अवैध शिकार के कारण गई भारत में 38 बाघों की जान

Webdunia
शुक्रवार, 3 जनवरी 2020 (09:09 IST)
साल 2018 के मुकाबले 2019 में भारत में ज्यादा बाघों की जान चली गई। विशेषज्ञों का कहना है कि बाघों की संख्या बढ़ाने के लिए उनके बफर जोन और गलियारों को भी बढ़ाना होगा।
 
साल 2018 में 104 बाघों की मौत हुई जबकि 2019 में यह संख्या बढ़कर 110 हो गई है। गैरसरकारी संगठन वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के मुताबिक इसमें से 38 बाघों की मौत अवैध शिकार के चलते हुई है।
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डब्ल्यूपीएसआई का कहना है कि 2019 में 491 तेंदुओं की भी मौत हुई जिसमें 128 तेंदुए शिकार के कारण मारे गए। साल 2018 में 500 तेंदुओं की मौत हुई थी जिसकी संख्या 2019 में थोड़ी कम है। डब्ल्यूपीएसआई का उद्देश्य भारत में बढ़ते वन्यजीव संकट से निपटने के लिए इस क्षेत्र में ध्यान केंद्रित करना है।
 
डब्ल्यूपीएसआई की रिपोर्ट से पता चलता है कि 2019 में 83 तेंदुओं की मौत हादसों के कारण से हुई, 73 तेंदुओं की मौत सड़क हादसों में और 10 तेंदुओं की मौत ट्रेन से कटने के कारण हुई।
 
नेचर, एनवायरमेंट एंड वाइल्ड लाइफ सोसायटी की अजंता डे का कहना है कि कई बार हम विकास के लिए बड़े जानवरों की अनदेखी कर देते हैं लेकिन यह उनके जीवन के लिए खतरा पैदा करता है। अजंता डे के मुताबिक, 'खासतौर पर हमें बाघों के लिए बफर जोन बनाने होंगे और उनके साथ कॉरिडोर भी बनाना होगा ताकि बाघ बड़े ही आराम से अपने इलाके में घूम सके और उनका टकराव इंसानों के साथ न हो पाए।'
 
डब्ल्यूपीएसआई का मानना है कि हर जगह की अपनी-अपनी परिस्थिति और समस्याएं हैं लेकिन हर जगह जानवर किसी न किसी तरह मारे जा रहे हैं। डब्ल्यूपीएसआई का कहना है कि बढ़ता ट्रैफिक और सड़कों का चौड़ा होना भी एक कारण है।
 
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे अधिक बाघों की मौत
 
डब्ल्यूपीएसआई के मुताबिक साल 2019 में सबसे अधिक बाघ मध्यप्रदेश में मारे गए जिसकी संख्या करीब 29 है, वहीं महाराष्ट्र 22 मृत बाघों के साथ दूसरे नंबर पर है। साल 2018 में भी सबसे अधिक बाघ मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में ही मारे गए थे। वहीं तेंदुओं की बात करें तो साल 2019 में सबसे अधिक 22 तेंदुओं की मौत महाराष्ट्र में हुई है।
 
हालांकि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के आंकड़े डब्ल्यूपीएसआई के आंकड़ों से मेल नहीं खाते हैं। एनटीसीए के मुताबिक साल 2019 में 92 बाघों की मौत हुई थी। अजंता डे के मुताबिक मौत के आंकड़ों में फर्क का कारण वन विभाग द्वारा मौतों की रिपोर्ट है। उनके मुताबिक एनटीसीए उन आंकड़ों को मानता है जिसे वन विभाग के कर्मचारी रिपोर्ट करते हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि हमें संरक्षित क्षेत्रों के बाहर अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, जहां ऐसे मुद्दों से वन्यजीवों के संरक्षण को अधिक खतरा है।
 
रिपोर्ट आमिर अंसारी

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