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GST : इस गलती से बचें नहीं तो देना होगा 24% ब्याज

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-भरत नीमा
यदि आपने टैक्स समय पर नहीं भरा तो सरकार 18% ब्याज सहित पैसा लेगी और यदि आपने पैसों के अभाव में किसी माह का रिटर्न नहीं भरा तो आप अगले माह का रिटर्न भी नहीं भर पाएंगे। इसलिए अब उधार माल बेचना और अपने पास से टैक्स का भी पैसा भरना बंद करना चाहिए, क्योंकि टैक्स में ही आपकी अत्यधिक पूंजी फंस जाएगी। हालांकि यदि उधारी का पैसा 6 माह में नहीं आता है तो टैक्स का पैसा वापस मिल सकता है।
 
अब यदि आपने जीएसटी लॉ के अनुसार कोई इनपुट टैक्स क्रेडिट जो कि नहीं लेना था वे ले लिए या टैक्स रेवेर्सल करना था वह नहीं किया या इनपुट टैक्स क्रेडिट ज्यादा ले लिया या डुप्लीकेट/ डबल आईटीसी क्लेम कर लिया या आपने जिससे माल खरीदा है और उसने रिटर्न और टैक्स नहीं भरा है, तो उस पर आपको जिस दिन से टैक्स लायबिलिटी आती थी यानी पुरानी तारीख से 24% टैक्स भरना होगा।
 
महत्वपूर्ण यह है कि अब आप जिससे माल खरीद रहे हैं यदि उसके द्वारा भी डिफॉल्ट किया तो लायबिलिटी आप पर आती है तो माल भी आप अच्छी पार्टी से ही खरीदें। इसमें सबसे ध्यान देने वाली बात क्रेडिट नोट के माध्यम से जो सप्लायर अपनी टैक्स लायबिलिटी कम करता है उसे रेसिपिएंट के द्वारा अपनी टैक्स लायबिलिटी बढ़ाने पर ही क्रेडिट मिलेगी। मतलब अन्यथा उपरोक्त 24% ब्याज देना होगा। मतलब मैचिंग सिस्टम होने से अब दोनों व्यापारी जीएसटी लॉ के कानून का कड़ाई एवं समय पर पालन करने वाले होना अतिआवश्यक रहेगा।
 
सरकार ने तो पोर्टल खोलकर दे दिया है। अब दोनों व्यापारी एक-दूसरे पर डिपेंड रहेंगे। सरकार को तो टैक्स चाहिए, डिफॉल्ट कोई भी करे। यह नियम इनवॉइस और डेबिट नोट के केस में भी लागू होगा। यदि सप्लायर ने इन्वॉइस या डेबिट नोट नहीं डाला या रिटर्न नहीं भरा तो मैचिंग नहीं होने से खरीददार ने जो आईटीसी लिया है या क्लेम किया है, वह नहीं मिलेगा।
 
हां, पोर्टल के माध्यम से दोनों पार्टियों को मिसमैच का मैसेज जाएगा जिसे यदि पार्टी सॉल्व करके एक्सेप्ट करती है तो समस्या खत्म। यह सब जीएसटी r-02 लागू होने पर मिसमैच करना होगा। सरकार से आप रिफंड लेंगे तो वह आपको सिर्फ 6% ब्याज देगी। सरकार वैसे भी एक्सपोर्ट के केस में, सेज में सप्लाई के केस में और इन्वर्टेड टैक्स होने की स्थिति में ही रिफंड देगी।
 
सर्विस सेक्टर में बिल अगले माह बनने से परेशानी : अब बात करते हैं सर्विस सेक्टर की जिसमें बैंक एव स्टॉक एक्सचेंज वगैरह आते हैं। इन्हें बिल 30 या 45 दिन में सर्विस देने के बाद बना सकने का प्रावधान है। हो यह रहा है कि जैसे कोई स्टॉक ब्रोकर है, उसे एक्सचेंज डेली चार्जेस डेबिट कर रही है और ब्रोकर डेली चार्जेज क्लाइंट को लगा रहे हैं लेकिन एक्सचेंज बिल अगले माह की 1 तारीख को पिछले 30 दिन का बनाकर दे रही है इसलिए ब्रोकर को आईटीसी अगले माह मिलेगी।
 
लेकिन उसने जो जीएसटी डेली बेसिस पर क्लाइंट से वसूला है वह उसे नकदी भरना पड़ रहा है, मतलब 1 माह का पैसा ब्रोकर का अपनी जेब से लग रहा है, क्योंकि उसे आईटीसी अगले माह मिल रही है। इसमें सुधार करना चाहिए। सर्विस सेक्टर में ऐसे कई सेक्टर हैं, जो पिछले माह की सर्विस का बिल अगले माह बना रही है। इसमें माह के आखिरी दिन बिल बनाने का प्रावधान होना चाहिए।
 
ज्यादातर कंपोजिशन वाले आईटीसी-03 नहीं भर पाए हैं : आईटीसी-03 जिसमें कंपोजिशन वालों को 30.11.2017 तक अपनी रजिस्टर्ड और अनरजिस्टर्ड से खरीदी की डिटेल भरना थी जिसमें अनरजिस्टर्ड से खरीदी किए हुए स्टॉक की डिटेल में बिल, पार्टी का नाम व तारीख मांगी गई है, वह भरना सामान्यतया संभव नहीं हो पा रहा होने से आईटीसी-03 भरने के प्रति लोग उदासीन हैं और असहज महसूस कर रहे हैं, क्योंकि अनरजिस्टर्ड से खरीदी के दौरान बिल कम ही मिलते थे। प्रश्न यह है कि अब बिल कहा से लाएं? सरकार को इसकी डिटेल नहीं मांगते हुए लम-सम अमाउंट मांगकर इसे सुलभ बनाना चाहिए।

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