मेष व वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल मकर में उच्च का और कर्क में नीच का माना गया है। सूर्य और बुध मिलकर मंगल नेक बन जाते हैं, सूर्य और शनि मिलकर मंगल बद बन जाते हैं। गुरु मित्र के साथ बलवान बन जाते हैं। राशि प्रथम भाव है और बुध और केतु शत्रु। शुक्र, शनि और राहु सम। मंगल के साथ शनि अर्थात राहू। नेक मंगल हनुमानजी और बद मंगल वीरभद्र या जिन्न की तरह होते हैं।
मान्यता अनुसार मंगली लड़के या लड़की का विवाह मंगली लड़के या लड़की से ही किया जाता है। कहते हैं कि ऐसा नहीं किया जाता है तो दोनों की जिंदगी नर्क बन जाती है और कई बार तलाक की नौबत तक भी आ जाती है। कुंडली के अनुसार लग्न, दूसरे, चतुर्थ, अष्टम और बारहवें भाव में है तो मंगली दोष या मांगलिक कुंडली मानी जाती है। परंतु कई बार यह भी देखा गया है कि अच्छे ग्रहों या मंगल की स्थिति के कारण यह मंगली दोष प्रभावी नहीं रहता है।
कहते हैं कि यदि मंगल किसी क्रूर या खराब ग्रह के साथ बैठा है जैसे शनि, राहु या केतु तो यह अधिक परेशान करता है। परंतु यदि यह गुरु और चंद्र जैसे अच्छे ग्रहों के साथ है तो अच्छे प्रभाव देता है। प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़कर या लाल किताब के उपाय करके इस दोष से मुक्ति पाई जा सकती है। ऐसा जातक फिर सामाजिक क्षेत्र में उन्नती करके धन कमाने में सफल रहता है।
कहते हैं कि मंगल पति की कुंडली में है तो खून का कारक है और उसकी शक्ति पौरुषता में निहित मानी जाएगी। यह भाई से संबंध के रूप में भी अच्छे और बुरी स्थिति को दर्शाता है। करियर में मंगल यदि शनि के साथ है तो डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, रक्षा सेवा, रत्न और भवन निर्माण से संबंधित कार्य के रूप में जाना जाता है।
लग्न में मंगल :
मंगल के लग्न में होने का अर्थ है कि जातक दिमाग का गर्म होगा। विवाह के बाद शुक्र अर्थात वीर्य तेजी से क्षय होने लगता है। कहा जाता है कि शुक्र ही मंगल की गर्मी को साधने में सक्षम होता है परंतु उसकी कमी से मंगल की गर्मी बढ़ जाती है। अर्थात भीतर का खून जल्दी जल्दी मस्तिष्क में चढ़ने और उतरने लगता है जिसके चलते स्वभाव में चिढ़चिढ़ापन और अनावश्यक क्रोध बना रहता है। इन कारणों से पति में उग्रता पैदा होती है और वह अपनी जिद का पक्का बन जाता है। तब वह पारिवारिक विघटन का कारण बन जाता है।
लग्न का यह मंगल जहां खुद को स्वभाव बिगाड़ता है वहीं सीधे तौर पर अपनी दृष्टियों से चौथे भाव अर्थात सुखों में (लग्न से चौथा), सहचर के कार्यों में सप्तम से, दसवां भाव), सहचर के शरीर को (लगन से सप्तम), सहचर के धन और कुटुम्ब (सहचर के दूसरे भाव) को अपने जबरन कंट्रोल में रखने का प्रयास करता है। जातक सहचर के कुटुम्ब और सहचर के भौतिक धन को अपना अपमान समझता है (लगन से अष्टम सहचर का कुटुम्ब और भौतिक धन तथा जातक का अपमान मृत्यु जान जोखिम और गुप्त रूप से प्रयोग करने वाला स्थान)।
इसके अलावा यदि मंगल पर राहु का असर है तो यह मंगल को और भी भड़का देता अर्थात खून में और भी तेजी बढ़ जाएगी। तब दिमाग लगभग सुन्न दशा में होगा। सोचने और समझने की शक्ति क्षीण रहेगी। तामसिक प्रवृत्ति बढ़ेगी। दवाइयों का सेवन बढ़ने लगगे। खून खराब होने के कारण और भी कई तरह की शारीरिक समस्याएं उत्पन्न होगी। इसके कारण जातक करना कुछ और चाहता है और हो कुछ और जाता है। यदि मंगल के अंदर शनि की दृष्टि या उसका असर मिला हो तो जातक का खून जमन लगता है। दिमाग की नसें फूली फूली रहती है। ब्रेन हेमरेज होने की संभावना रहती है। जातक परिवार की मामूली समस्या को भी किसी कसाई की तरह हल करने लगता है। परिवार के प्रति उसका प्रेम तो शून्य ही रहता है। आकस्मिक दुर्घटना या सिर में चोट की संभावन बढ़ जाती है।
