Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

2022 में दुनिया की अर्थव्यवस्था के सामने खड़े 5 बड़े खतरे

हमें फॉलो करें 2022 में दुनिया की अर्थव्यवस्था के सामने खड़े 5 बड़े खतरे

DW

, शनिवार, 1 जनवरी 2022 (07:57 IST)
मौजूदा कोविड महामारी ने वैश्विक आर्थिक बहाली को पीछे धकेल दिया है। लेकिन नये साल में निवेशकों की उम्मीदों और इरादों को झटका दे सकने वाले, कोरोना के अलावा और भी खतरे हैं।
 
महामारी से उपजे हालात के बाद 2021 में वैश्विक अर्थव्यवस्था ने मजबूती से वापसी की थी। साल के दूसरे हिस्से में उसकी तेजी कुछ कम हुई थी और उसकी वजह थी महामारी के नए मामले, सप्लाई चेन के अवरोध, श्रम की किल्लत और कोविड-19 टीकों की सुस्त आमद, खासकर कम आय वाले विकासशील देशों में।
 
धीमी गति की इस बहाली ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और 38 सदस्यों वाली आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) के अर्थशास्त्रियों को वैश्विक वृद्धि की अपनी भविष्यवाणियों को क्रमशः अक्टूबर और दिसंबर में एक साल के लिए हल्की कटौती करने के लिए बाध्य किया था।
 
2022 के लिए उन्होंने अपना नजरिया बनाए रखा लेकिन आगाह भी किया कि कोविड वैरिएंट वृद्धि को बाधित कर सकते हैं। उन्होंने वैश्विक आबादी के एक बड़े हिस्से के तेजी से टीकाकरण करने की जरूरत पर जोर दिया था। महामारी अभी भी वैश्विक वृद्धि में एक बड़े खतरे की तरह मौजदू है लेकिन 2022 में निवेशकों की सांसें अटकाने वाला ये अकेला खतरा नहीं है।
 
टीकानिरोधी कोविड वैरिएंट
नवंबर में वित्तीय बाजार में एक डर फैला था, एक नये कोरानावायरस वैरिएंट ओमिक्रॉन का, जिसका पता साउथ अफ्रीका में चला था। तेजी से फैलने वाले इस वैरिएंट के खौफ से वैश्विक वित्तीय और उत्पाद बाजार हिल गए।
 
अगले सप्ताह तक वैश्विक बाजार में उतार-चढ़ाव चलता रहा। निवेशक नये वैरिएंट के आर्थिक निहितार्थों को समझने की कोशिश में जूझते रहे। आर्थिक बहाली को अवरुद्ध करने वाले वैरिएंट पर काबू रखने के लिए सरकारें कड़े प्रतिबंध लगाती रहीं।
 
थोड़े बहुत शुरुआती साक्ष्यों और विशेषज्ञों की टिप्पणियों में ओमिक्रॉन की आमद की आशंका व्यक्त की गई थी। उसे डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले ज्यादा संक्रामक बताया गया और ये भी कि वह उतना घातक नहीं होगा और मौजूदा टीकों या उपचारों से मुहैया रोग प्रतिरोधक क्षमता को नहीं तोड़ पाएगा।
 
वैज्ञानिक अभी भी डाटा का विश्लेषण कर रहे हैं। इस बीच जेपी मॉर्गन से जुड़े रणनीतिकारों ने कहा है कि ओमिक्रॉन अगर कम मारक पाया गया तब वो महामारी के अंत को ही तेज करने की ओर बढ़ेगा। यानी वो महामारी को स्थानीय बीमारी के रूप में तब्दील कर देगा।
 
ये संभव है कि ओमिक्रॉन की वजह से आर्थिक बहाली पटरी से नहीं उतरेगी लेकिन भविष्य का कोई वैरिएंट ऐसा खतरा पैदा कर सकता है। जानकार आगाह करते रहे हैं कि अगर महामारी फैली है तो संभव है कि टीकानिरोधी कोविड वैरिएंट का उभार देखने को मिलेगा जो लॉकडाउन जैसे उपाय करने के लिए मजबूर कर सकता है। 
 
आईएमएफ की चीफ इकोनोमिस्ट गीता गोपीनाथ ने अक्टूबर में कहा था कि "अगर कोविड-19 का दीर्घकालीन असर रहा – मध्यम अवधि के दौरान- तो वो वैश्विक जीडीपी में अगले पांच साल के दौरान मौजूदा अनुमान के सापेक्ष 5।3 खरब डॉलर कमी आ सकती है।”
 
