जिनेवा। ब्लैक होल के विलय के 1 करोड़ साल बाद बनीं गुरुत्वीय तरंगों से हमें अनंत ब्रह्मांड को जानने में मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले ही वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगाया है कि इस सृष्टि में गुरुत्वीय तरंगों का निर्माण दो तारामंडलों के टकराव और उनके केंद्रीय ब्लैक होल के आपस में विलय के लगभग 1 करोड़ साल बाद हुआ। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि गुरुत्वीय तरंगों का यह निर्माण अब तक सोची गई गति से लगभग 100 गुना तेजी से हुआ है।
विदित हो कि सबसे पहले गुरुत्वीय तरंगों का पता इस साल की शुरुआत में चला था। एक सदी से भी पहले अल्बर्ट आइंस्टीन ने इस अवधारणा का जिक्र 'सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत' में कर दिया था और अब तक यह बताना संभव नहीं था कि गुरुत्वीय तरंगें किस बिंदु से पैदा होकर पूरे अंतरिक्ष में फैल गईं। ज्यूरिख विश्वविद्यालय, जर्मनी स्थित हाइडलबर्ग विश्वविद्यालय, चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज और पाकिस्तान के अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी संस्थान के अंतरिक्ष विज्ञानियों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने कम्प्यूटरों की मदद से इसका छद्म रूपांतरण (सिमुलेशन) करके इसका आकलन कर लिया है।
हर तारामंडल के मूल में एक व्यापक ब्लैक होल होता है, जो करोड़ों-अरबों सौर द्रव्यमानों के समतुल्य होता है। ब्रह्मांड का वास्तविक रूपांतरण करते हुए लगभग 3 अरब साल पुराने दो तारामंडलों का विलय कराया गया। दो केंद्रीय ब्लैक होल्स को तारामंडलों की टक्कर के बाद शक्तिशाली गुरुत्वीय तरंगों का उत्सर्जन करने के लिए जितने समय की जरूरत थी, उसका आकलन शोधकर्ताओं ने सुपर कम्प्यूटरों की मदद से किया। कम्प्यूटर के जरिए किए गए इस रूपांतरण का काम चीन, ज्यूरिख और हाइडलबर्ग में हुआ।
वैज्ञानिकों का मानना है कि गुरुत्वीय तरंगों का उपयोग जल्द ही ब्रह्मांड के सबसे बड़े ब्लैक होल के जन्म से जुड़े सवालों को सुलझाने में किया जाएगा। इसमें ब्लैक होल की उत्पत्ति कब और कैसे हुई? जैसे सवाल शामिल हैं। ब्रिटेन में डरहम विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं की अगुवाई में वैज्ञानिकों ने वृहद पैमाने पर ब्रह्मांड से जुड़े सिमुलेशन (छद्म रूपांतरण) किए जिसका उपयोग अब इस दिशा में किया जाएगा कि विशालकाय ब्लैक होल की टक्कर किस दर से होती है जिससे गुरुत्वीय तरंगें उत्पन्न होती हैं। इन तरंगों द्वारा हम अनंत ब्रह्मांड की उत्पत्ति का राज भी जान सकते हैं।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इन तरंगों के आयाम और आवृत्ति से उस चीज का शुरुआती द्रव्यमान भी पता चलेगा जिससे पहले ब्लैक होल की उत्पत्ति हुई थी, क्योंकि उनका जन्म 13 अरब वर्ष पहले हुआ था। इससे यह जानकारी भी मिलेगी कि उनकी उत्पत्ति कैसे और कहां हुई?
