत्म हुई तिमाही में देश की जीडीपी 0.2 फीसदी गिरी। अकेले सितंबर में ही यह गिरावट सबसे ज्यादा थी। महारानी क्वीन एलिजाबेथ के निधन के दौरान अतिरिक्त अवकाश और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिरावट को इसका जिम्मेदार माना जा रहा है।
यूक्रेन युद्ध के कारण ब्रिटेन में 40 साल बाद महंगाई चरम स्तर पर है। मंदी से बचने के लिए देश के केंद्रीय बैंक, द बैंक ऑफ इंग्लैंड ने नवंबर के पहले हफ्ते में ब्याज दर को बढ़ाकर 3 फीसदी कर दिया। 30 साल बाद बैंक ऑफ इंग्लैंड ने ब्याज दरें इतनी ऊंची की हैं। कहा जा रहा है कि यही ब्याज दर अब लंबी मंदी का कारण बनेगी।
हाल में प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने वाली लिज ट्रस की आर्थिक नीतियों ने भी मुश्किलों को कई गुना बढ़ाया है। 23 सितंबर को तत्कालीन ब्रिटिश पीएम लिज ट्रस ने बड़े टैक्स कट की घोषणा की। राजस्व की कमी से जूझ रही सरकार ने यह नहीं बताया कि कटौती की भरपाई करने के लिए पैसा कहां से आएगा?
कुछ ही दिनों के भीतर ट्रस को इस फैसले को पलटना पड़ा लेकिन तब तक निवेशकों का भरोसा डगमगा चुका था। कई दशकों बाद अमेरिका में भी महंगाई रिकॉर्ड स्तर पर हैं। अमेरिकी संसद के मध्यावधि चुनावों में यह बड़ा मुद्दा है।
Edited by: Ravindra Gupta
-ओएसजे/ एनआर (एएफपी, रॉयटर्स)