गोपीनाथ कहती हैं, "उच्च नीतिगत प्राथमिकता ये होनी चाहिए कि हर देश में इस साल 40 फीसदी, और मध्य 2022 तक 70 प्रतिशत आबादी का पूर्ण टीकाकरण सुनिश्चित कर लिया जाए। अभी तक कम आय वाले विकासशील देशों में पांच फीसदी से भी कम आबादी का पूर्ण टीकाकरण हो पाया है।”
 
सप्लाई चेन के अवरोध
इस साल वैश्विक सुधारों की रुकावट में बड़ी भूमिका निभाई है सप्लाई चेन के अवरोधों ने। शिपिंग कंटेनरों की कमी के साथ साथ शिपिंग से जुड़े अवरोधों और महामारी से जुड़े प्रतिबंधों को हल्का करने के बाद मांग में तीखी वापसी ने उत्पादकों में घटकों और कच्चे मालों के लिए भगदड़ सी मचा दी।
 
ऑटो सेक्टर पर भी गाज गिरी। हाल के दिनों में जर्मनी समेत, यूरो जोन में उत्पादन लड़खड़ा गया। कार निर्माताओं ने एक माध्यमिक उपकरण के रूप में उत्पादन में कटौती की है खासकर सेमीकंडक्टरों की आपूर्ति में कमी बनी हुई है।
 
इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि सप्लाई की कमी, शिपिंग लागत में गिरावट और चिप निर्यातों में उभार से सुधार आ रहा है। लेकिन इसी के साथ जानकारों का अंदाजा है कि सप्लाई अवरोध अगले साल भी वृद्धि पर भारी गुजरेंगे।
 
परिवहन और लॉजिस्टिक्स की जर्मन कंपनी डीएसवी एयर एंड सी में प्रबंध निदेशक फ्रांक सोबोट्का ने नजदीकी देश में व्यापार को स्थानांतरित करने के चलन का हवाला देते हुए डीडब्ल्यू को बताया, "हमें पता है कि हालात 2022 में नहीं सुधर पाएंगे और तब तक तो बिल्कुल नहीं जब तक कि 2023 में नई प्रासंगिक महासागरीय परिवहन क्षमताएं विकसित नहीं कर ली जातीं या सप्लाई चेन को नीयरशोरिंग यानी नजदीकी देशों से व्यापार के लिए अनुकूलित नहीं कर लिया जाता।”
 
बढ़ती मुद्रास्फीति
कच्चे माल और वस्तुओं की आमद में कमी के साथ साथ ऊर्जा की ऊंची लागतों ने यूरो जोन और अमेरिका में मुद्रास्फीति को कई सालों की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है। वैश्विक निवेशक इससे विचलित हैं, उन्हें डर है कि ऊंची कीमतों को काबू में करने के लिए केंद्रीय बैंक, निर्धारित समय से पहले ही ब्याज की दरों को बढ़ाने को विवश हो सकते हैं।
 
यूरोपीय सेंट्रल बैंक का मानना है कि सप्लाई की किल्लत, ऊंची ऊर्जा दरों और बेस प्रभावों जैसे अस्थायी कारकों की वजह से कीमतें बढ़ी हैं। उसे उम्मीद है कि वैश्विक स्तर पर मांग-आपूर्ति असंतुलनों के प्रभाव एकबारगी कम होना शुरू होंगे तो मुद्रास्फीति भी ठंडी पड़ जाएगी।
 
जैसा कि सोचा जा रहा था उससे उलट, सप्लाई चेन के अवरोध देर तक टिके रहे हैं। ऐसे में मुद्रास्फीति 2022 में भी अधिकांश समय तक कायम ही रहेगी और यूरोपीय सेंट्रल बैंक के अधिकारियों को हैरान परेशान करती रहेगी।
 
अमेरिका में, मुद्रास्फीति से जुड़ी चिंताएं और बड़ी होने की संभावना है। इसकी गिरावट को रोकने का काम करती है आर्थिक बहाली, टैक्स की दरों में कटौती जैसे बड़े पैमाने पर राजस्व प्रोत्साहन और श्रम और सप्लाई की कमी। अमेरिका के संघीय रिजर्व बैंक का कहना है कि वो अपना बॉन्ड-खरीद की प्रोत्साहन योजना का आकार और तेजी से कम करेगा। उसने 2022 में ब्याज दरें बढ़ाने का संकेत भी दिया है। संघीय दर में बढ़ोत्तरी से कुछ उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए संकट खड़ा हो सकता है, जिनमें साउथ अफ्रीका, अर्जेंटीना और तुर्की भी शामिल हैं। ये स्थिति निवेशकों का भरोसा तोड़ सकती है।
 
