सांकेतिक चित्र
पर्यावरण को बचाने के लिए बायोप्लास्टिक के इस्तेमाल की बात कही जाती है। बायोप्लास्टिक यानी काई या खाने के तेल से बनने वाला प्लास्टिक। क्या वाकई बायोप्लास्टिक इकोफ्रेंडली होता है या यह महज एक छलावा है?
पर्यावरणविद और उद्यमी योसेफाइन स्टाट्स की मानें तो कैपाफाईकस नाम की काई हमारे पर्यावरण को बचाने में मदद कर सकती है। इस लाल रंग की काई से बायोप्लास्टिक बनाया जा सकता है। वह कहती हैं, "काई को उगने के लिए किसी जमीन की जरूरत नहीं पड़ती। इसके विकास के लिए किसी कीटनाशक को नहीं छिड़कना पड़ता।"
बर्लिन में एक नेचुरल फूड कंपनी चलाने वाली स्टाट्स काई बेचती हैं। अब वह अपने कारोबार का विस्तार कर बायोप्लास्टिक बनाना चाहती हैं। उनके मुताबिक, ''काई से बना प्लास्टिक इकोफ्रेंडली होगा और आसानी से गल जाएगा।'' स्टाट्स जैसे कई पर्यावरणविद हैं, जो काई से बने प्लास्टिक के बारे में बात कर रहे हैं। हर साल तेल से बन रहा करीब 30 करोड़ टन प्लास्टिक पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी का अनुमान है कि 2017 में करीब 1.2 करोड़ बैरल तेल का इस्तेमाल प्लास्टिक बनाने के लिए किया गया। 2050 में यह आंकड़ा 1.8 करोड़ बैरल तक पहुंच जाएगा।
बायोप्लास्टिक कितने सही हैं?
बायोप्लास्टिक का निर्माण पर्यावरण के लिए सही है या नहीं, इस पर बहस जारी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सीधे तौर पर तेल से बने दूसरे सामानों की तरह पर्यावरण के अनुकूल नहीं होते हैं। जर्मन पर्यावरण एजेंसी से जुड़ी फ्रांसिज्का क्रूगर का कहना है, ''यकीनन कुछ ऐसे उत्पाद होते हैं जो गलने में आसान होते हैं, लेकिन हमें सभी को 'ग्रीन प्लास्टिक' नहीं मानना चाहिए।''
उदाहरण के लिए अगर कोई बैग बायोप्लास्टिक है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह आसानी से गल जाएगा। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस चीज से बना है और गलते वक्त कैसी परिस्थितियां हैं। अन्यथा इसे किसी आम प्लास्टिक की तरह ही गलने में 600 साल तक का समय लग सकता है। यही नहीं, मक्का या गन्ने से बायोप्लास्टिक बनाने के लिए इनकी बड़े पैमाने पर खेती करानी होगी, जिसके लिए जमीन और कीटनाशक की जरूरत पड़ेगी। इससे मिट्टी की गुणवत्ता पर असर पड़ेगा और खाने की फसलों के लिए जमीन की कमी हो जाएगी।
शोध की कमी
यह कहना मुश्किल है कि ऑर्गेनिक सामानों से बनाए गए प्लास्टिक पर्यावरण के लिए कितने अनुकूल होते हैं। क्रूगर का कहना है कि इसको लेकर अभी पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया है। वह कहती हैं, "इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि बायोप्लास्टिक पूरी तरह गल जाएंगे। शोधकर्ता लैब में बायोप्लास्टिक को गलाते हैं, जहां वे पर्यावरण को नियंत्रित कर सकते हैं।" फिलहाल रिसाइकिल करने वाली कंपनियों और स्थानीय प्रशासन के पास बायोप्लास्टिक को गलाने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है। क्रूगर के मुताबिक, "ज्यादातर बायोप्लास्टिक पूरी तरह नहीं गलते हैं।"
वह बताती हैं कि इन बायोप्लास्टिक को दूषित माना जाता है। इसलिए ऑर्गेनिक सामान से बना कचरे का बैग सही उपाय नहीं है। बर्लिन के यूरोपियन बायोप्लास्टिक इंडस्ट्री ग्रुप के मुताबिक 2017 में 20 लाख टन बायोप्लास्टिक का उत्पादन हुआ। अनुमान है कि यह आंकड़ा 2022 में 20.4 लाख टन तक पहुंच जाएगा।
विकल्प की तलाश जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि बायोप्लास्टिक सेक्टर में उछाल लाने के लिए कच्चे तेल का महंगा होना जरूरी है। हाल के महीनों में कच्चे तेल के दामों में उतार-चढ़ाव देखा गया है। बायोप्लास्टिक मैगजीन की पीआर कंसल्टेंट मिखाइल थिएलेन कहती हैं, ''प्लास्टिक का उत्पादन करने वालों को विकल्प तलाशने के लिए सलाह देनी चाहिए।''
स्टाट्स की तरह कई उद्यमी काई का विकल्प देने के लिए तैयार है। यही नहीं, वह अपना स्टार्टअप श्रीलंका तक फैलाना चाहती हैं। उनकी योजना है कि वह वहां के महिला मछुआरों की मदद करें, जिन्होंने गृहयुद्ध में अपनों को खो दिया है। वह चाहती हैं कि उन्हें काई उगाने के लिए प्रशिक्षित किया जाए। फिलहाल वह अपने स्टार्टअप के लिए 10 लाख यूरो इकट्ठा कर रही है और लैब की तलाश में हैं, जहां वैज्ञानिक काम कर सके।