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लोढ़ा समिति की सिफारिशों के अमल में बाधा पहुंचा रहे हैं पूर्व पदाधिकारी

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नई दिल्ली , बुधवार, 12 जुलाई 2017 (21:52 IST)
नई दिल्ली। क्रिकेट प्रशासकों की समिति (सीओए) ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के पूर्व पदाधिकारी निजी हितों के कारण लोढा समिति की सुधार की योजनाओं को अमली जामा पहनाने में बाधा पहुंचा रहे हैं। 
       
उच्चतम न्यायालय में सीओए द्वारा पेश की गई स्थिति रिपोर्ट में कहा गया है कि निरंजन शाह और एन. श्रीनिवासन जैसे अयोग्य पदाधिकारी अपने निजी हितों के चलते लोढा समिति की सिफारिशों को लागू करने में बाधा पैदा कर रहे हैं। न्यायालय 14 जुलाई को बीसीसीआई से संबंधित मामले पर सुनवाई करने वाला है।
       
सीओए की यह चौथी रिपोर्ट है। इससे पहले सीओए ने 27 फरवरी, 17 मार्च और सात अप्रैल को भी स्थिति रिपोर्ट जमा कराई थी। समिति ने कार्यवाहक सचिव अमिताभ चौधरी की तारीफ करते हुए कहा है कि चौधरी लोढा समिति की सिफारिशों पर अमल कराने के लिए प्रयासरत हैं। समिति ने श्रीनिवासन के विश्वासपात्र अनिरुद्ध चौधरी पर मूक दर्शक बने रहने का आरोप भी लगाया गया है।
 
सीओए ने प्रदेश इकाइयों में सहमति बनाने में भी असमर्थता जताई। रिपोर्ट के सातवें बिंदु में कहा गया है, 'तीसरी रिपोर्ट जमा करने के बाद से तीन महीने के भीतर सीओए ने बीसीसीआई की सदस्य इकाइयों में नया संविधान लागू करने के लिए सहमति बनाने की हरसंभव कोशिश की थी।' सीओए की उनके साथ दो बैठकें छह मई और 25 जून को हो चुकी है, लेकिन सहमति बनाने के तमाम प्रयास विफल रहे।" 
              
नौवें बिंदु में कहा गया है कि बीसीसीआई अध्यक्ष श्रीनिवासन और शाह रोड़े अटका रहे हैं। समिति ने यह भी कहा है कि 26 जून की विशेष आम सभा में ऐसे कई लोगों ने भाग लिया जो बीसीसीआई के पदाधिकारी पद से अयोग्य करार दिए जा चुके हैं। इनमें एन श्रीनिवासन और निरंजन शाह भी शामिल हैं। इनके निहित स्वार्थ हैं जिसके चलते ए लोढा समिति की सिफारिशें लागू नहीं होने दे रहे।
       
बीसीसीआई की विशेष आम बैठक (एसजीएम) कल दिल्ली में तमिलनाडु सहित छह राज्य संघों के विरोध के कारण स्थगित कर दी गई थी। विरोध करने में सबसे आगे तमिलनाडु रहा। तमिलनाडु ने सबसे पहले दो दिन के नोटिस पर एसजीएम बुलाने का विरोध किया था। उसके सचिव आर आई पलानी ने इसे अवैध बताया था। उन्होंने कहा था कि यदि 11 जुलाई को बैठक होती है तो यह अवैध होगी और इसमें लिए गए फैसलों का कोई महत्व नहीं होगा।
               
पलानी के अनुसार सभी सदस्यों के पास सिफारिशों पर चर्चा करने और उन्हें लागू करने से होने वाले प्रभावों पर विचार करने के लिए पर्याप्त समय होना चाहिए। पलानी का मानना था कि इस तरह की प्रक्रिया बीसीसीआई के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है। (भाषा)

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