भारतीय क्रिकेट इस समय अपने स्वर्णिम दौर में है। पांच बरस पहले सचिन के संन्यास लेने का गम मनाने वालों को विराट कोहली ने खुश होने की वजह दे दी है। पांच बरस में देश में दो खेल रत्न तराशने वाले भद्रजन के इस खेल में अब आने वाले खिलाड़ियों के लिए महान बनने की राह बहुत मुश्किल होने वाली है।
देश की सवा अरब से ज्यादा आबादी में प्रतिभाओं की भरमार है, लेकिन क्रिकेट के मैदान में देश का प्रतिनिधित्व करने का गौरव किन्हीं 11 खिलाड़ियों को ही मिलता रहा है। ऐसे में यह सभी खिलाड़ी अपने आप में महान हैं, लेकिन इनमें भी जो दुनियाभर में अपने खेल से देश का नाम रोशन करे उसे बेशक महानतम की श्रेणी में रखा जा सकता है।
बल्लेबाजी की बात करें तो सुनील गावस्कर से शुरू हुआ रिकॉर्ड बनाने का सिलसिला सचिन तेंदुलकर ने जारी रखा, जिसे अब विरोट कोहली ने बड़ी सहजता से अपने कंधों पर ले लिया है। एकदिवसीय क्रिकेट में सबसे तेज 10 हजार रन बनाने का रिकॉर्ड कोहली ने हाल ही में सचिन से लेकर अपने खाते में डाल लिया है। सचिन ने जहां 259 पारियों में यह आंकड़ा पार किया था, विराट को इस मील के पत्थर को लांघने में 205 पारियों का सामना करना पड़ा।
5 नवम्बर 1988 को दिल्ली में जन्मे और यहीं पले बढ़े विराट को छुटपन से ही जुनून की हद तक क्रिकेट खेलने का शौक था। दिनभर बल्ला हाथ में लिए विराट मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलने के अलावा अकेले भी दीवार पर गेंद मारकर क्रिकेट खेलते रहते थे।
2006 में प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपना पहला मैच खेलने से पहले कोहली ने विभिन्न आयु वर्ग में शहर की क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व किया। विराट की अगुवाई में 2008 में मलेशिया में खेले गए अंडर 19 क्रिकेट विश्व कप में भारत की जीत ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया और यहीं से उनके राष्ट्रीय टीम में आने का रास्ता बनता गया। 19 वर्ष की आयु में विराट ने श्रीलंका के खिलाफ भारत के लिए अपना एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच खेला।
बल्लेबाजी में सचिन का जलवा तो किसी से छिपा नहीं था, लेकिन उस समय महेन्द्रसिंह धोनी के नेतृत्व की हर ओर धाक थी। विरोधी की हर कमजोरी का पूरा फायदा उठाने में माहिर धोनी को सबसे चतुर चालाक और समझदार कप्तान के तौर पर देखा जाता है। उस माहौल में कोहली की आक्रामकता और हर हाल में अपनी टीम को जीत दिलाने की जिद ने उन्हें धीरे-धीरे भारतीय क्रिकेट टीम का मजबूत स्तंभ बना दिया।
विरोधी टीम के सबसे मजबूत गेंदबाज पर हावी होना और मैदान के हर कोने पर शॉट लगाकर प्रतिद्वंद्वियों के हौंसले पस्त कर देना विराट की सबसे बड़ी खासियत है। 2011 के विश्व कप में धोनी के खेल और शातिर चालों से मैच जीत लेने के हुनर से विराट ने बहुत कुछ सीखा और वह विश्व कप की उस जीत को आज भी बड़ी शिद्दत से याद करते हैं।
विराट ने 2011 में ही टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया और दो वर्ष के भीतर ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शतक जमाकर खुद को संभलकर खेल सकने वाला गंभीर बल्लेबाज साबित करने के साथ ही एकदिवसीय क्रिकेट का उतावला बल्लेबाज होने के उलाहने से मुक्त कर लिया।
कोहली को 2012 में भारत की एकदिवसीय क्रिकेट टीम का उपकप्तान बनाया गया और 2014 में महेंद्रसिंह धोनी के टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद टेस्ट कप्तानी सौंपी गई। 2017 की शुरुआत में धोनी के पद से हटने के बाद वे एकदिवसीय मैचों में देश के कप्तान बने।
विराट की कुछ व्यक्तिगत उपलब्धियों की बात करें तो 2013 में उनके क्रिकेट करियर में एक बड़ा मोड़ आया जब एकदिवसीय क्रिकेट के लिए आईसीसी के वरीयताक्रम में विराट को पहला स्थान मिला। इसी दौरान टी-20 क्रिकेट में भी कोहली ने अपना दबदबा कायम कर लिया और 2014 और 2016 में आईसीसी विश्व टी-20 चैंपियनशिप में मैच ऑफ द टूर्नामेंट बने।
2014 में वे टी-20 के आईसीसी वरीयता क्रम में पहले स्थान पर पहुंचे और 2017 तक शीर्ष पर बने रहे। अक्टूबर 2017 के बाद वे एकदिवसीय बल्लेबाजों के वरीयता क्रम में भी पहले स्थान पर रहे। इससे पहले 2016 के अंतिम दिनों में एक मौका ऐसा भी आया कि विराट तीनों वरीयताक्रम में शीर्ष बल्लेबाजों में शामिल रहे।
अपने नाम के अनुरूप विराट ने अपने सामने उपलब्धियों की विराट दीवार खड़ी कर ली है, जिसे आने वाले वक्त में पार करना मुश्किल होगा। उनके बल्ले ने कितने रिकॉर्ड की ताबीर लिखी है, यह क्रिकेट इतिहास की किताबों में दर्ज होता जा रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस लाजवाब खिलाड़ी का जवाब देने वाला बल्लेबाज कब और कहां पैदा होगा। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है, ‘तू लाजवाब है, तेरा जवाब क्या होगा। (भाषा)