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पोलैंड: गर्भवती महिला की मौत के बाद अबॉर्शन कानून पर फिर बहस छिड़ी

हमें फॉलो करें पोलैंड: गर्भवती महिला की मौत के बाद अबॉर्शन कानून पर फिर बहस छिड़ी

DW

, बुधवार, 3 नवंबर 2021 (12:02 IST)
पोलैंड में लगभग पूरी तरह अबॉर्शन पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून के कारण हुई पहली संभावित मौत के बाद देशभर में प्रदर्शनकारी गुस्से में हैं। हालांकि सरकार ने इन दोनों बातों में संबंध होने से इंकार किया है। मंगलवार को पोलैंड की राजधानी वॉरसा में कॉन्स्टिट्यूशनल ट्राइब्यूनल के सामने प्रदर्शनकारियों ने मोमबत्तियां जलाकर प्रदर्शन किया। ये लोग पिछले साल लागू किए गए उस कानून का विरोध कर रहे हैं जिसे यूरोप का सबसे सख्त अबॉर्शन कानून माना जाता है।
 
हाल ही में एक महिला को अस्पताल में भर्ती कराया गया था, क्योंकि उसके गर्भ में द्रव्य की कमी थी। चिकित्सा अनाचार के मामलों की विशेषज्ञ वकील योलांटा बड्जोवस्का ने मीडिया को बताया कि डॉक्टरों ने उस महिला का अबॉर्शन करने के बजाय भ्रूण के मर जाने का इंतजार किया। बाद में उस महिला की मौत हो गई।
 
सोमवार को कुछ प्रदर्शनकारियों को टीवी सीरीज 'हैंडमेड्स टेल' जैसे लाल चोगे पहने देखा गया था। यह एक प्रतीकात्मक विरोध था, क्योंकि इस टीवी सीरीज में एक ऐसा समाज दिखाया गया है जिसमें महिलाओं का सिर्फ प्रजनन के लिए प्रयोग किया जाता है।
 
कानून पर बहस
 
अस्पताल का कहना है कि डॉक्टरों और नर्सों ने महिला की जान बचाने के लिए हरसंभव कोशिश की। 30 वर्षीय इस महिला की मौत अपनी गर्भावस्था के 22वें सप्ताह में हुई। इजाबेला नाम की इस महिला की मौत तो सितंबर में ही हो गई थी लेकिन यह मामला सार्वजनिक बीते शुक्रवार किया गया।
 
प्रजनन अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि पोलैंड में अबॉर्शन कानून के कारण यह पहली मृत्यु है। हालांकि नए कानून के समर्थकों का कहना है कि महिला की मृत्यु का कारण कानून ही है, ऐसा पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता और कानून विरोधी कार्यकर्ता हालात का फायदा उठा रहे हैं। कानून विरोधी कार्यकर्ताओं ने वॉरसा और कराकाव के अलावा कई जगह प्रदर्शन किए।
 
जिस अस्पताल में इजाबेला की मौत हुई, उसने मंगलवार को एक बयान जारी कर कहा कि उसे महिला की मृत्यु का अफसोस है और वे इस दुख में शामिल हैं। महिला की एक बेटी और है, जो अब अपने पिता के पास है। दक्षिणी पोलैंड के इस काउंटी अस्पताल ने कहा कि जो चिकित्सीय प्रक्रिया अपनाई गई, उसका एकमात्र मकसद मरीज और भ्रूण की सेहत और जीवन की सुरक्षा थी। डॉक्टरों और नर्सों ने मरीज और उसके बच्चे के लिए एक मुश्किल लड़ाई लड़ी और अपनी हरसंभव कोशिश की।
 
सत्ताधारी पार्टी की एक मुख्य सदस्य मारेक सुस्की ने कहा कि इस मामले का कोर्ट के फैसले से कोई संबंध नहीं है। सरकारी टीवी पर सुस्की ने कहा कि चिकित्सीय गलतियां होती हैं। दुर्भाग्य से अब भी मांओं की डिलीवरी में मौत होती है। लेकिन इसका ट्राइब्यूनल के फैसले से कोई संबंध निश्चित तौर पर नहीं है।
 
डरने लगे हैं डॉक्टर
 
कानून विरोधी कार्यकर्ताओं का कहना है कि सैद्धांतिक रूप से महिला का अबॉर्शन तभी हो जाना चाहिए था, जब गर्भ के कारण उसकी जान को खतरा हुआ लेकिन अबॉर्शन कानून के कारण अब डॉक्टर डरने लगे हैं। इंटरनेशनल प्लान्ड पैरंटहुड फेडरेशन की आइरीन डोनाडियो ने कहा कि जब कानून बहुत दमनकारी हों और डॉक्टरों पर पांबदियां लगाते हों तो वे कानून की व्याख्या में और ज्यादा कठोरता बरतते हैं ताकि निजी तौर पर खुद किसी खतरे में न पड़ जाएं।
 
नया कानून लागू होने से पहले पोलैंड में महिलाएं 3 परिस्थितियों में अबॉर्शन करा सकती थीं। पहला तब, जबकि गर्भ ठहरने की वजह बलात्कार जैसा कोई अपराध हो। दूसरा यदि महिला की जान खतरे में हो और तीसरा, भ्रूण में गंभीर विकृतियां हों। पोलैंड की रूढ़िवादी सत्ताधारी पार्टी के प्रभाव में कॉस्टिट्यूशनल ट्राइब्यूनल ने पिछले साल फैसला दिया कि विकृतियों के कारण होने वाले अबॉर्शन वैध नहीं हैं। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि अब अगर भ्रूण के बचने की संभावना न हो तो डॉक्टर अबॉर्शन करने के बजाय उसके स्वयं ही मर जाने का इंतजार करते हैं।
 
वीके/सीके (एपी)

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