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और कठिन हुई शेख हसीना की बांग्लादेश वापसी की राह

अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायाधिकरण की ओर से मानवता के खिलाफ अपराध के आरोप में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मौत की सजा सुनाए जाने के बाद उनकी स्वदेश वापसी की राह और कठिन हो गई है। बीते साल से ही वो भारत में रह रही हैं।

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, मंगलवार, 18 नवंबर 2025 (07:47 IST)
प्रभाकर मणि तिवारी
छात्र और युवा वर्ग के आंदोलन और इसके दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा और हत्या के दौर के बाद बीते साल पांच अगस्त को शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी थी। उनकी गैरमौजूदगी में ही अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने पांच आरोपों का दोषी मानते हुए उनको मौत की सजा सुनाई है। विडंबना यह है कि जिस न्यायाधिकरण ने यह सजा सुनाई है उसका गठन युद्ध अपराधों की जांच के लिए खुद हसीना ने ही किया था।
 
इस फैसले के साथ ही हसीना के लिए समय का पहिया अपना चक्र पूरा कर चुका है। कभी अपनी पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचा कर बीते करीब दो दशकों से लगातार सत्ता में बनी रही हसीना बांग्लादेश का पर्याय बन चुकी थी।
 
जटिल हुआ हसीना का राजनीतिक भविष्य : बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया ने अगले साल फरवरी में आम चुनाव की बात कही है। हसीना की राजनीतिक पार्टी अवामी लीग पर पहले से ही पाबंदी लगा दी गई है। यानी वो चुनाव में हिस्सा नहीं ले सकती। अब मौत की सजा सुनाए जाने का मतलब है कि निकट भविष्य में उनकी स्वदेश वापसी का रास्ता भी बंद हो गया है। नियमों के मुताबिक हसीना इस फैसले के खिलाफ अपील भी नहीं कर सकतीं।
 
पूर्व प्रधानमंत्री ने भारत में जारी एक बयान में खुद पर लगे तमाम आरोपों को खारिज करते हुए इस फैसले को पक्षपातपूर्ण बताया है। उनका दावा है कि यह तमाम आरोप राजनीतिक मकसद से लगाए गए हैं और किसी भी मामले में कोई सबूत नहीं है। बांग्लादेश की आखिरी निर्वाचित प्रधानमंत्री को पद से हटाने और अवामी लीग को राजनीतिक रूप से खत्म करने के लिए ही यह फैसला सुनाया गया है।
 
हसीना के खिलाफ 586 मामले : बीते साल हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद विभिन्न अदालतों और थानों में उनके खिलाफ कम से कम 586 मामले दायर किए गए थे। पूरे 397 दिन यानी एक साल भी ज्यादा समय तक चली सुनवाई के बाद सोमवार को सजा का एलान किया गया। जिन आरोपों में उनको सजा सुनाई गई है उन मामलों में पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान और बांग्लादेश पुलिस के पूर्व आईजी चौधरी अब्दुल्ला अल-मामून भी अभियुक्त थे। हसीना के अलावा पूर्व गृह मंत्री भी देश से बाहर रह रहे हैं।
 
जानकार सूत्रों का दावा है कि पूर्व गृह मंत्री ने भी हसीना की तरह भारत में ही शरण ली है। आईजी अल-मामून को उसी समय गिरफ्तार कर लिया गया था। बाद में वो सरकारी गवाह बन गए थे और बाकी दोनों अभियुक्तों के खिलाफ न्यायाधिकरण में गवाही दी थी। आज अदालत के फैसले के दौरान भी वो वहां मौजूद थे।
 
