36 रनों पर ऑल आउट होने के बाद कोई सोच भी नहीं सकता था कि टीम इंडिया यह सीरीज जीत लेगी। टीम इंडिया का मनोबल गिरा हुआ था लेकिन जो वापसी भारतीय टीम ने ब्रिस्बेन में की वह लंबे समय तक याद रखी जाएगी।
भारतीय टीम ने मुश्किल समय से जो वापसी की है वह जन सामान्य के लिए भी एक नजीर बन गई है। इस सीरीज में टीम इंडिया से यह 5 लेसन सीखे जा सकते हैं।
1) कभी हार नहीं मानो
टीम इंडिया का ड्रेसिंग रूम मिनी अस्पताल सा लग रहा था। हालत यह थी कि हर टेस्ट के बाद कम से कम एक खिलाड़ी चोटिल हो रहा था। मोहम्मद शमी, उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह, अश्विन जैसे खिलाड़ियों के ना होने पर भी टीम इंडिया की सोच में बदलाव नहीं आया। उनकी जगह लेने वाले नए खिलाड़ियों ने सीनियर खिलाड़ियों की कमी नहीं महसूस होने दी। जीवन से हार ना मानने का जज्बा इस बात से सीखा जा सकता है कि कम संसाधनों से भी आप किला लड़ाने की हि्म्मत रखें। कम से कम इसकी कोशिश तो की ही जा सकती है।
2) कमियों पर मत रोओ
कोहली की अनुपस्थिति एक बड़ी मुसीबत थी। टीम इंडिया के कप्तान हाल ही में पिता बने हैं। कप्तान की अनुपस्थिती में भी टीम को दिशा निर्देश देने वाले कार्यवाहक कप्तान अजिंक्य रहाणे ने कभी इस कमी का रोना नहीं रोया। चाहते तो वह भी शिकायत करते रहते और सीरीज हार भी जाते तो उन पर कोई उंगली नहीं उठाता।रहाणे ने टीम कॉंबिनेशन समझा और दूसरे टेस्ट से ही एक चालाक कप्तान बनने की कोशिश की जिसमें वह काफी हद तक सफल रहे। शिकायती बनने से बेहतर है कि अपना काम बेहतरीन तरीके से करने की कोशिश की जाए।
3) गलतियों से सबक सीखो (36 रनों पर आलआउट होने के बाद)
सभी इंसानों से गलतियां होती है, बेहतर इंसान वह है जो गलतियों से सबक लेकर उसे ना दोहराने का प्रण लेता है। भारतीय टीम जब 36 रनों पर ऑल आउट हो गई थी तो निराश होने की जगह उन्होंने बिती ताही बिसार के आगे की सुध लो कहावत के अनुसार काम किया। जो गलतियां एडिलेड में दिखी वह ना ही फिर मेलबर्न में दिखी, ना ही सिडनी में और ना ही ब्रिस्बेन में। बल्लेबाजों के गैर जिम्मेदाराना शॉट कम हो गए। ऐसे ही सभी को अपने जीवन में कम से कम गलतियां करने की ठान लेना चाहिए।
4) निडरता से खेलो
पहले टेस्ट के बाद टीम इंडिया ने अपने तेवर बदल लिए। मेलबर्न टेस्ट से टीम निडरता से बल्लेबाजी करती हुई नजर आने लगी। दूसरे टेस्ट में तेज बल्लेबाजी कर बढ़त लेने की कोशिश की जो मिली। तीसरे टेस्ट को जीतने की कोशिश की और पंत के विकेट के बाद ड्रॉ कराया। वहीं चौथे टेस्ट को टीम 3 विकेट से जीतकर ही मानी। इससे यह सबक मिलता है कि जिंदगी में हमेशा फ्रंट फुट पर ही खेलना चाहिए। निडरता से बहुत सारी मुसीबतों का हल मिल जाता है।
5) आलोचनाओं और गालियों का जवाब अपने काम से दो
दूसरा टेस्ट जीतने के बाद ऑस्ट्रेलियाई दर्शक टीम इंडिया के पीछे पड़ गए। खासकर सिराज को तो उन्होंने क्या क्या नहीं कहा। लेकिन टीम इंडिया अपनी दिशा नहीं भटकी। टीम ने अपना प्रदर्शन पैना किया और स्टैंड्स से मिल रही नस्लीय टिप्पणियों का सही मायने में जवाब दिया। मैदान पर जीत की ललक आईसीसी टेस्ट चैंपियनशिप फाइनल के टिकट के लिए कम और दर्शकों को करारा जवाब देने के लिए ज्यादा दिख रही थी। ऐसे ही अगर जीवन में मिल रहे तिरस्कार का जवाब मुंह चलाने की बजाए हम अपने काम से दें तो ज्यादा बेहतर नतीजे देखने को मिलेंगे। (वेबदुनिया डेस्क)