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रुपए की गिरावट, सोने की ऊंची उड़ान, आपकी जेब पर क्या असर पड़ेगा?

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, बुधवार, 5 फ़रवरी 2025 (08:25 IST)
Gold prices rise: बजट पेश होने के महज तीन दिन बाद ही भारतीय रुपये ने डॉलर के मुकाबले 87 का स्तर पार कर लिया, जबकि सोना नई ऊंचाइयों पर पहुंच गया। शेयर बाजार में भी भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिला। सवाल यह है कि आखिर रुपए पर इतना दबाव क्यों बढ़ रहा है? क्यों सोने और चांदी की कीमतें रिकॉर्ड बना रही हैं? और सबसे अहम, इसका आम आदमी और निवेशकों पर क्या असर पड़ेगा?
 
क्या यह संकेत है कि देश में महंगाई और आर्थिक अस्थिरता के काले बादल मंडरा रहे हैं या फिर यह सिर्फ अस्थायी झटका है? इस रिपोर्ट में जानते हैं रुपए की कमजोरी, सोने की तेजी और शेयर बाजार की मौजूदा स्थिति के पीछे की पूरी कहानी... 
 
बजट के बाद रुपए में गिरावट, डॉलर की मजबूती बनी वजह : बजट पेश होने के तीसरे ही दिन, सोमवार को भारतीय रुपया 87 प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया। इस गिरावट के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कनाडा, मैक्सिको और चीन पर नए टैरिफ लगाने की घोषणा मुख्य कारण मानी जा रही है। बजट के बाद रुपए में गिरावट, डॉलर की मजबूती बनी वजह। इससे अमेरिकी डॉलर को सुरक्षित निवेश के रूप में मजबूती मिली और डॉलर इंडेक्स 1.35% उछलकर 109.83 तक पहुंच गया।
 
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप कम करने से भी रुपये पर दबाव बढ़ा है। बाजार विश्लेषकों का कहना है कि यदि यह ट्रेंड जारी रहा तो रुपये में और गिरावट देखने को मिल सकती है।
 
वैश्विक आर्थिक परिदृश्य : अमेरिका की सख्त मौद्रिक नीति, अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों को ऊंचा बनाए रखा है, जिससे निवेशक अमेरिकी बॉन्ड्स और डॉलर में निवेश कर रहे हैं। इससे अन्य मुद्राओं, विशेषकर उभरती अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी कमजोर हो रही है।
 
  • चीन की आर्थिक सुस्ती : चीन की धीमी आर्थिक वृद्धि और कमजोर विनिर्माण गतिविधियां निवेशकों को डॉलर जैसी सुरक्षित संपत्तियों की ओर मोड़ रही हैं।
  • तेल की बढ़ती कीमतें: भारत अपनी जरूरत का 85% कच्चा तेल आयात करता है। पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव और ईरान-इजरायल संघर्ष के कारण कच्चे तेल की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं, जिससे रुपये पर और दबाव बढ़ रहा है।
  • सोना और चांदी क्यों रिकॉर्ड ऊंचाई पर, 4 फरवरी को सोने-चांदी के दाम : सोना 10 ग्राम 85,800 रुपये (ऑल टाइम हाई), जबकि चांदी का भाव प्रति किलो 95,500 रुपए था। 
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सोना और चांदी में आई तेजी के पीछे तीन बड़े कारण हैं:
  • डॉलर की मजबूती : जब डॉलर मजबूत होता है, तो निवेशक दूसरी मुद्राओं के बजाय सोने को सुरक्षित संपत्ति के रूप में खरीदते हैं।
  • महंगाई का डर : वैश्विक स्तर पर बढ़ती मुद्रास्फीति और ब्याज दरों की अनिश्चितता के कारण सोने की मांग बढ़ी है।
  • सेंट्रल बैंक की खरीदारी: चीन, रूस और भारत समेत कई देशों के केंद्रीय बैंक अपने विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर रखने के लिए सोने की जमाखोरी कर रहे हैं।
 
भारत पर क्या असर पड़ेगा? महंगाई का खतरा : रुपए की कमजोरी से पेट्रोल-डीजल, गैस, इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल फोन, दवाइयां और रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें महंगी हो सकती हैं। भारत का आयात बढ़ेगा और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मक रूप से कमजोर हो सकता है, जिससे व्यापार घाटा और चालू खाता घाटा (CAD) बढ़ने का खतरा रहेगा। रुपए की गिरावट से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) अपना पैसा निकाल सकते हैं, जिससे भारतीय शेयर बाजार में गिरावट आ सकती है।
 
भारतीय शेयर बाजार की स्थिति :  पिछले दो महीनों में भारतीय शेयर बाजार में उतार-चढ़ाव देखा गया है। 27 जनवरी 2025 को सेंसेक्स में एक ही सत्र में 800 से ज्यादा अंकों की गिरावट आई, जिससे निवेशकों की लगभग 10 लाख करोड़ रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ। हालांकि, 3 फरवरी को सेंसेक्स 319.22 अंक गिरकर 77,186.74 के स्तर पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 121.10 अंक गिरकर 23,361.05 पर बंद हुआ। हालांकि 4 फरवरी को शेयर बाजार में जोरदार तेजी देखने को मिली। सेंसेक्स 1397 अंक उछलकर एक महीने के उच्चतम स्तर 78,584 अंक पर बंद हुआ। निफ्टी में भी 378 अंक की तेजी देखी गई। 
 
आगे की राह : सबसे अहम सवाल है कि क्या रुपए की गिरावट आगे भी जारी रहेगी? आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, अगर RBI जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाता है तो रुपया और गिर सकता है। हाल ही में, भारतीय रिजर्व बैंक ने डॉलर के मुकाबले रुपए को स्थिर करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप कम कर दिया था, जिससे इसकी कमजोरी बढ़ गई। आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार, यदि RBI जल्द ठोस कदम नहीं उठाता, तो रुपए में और गिरावट संभव है। रुपए की कमजोरी से आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि होगी, जिससे महंगाई बढ़ सकती है। इसके अलावा, विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से धन निकाल सकते हैं, जिससे शेयर बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
 
इन आर्थिक परिवर्तनों के बीच, निवेशकों और उपभोक्ताओं को सतर्क रहने की आवश्यकता है, ताकि वे अपने वित्तीय निर्णयों को सही दिशा में ले जा सकें। 
 

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