और यदि मंगल के साथ केतु हो या किसी भी तरह से केतु से संबंध बन रहा हो तो केतु के असर से दिमाग में नकारात्मक विचारों की बाढ़ आ जाती है। ऐसे जातक को लाख समझाया जाए कि सबकुछ सही हो जाएगा परंतु वह नकारात्मक ही सोचेगा। अजीब अजीब से उदाहरण देना शुरू कर देता है। हर काम या बात को दिमाग से ही पहले से ही असफल कर देगा। वह बस बाधाओं और असफलताओं के बारे में ही सोचेगा। वह व्याभिचारी बन जाएगी और उसी में खुश रहेगा या आत्महत्या करने की ओर कदम बढ़ाएगा।
इसी प्रकार से मंगल पर अगर सूर्य का असर रहो तो जातक के दिमाग के अहंकार में डबल इंजिन लग जाएगी। और जातक किसी को कुछ नहीं समझेगा। इसके चलते जीवनसाथी के लिए तो वह नर्क का ही निर्माण कर देगा। साथी जातक या तो जीवन भर उस अहम को हजम करता रहता है अथवा किसी भी तरह से जातक से तलाक ले लेता है। इसी प्रकार से अन्य से संबंध की विवेचना की जा सकती है।
चतुर्थ मंगल
यह मंगल भी बड़ा खतरनाक होता है। कहते हैं कि हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे। यह मंगल भूमि, भवन, वाहन आदि सुखों पर मार करता है। मानसिक सुख और नींद की कामना करना बहुत दूर की कोड़ी है। माता की स्थिति बताएगी की यह कैसा मंगल है।
चौथे भाव में मंगल होता है तो जातक का स्वभाव चिढ़चिढ़ा होता है वह जान-पहचान वालों से ही लड़ता रहता है, जातक के निवास स्थान में इसी मंगल के कारण लोग कुत्ते-बिल्ली की तरह झगड़ा करते हैं। जबरन के झूठे तर्क उसकी जबान में होते हैं। यह मंगल ऐसे है जैसे कि मान लो सड़कर पर कोई अनजान व्यक्ति साथ में वाहन चला रहा है और वह उससे आगे निकल जाए तो उसे इस बात का भी बुरा लग सकता है और वह उसी से होड़ करने लगेगा। ऐसे में जरा सी चूक उसे अस्पताल का मुंह दिखा देती है। अब आप ही सोचिये की ऐसा मंगल अपने जीवन साथी के साथ कैसे व्यवहार करेगा? इसके व्यवहार के कारण पत्नी और माता हमेशा रुष्ठ रहती है। यह जातक माता और पत्नी ही नहीं बल्कि अपने पिता और भाई के कार्यों में दखल देने वाला होता है। ऐसे जातक को घर वालों से अधिक बाहर वालों से अधिक मोह होता है।
सप्तम भाव :
यहां यदि मंगल अकेलेा है और वह नेक और धर्मात्मा है तो उसकी पालना करने वाले भगवान विष्णु हैं। बेशुमार दौलत मिलेगी। इंसाफ पसंद है तो मुसिबत के वक्त सहारा मिलेगा। यदि मंगल सप्तम में हो या उस पर क्रूर दृष्टि डाल रहा हो, तो पारिवारिक व वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं रहेगा। राहु, केतु और शनि के साथ सही नहीं रहता।
अष्टम भाव :
मौत का फंदा जानों। बड़े भाई के होने की संभावना कम ही रहती है। हौसला तो बुलंद रहता है, लेकिन यदि नौकरी या व्यापार में ही उसका उपयोग करें तो ही सही है। जुबान का कड़वा है तो मूर्ख भी होगा। अष्टम भाव से आयु तथा जीवन में आने वाली बाधाओं का विचार किया जाता है। इस भाव से मंगल दोष बने अथवा इस पर मंगल की दृष्टि पड़े, तो अनेकानेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जातक बहुत ही घमंडी और नकारात्मक विचारों वाला होता है। राहु, केतु और शनि के साथ सही नहीं रहता।
बारहवां भाव :
कैसा होगा जातक : द्वादश भाव से शय्या सुख, व्यय, हानि, शासन दंड, कारावास, बदनामी आदि का विचार किया जाता है और यदि मंगल इस भाव से संबंध स्थापित करता हो या इसमें स्थित हो, तो अनावश्यक व्यय, मन में चिंता, परेशानियां, नींद का अभाव आदि होते हैं। व्यय भाव में होने से धन के होने की शर्त यह की हिंसक और कामुक प्रवृत्ति न रखें। घर में चोरी और शत्रुओं से हानि होने की आशंका। लाभ से अधिक व्यय होगा, इसलिए सावधानी और समझदारी से चलें। पत्नी से अनबन रह सकती है और जातक संतानहीन हो सकता है। राहु, केतु और शनि के साथ सही नहीं रहता।
मांगलिक दोष : किसी भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में मंगल लग्न, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम और द्वादश भाव में से किसी भी एक भाव में है तो यह 'मांगलिक दोष' कहलाता है। कुछ विद्वान इस दोष को तीनों लग्न अर्थात लग्न के अतिरिक्त चंद्र लग्न, सूर्य लग्न और शुक्र से भी देखते हैं। मान्यता अनुसार 'मांगलिक दोष' वाले जातक की पूजा वर अथवा कन्या का विवाह किसी 'मांगलिक दोष' वाले जातक से ही होना आवश्यक है।