चीन की कड़ी कार्रवाई
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश चीन में 2022 के दौरान मंदी बेशक निवेशकों की चिंताओं में इजाफा करेगी। एशियाई आर्थिक पावरहाउस कहलाने वाले चीन ने 2020 के दरमियान, पूरी दुनिया में अपने इलेक्ट्रॉनिक और चिकित्सा सामान की भारी मांग के सहारे, महामारी से उपजी मंदी से दुनिया को उबारने में मदद की थी। इस साल चीनी अर्थव्यवस्था के कमोबेश आठ फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। इस तरह भारत के बाद सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था चीन की होगी।
 
लेकिन अपनी दिग्गज टेक कंपनियों पर कड़ी कार्रवाई के जरिए चीन ने महामारी पश्चात की बहाली में गतिरोध भी खड़ा किया है। इन कंपनियों में अलीबाबा और टेनसेंट के अलावा कर्ज में फंसी रिएल इस्टेट कंपनियां जैसे एवरग्रांड और काइसा भी हैं और निजी शिक्षा उद्योग भी शामिल हैं। चीन के उच्च अधिकारियों ने यह कहकर आक्रोश को शांत करने की कोशिश की है कि अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाना अगले साल की उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है। इस वजह से माना जा रहा है कि 2022 की शुरुआत में ही चीन, वित्तीय प्रोत्साहन ला सकता है।
 
जीरो-कोविड के अपने रवैये को न छोड़ने की चीन की जिद भी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा खतरा बनी रहेगी। चीन सरकार के इस रवैये की वजह से देश एक साल से भी अधिक समय तक अलग-थलग रहा है और कोविड का एक भी मामला आ जाने पर बहुत ही कड़े और भीषण प्रतिबंध लगाने पर आमादा रहा है। 
 
भू-राजनीतिक तनाव
उत्तरी गोलार्ध में तापमान में भले ही गिरावट दर्ज की जा रही हो लेकिन वहां स्थित देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है। अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगियों के साथ रूस के रिश्ते तल्ख होते जा रहे हैं। अमेरिका ने रूस को यूक्रेन पर हमला करने को लेकर आगाह कर दिया है जबकि यूक्रेन सीमा पर रूसी फौज का जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा है।  
 
अमेरिका और यूरोपीय देश, रूस के खिलाफ और आर्थिक प्रतिबंधों के बारे में विचार कर रहे हैं। अगर रूस ने अपने पड़ोसी यूक्रेन पर हमला किया तो ये देश विवादास्पद नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को भी बंद करने जैसा कदम उठा सकते हैं। 
 
ओआंडा ट्रेडिंग ग्रुप में वरिष्ठ बाजार विश्लेषक एडवर्ड मोया ने डीडब्ल्यू को बताया, "अमेरिका-रूस तनाव एक बड़ा खतरा है जिसके चलते नाटो के पूर्वी यूरोप के सहयोगी देश युद्ध के मुहाने पर आ सकते हैं।” उन्होंने कहा कि "अगर अमेरिका और यूरोप नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन को रोकते हैं तो इससे वैश्विक ऊर्जा संकट खड़ा हो जाएगा और तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाएंगी। बढ़ी हुई ऊर्जा दरें ही वह आखिरी धक्का हो सकती हैं जिससे दुनिया भर के बैंक कड़ी मुद्रा नीति को और तेजी से लागू करने को मजबूर होंगे।”
 
अमेरिका-चीन संबंध ताइवान को लेकर भी तनावपूर्ण रहे हैं। अमेरिका ने चीन को चेताया है कि वह ताइवान में यथास्थिति को बदलने का एकतरफा निर्णय न करे।अमेरिका ने चीन को इस घोषणा से और भड़का दिया है कि मानवाधिकारों पर चीन के "अत्याचारों” के खिलाफ विरोध जताते हुए अमेरिकी अधिकारी बीजिंग में फरवरी में हो रहे शीतकालीन ओलंपिक खेलों का बहिष्कार करेंगे। चीन ने भी जवाब देते हुए कहा है कि अमेरिका को अपने इस फैसले की "कीमत चुकानी” होगी।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जो सामने है, वही जिंदगी है, वही न्यू और नेक्‍स्‍ट नॉर्मल है