न्यायाधिकरण के समक्ष पेश आरोप पत्र में कहा गया था कि हसीना ने छात्रों और युवाओं के आंदोलन को दबाने के लिए उकसाने वाला बयान दिया था। उन्होंने शीर्ष अधिकारियों को घातक हथियारों का इस्तेमाल कर आंदोलनकारियों का सफाया करने का निर्देश दिया था। उन पर रंगपुर में रुकैया विश्वविद्यालय के छात्र अबू सईद की गोली मार कर हत्या का निर्देश देने का भी आरोप था। इसी तरह राजधानी ढाका के चंखारपुल इलाके में छह आंदोलनकारियों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। आशुलिया इलाके में छह लोगों को जिंदा जला कर मार दिया गया था।
 
हसीना ने ही बनाया था न्यायाधिकरण : जिस न्यायाधिकरण ने हसीना को मौत की सुनाई उसका गठन उन्होंने ही 25 मार्च 2010 को किया था। इसका मकसद बांग्लादेश के मुक्ति युद्ध के दौरान हुए अपराधों की प्राथमिकता के साथ जांच कर दोषियों को सजा सुनाना था।
 
बीते साल पांच अगस्त को हसीना के देश छोड़ने के बाद इस न्यायाधिकरण को पुनर्गठित किया गया था। उसके बाद उसी साल 17 अक्तूबर को उनके खिलाफ पहला मामला दर्ज कर सुनवाई शुरू हुई। पहले सिर्फ वहीं अकेली अभियुक्त थी। लेकिन इस साल 16 मार्च को आईजी (पुलिस) अल-मामून को भी अभियुक्त बनाया गया। 12 मई को न्यायाधिकरण ने मुख्य अभियोजक कार्यालय को जांच रिपोर्ट सौंपी थी। उस रिपोर्ट में पहली बार पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान के नाम का जिक्र किया गया था।
 
पहली जून को तीनों अभियुक्तों के खिलाफ आरोपपत्र दायर होने के बाद 10 जुलाई को औपचारिक तौर पर आरोप तय किए गए। अगस्त में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई और यह प्रक्रिया 23 अक्तूबर को पूरी हो गई। 13 नवंबर को न्यायाधिकरण ने 17 नवंबर को फैसला सुनाने का एलान किया। देश के विभिन्न संगठनों के अलावा अंतरिम सरकार के एडवोकेट भी सीमा को मौत की सजा सुनाने का मांग कर रहे थे।
 
अशांत बांग्लादेश : हसीना के मामले में सजा सुनाने की तारीख नजदीक आने के साथ बांग्लादेश में परिस्थिति एक बार फिर अशांत हो उठी थी। अवामी लीग के कार्यकर्ताओं ने जगह-जगह हिंसा और आगजनी शुरू कर दी थी। इसे दबाने के लिए सरकार ने बड़े पैमाने पर सुरक्षा बलों को तैनात किया था। अकेले राजधानी ढाका में 15 हजार से ज्यादा जवानों को तैनात किया गया था। दंगाइयों पर काबू पाने के लिए सरकार ने हाई अलर्ट जारी करते हुए देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए थे।
 
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चार बार प्रधानमंत्री रही बांग्लादेश के संस्थापक की बेटी शेख हसीना के सामने अब समय खास विकल्प नहीं बचा है। एक विश्लेषक शिखा मुखर्जी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "इस फैसले की संभावना तो थी ही। लेकिन इसने निकट भविष्य में हसीना की वापसी के रास्ते बंद कर दिए हैं। अगर वो सुनवाई की प्रक्रिया में शामिल हुई होती या एक महीने के भीतर आत्मसमर्पण कर देती हैं तो इस सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अपील बेंच के समक्ष अपील कर सकती थीं। लेकिन देश के कानून के मुताबिक, अब उनके सामने यह विकल्प भी नहीं है।"
 
एक अन्य विश्लेषक विश्वजीत घोष डीडब्ल्यू से कहते हैं, "खुद हसीना को भी इस सजा की आशंका थी। लेकिन फिलहाल इससे उनकी सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा। वो लंबे समय तक भारत में ही रहने का मन बना चुकी हैं। भारत किसी भी स्थिति में हसीना को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को सौंपने के मूड में नहीं नजर आता।"

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