महेंद्र सिंह धोनी के संन्यास पर छिड़ी बहस, बांग्लादेश दौरे पर भी नहीं जाएंगे

Webdunia
सोमवार, 23 सितम्बर 2019 (17:47 IST)
नई दिल्ली। भारतीय क्रिकेट में संन्यास किसी पहेली की तरह है, जहां कुछ खिलाड़ियों ने सही समय यह फैसला किया जबकि कुछ इस बारे में फैसला लेने के लिए जूझते दिखे। महेन्द्र सिंह धोनी के भविष्य पर जारी दुविधा ने एक बार फिर इस बहस को छेड़ दिया है कि भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े सितारों में से एक कब खेल को अलविदा कहेगा?
 
झारखंड के 38 साल के धोनी पिछले 2 महीने से टीम के साथ नहीं हैं और नवंबर से पहले उनके टीम के साथ जुड़ने पर भी संशय बरकरार है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास को लेकर अब तक धोनी की ओर से कुछ नहीं कहा गया है।
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बीसीसीआई के एक सूत्र ने कहा कि इस बात की संभावना बेहद कम है कि धोनी बांग्लादेश के दौरे के लिए उपलब्ध होंगे। बीसीसीआई में हम सीनियर और 'ए' टीम के क्रिकेटरों के लिए 45 दिन पहले मैचों (अंतररराष्ट्रीय और घरेलू) की तैयारी कर लेते है जिसमें प्रशिक्षण, डोपिंगरोधी कार्यक्रम से जुड़ीं चीजें शामिल हैं।
 
यह पता चला है कि मंगलवार से शुरू हो रही विजय हजारे राष्ट्रीय एकदिवसीय चैंपियनशिप में धोनी झारखंड के लिए नहीं खेलेंगे। दिग्गज सुनील गावस्कर ने हाल ही में एक टेलीविजन कार्यक्रम में कहा था कि मुझे लगता है वे खुद ही यह फैसला कर लेंगे। हमें महेन्द्र सिंह धोनी से आगे के बारे में सोचना चाहिए। कम से कम वे मेरी टीम का हिस्सा नहीं होंगे।
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गावस्कर को एक क्रिकेटर के तौर पर सीधे स्पष्ट तौर पर बोलने के लिए जाना जाता है। बात जब संन्यास की आती है तो गावस्कर ने यह फैसला बेहतरीन तरीके से किया। गावस्कर ने चिन्नास्वामी स्टेडियम की टर्न लेती पिच पर अपने अंतिम टेस्ट में पाकिस्तान के खिलाफ 96 रन बनाए थे।
 
गावस्कर 1987 में 37 साल के थे लेकिन अपनी शानदार तकनीक के दम पर 1989 के पाकिस्तान दौरे तक खेल सकते थे। वे इस खेल को अलविदा कहने की कला को अच्छी तरह से जानते थे। उन्हें पता था कि अच्छे प्रदर्शन के बाद भी वे इस खेल का लुत्फ नहीं उठा पा रहे हैं।
 
दिवंगत विजय मर्चेंट ने एक बार कहा था कि खिलाड़ी को संन्यास के फैसले के बारे में सतर्क रहना चाहिए। उसे वैसे समय संन्यास लेना चाहिए, जब लोग पूछे अभी क्यों, न कि तब जबकि लोग यह पूछने लगे कि कब? हर महान क्रिकेटर हालांकि गावस्कर की तरह इस कला में माहिर नहीं रहा। भारत के महान क्रिकेटरों में शुमार कपिल देव पर 1991 के ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर उम्र का असर साफ दिख रहा था।
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कपिल विश्व रिकॉर्ड के करीब थे लेकिन उनकी गति में कमी आ गई थी और वे लय में भी नहीं थे। तत्कालीन कप्तान अजहरुद्दीन उनसे कुछ ओवर कराने के बाद स्पिनरों को गेंद थमा देते थे। उस समय भारतीय क्रिकेट में सबसे तेज गति से गेंदबाजी करने वालों में से एक जवागल श्रीनाथ को कपिल के टीम में होने के कारण 3 साल तक राष्ट्रीय टीम में मौका नहीं मिला था।
 
क्रिकेट को अलविदा कहने की तैयारी कर रहे एक खिलाड़ी ने कहा कि आप 10 साल की उम्र में खेलना शुरू करते हैं, 20 साल की उम्र में पदार्पण करते हैं और 35 साल की उम्र तक खेलते हैं। आप अपनी जिंदगी के 25 साल सिर्फ एक चीज को दे देते हैं। आप पैसे कमाते हैं, आपकी आर्थिक स्थिति अच्छी होती है और अचानक से आपको ऐसा फैसला करना होता है जिससे आपकी आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है।
 
गावस्कर ने यह फैसला शानदार तरीके से किया जबकि कपिल ने लंबे समय तक करियर को खींचने की कोशिश की। पूर्व कप्तान सौरव गांगुली के लिए टेस्ट क्रिकेट में आखिरी के 2 साल शानदार रहे। उन्होंने 2008 के ऑस्ट्रेलिया दौरे से पहले संन्यास की घोषणा कर दी, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि चयनकर्ता उन्हें एक बार फिर टीम से बाहर करें।
 
धोनी की सलाह पर द्रविड़ और गांगुली को एकदिवसीय टीम से बाहर किया गया लेकिन 2011 में टेस्ट श्रृंखला में शानदार प्रदर्शन कर द्रविड़ ने एकदिवसीय टीम में जगह बनाई। द्रविड़ ने हालांकि घोषणा कर दी कि यह उनकी आखिरी एकदिवसीय श्रृंखला होगी। इसके 6 महीने बाद ऑस्ट्रेलिया में खराब प्रदर्शन के बाद उन्होंने टेस्ट क्रिकेट को भी अलविदा कह दिया।
 
सचिन तेंदुलकर के लिए हालांकि मामला बिलकुल अलग था। वे शतक नहीं बना पा रहे थे लेकिन बल्ले से ठीक-ठाक योगदान दे रहे थे। वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर भी उन खिलाड़ियों में शामिल रहे जिन्हें यह समझने में थोड़ा समय लगा कि भारतीय टीम में उनका समय खत्म हो गया।
 
इसमें कोई शक नहीं कि महेन्द्र सिंह धोनी ने लंबे समय तक भारतीय क्रिकेट की सेवा की है लेकिन पर्दे पर धोनी का किरदार निभाने वाले सुशांत सिंह राजपूत का एक संवाद है, 'हम सभी सेवक हैं और राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं।' धोनी को शायद इसका मतलब समझना होगा।

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