नई दिल्ली। भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) द्वारा खस्ताहाल आईडीबीआई बैंक में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के प्रस्तावित सौदे को लेकर संभवत: संसद की मंजूरी की आवश्यकता नहीं पड़ेगी, क्योंकि इस सौदे में एलआईसी कानून में किसी प्रकार के बदलाव की आवश्यकता नहीं है। सूत्रों ने यह जानकारी दी।
सूत्रों का कहना है कि सौदा एलआईसी कानून के अनुरूप है, इसलिए सौदे के लिए एलआईसी कानून में किसी तरह के संशोधन की आवश्यकता नहीं होगी। हालांकि सूत्रों का कहना है कि सौदे को यदि सभी नियामकीय मंजूरियां मिल जाती हैं तो इसे मंत्रिमंडल की मंजूरी की आवश्यकता होगी।
इसमें कहा जा रहा है कि सौदे से सरकार को कोई धन मिलने वाला नहीं है। इस सौदे में बैंक को 10,000 से लेकर 13,000 करोड़ के बीच में पूंजी समर्थन प्राप्त होगा। यह सब बैंक के शेयर मूल्य पर निर्भर करेगा। आईडीबीआई बैंक इस सौदे के तहत नए शेयर जारी करेगा ताकि बैंक में एलआईसी की हिस्सेदारी बढ़कर 51 प्रतिशत तक पहुंच जाए। इसके साथ ही इसमें सरकार की हिस्सेदारी मौजूदा 80.96 प्रतिशत से नीचे आ जाएगी।
एलआईसी को तरजीही शेयर जारी करने के साथ ही आईडीबीआई बैंक का सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक होने की पहचान समाप्त हो जाएगी। बीमा क्षेत्र के नियामक इरडा ने बीमा क्षेत्र की अग्रणी कंपनी एलआईसी को सार्वजनिक क्षेत्र के आईडीबीआई बैंक में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने को मंजूरी कर दी थी। इस घटनाक्रम से फंसे कर्ज बोझ तले दबे इस बैंक को एक निजी क्षेत्र की कंपनी में परिवर्तित करने में मदद मिलेगी।
आईडीबीआई में 51 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल करने के बाद एलआईसी इस अपनी अनुषंगी के तौर पर रख सकता है। एलआईसी के लिए आईडीबीआई बैंक का अधिग्रहण कारोबार के लिहाज से अनुकूल माना जा रह है। इस अधिग्रहण से जहां एलआईसी को 2,000 बैंक शाखाओं का नेटवर्क मिल जाएगा और वह अपने बीमा उत्पाद उनमें बेच सकेगा वहीं आईडीबीआई बैंक को एलआईसी की तमाम नकदी प्राप्त होगी। बैंक को एलआईसी के पॉलिसी धारकों के खाते भी मिल जाएंगे। (भाषा)