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि इवॉलव्ड लेजर इंटरफेरोमीटर स्पेस एंटीना डिटेक्टर के 2034 तक काम शुरू करने की संभावना है और इसके बाद बहुत बड़े आकार के ब्लैक होल के बीच की टक्कर से उत्पन्न गुरुत्वीय तरंगों का वर्ष में कम-से-कम दो बार पता लगाया जा सकेगा। इस वर्ष फरवरी में अंतरराष्ट्रीय लाइगो (लेसर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (एलआईजीओ) और वर्गो प्रयोगों से ब्लैक होल्स, न्यूट्रॉन स्टार्स, सुपरनोवा एक्सप्लोजन्स की ही जानकारी उपलब्ध नहीं होगी, वरन इससे हम ब्रह्मांड की उत्पत्ति और इसकी नियति के बारे में भी जानकारी हासिल कर सकेंगे।
आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत की खोज के ठीक 100 साल बाद वैज्ञानिकों ने बेहद अहम खोज की है। ऐसा माना जा रहा है कि इस खोज के बाद इंसान को ब्रह्मांड के चकित कर देने वाले रहस्यों के बारे में पता चल पाएगा। वैज्ञानिकों ने गुरुत्वाकर्षण तरंगों का खोज की है, जो कि प्रकाशीय तरंगों से पूरी तरह भिन्न हैं। इन तरंगों का सबसे पहले पता 14 सितंबर 2015 को पता चला। इस खोज को 'लाइगो' नाम के प्रयोग के द्वारा पता लगाया गया है। न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण की खोज के बाद इस दिशा में बेहद अहम शोध है।
यूरोप में एक संयुक्त प्रेस कांफ्रेस के दौरान वैज्ञानिकों ने कहा कि आइंस्टीन के लगभग सभी सिद्धांत प्रयोगों के द्वारा सत्यापित किए जा चुके थे, सिर्फ एक सिद्धांत का प्रयोगों द्वारा सत्यापन नहीं हो पाया था और यह 'गुरुत्व तरंगों का अस्तित्व' था। आज वैज्ञानिकों ने इन गुरुत्व तरंगों को साबित कर दिया और न्यूटन के सिद्धांतों से इतर आइंस्टीन का दिया गया यह बेहद अहम सिद्धांत प्रयोग के द्वारा सत्यापित हो गया।
क्या है लाइगो?
लाइगो (LIGO : लेजर इंटरफर्मेटर ग्रेविटेशनल-वेब ऑब्जरवेटरी) भौतिकशास्त्र का ऐसा प्रयोग है, जो ग्रेविटेशनल वेब्स का पता लगाने के लिए किया गया था। 1992 में शुरू किए गए इस अनुसंधान की सफलता अब मिल रही है। दुनियाभर से इससे 900 वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। 'लाइगो' को नेशनल साइंस फाउंडेशन (एनएसएफ) फंडिग कर रहा है।
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क्या हैं तरंगें?
ये तरंगें किसी तालाब में पत्थर मारने के बाद पैदा हुए लहरों की तरह हैं। इन तरंगों का गुणधर्म प्रकाशीय तरंगों के गुणधर्म से बिलकुल अलग है। वैज्ञानिकों ने इसे एक महान उपलब्धि करार देते हुए इसकी तुलना उस क्षण से की है, जब ग्रहों को देखने के लिए गैलीलियो ने दूरदर्शी यंत्र का आविष्कार किया था। ब्रह्मांड में जोरदार टक्करों के कारण पैदा होने वाली इन तरंगों की खोज खगोलविदों को इसलिए उत्साहित कर रही है, क्योंकि इससे ब्रह्मांड का अवलोकन उसकी क्रमबद्धता में करने का एक नया रास्ता खुल गया है। उनके लिए यह एक मूक फिल्म से बोलती फिल्मों में प्रवेश करने जैसा है, क्योंकि ये तरंगें ब्रह्मांड की आवाज हैं।
कोलंबिया विश्वविद्यालय के अंतरिक्ष विज्ञानी और खोज दल के सदस्य एस. मार्का ने कहा कि इस क्षण से पहले तक हमारी नजरें तो आसमान की ओर होती थीं लेकिन हम वहां का संगीत नहीं सुन पाते थे। इस नई खोज में खगोलविदों ने अत्याधुनिक एवं बेहद संवेदनशील लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल वेव ऑब्जर्वेटरी या लाइगो का इस्तेमाल किया जिसकी लागत 1.1 अरब डॉलर है। लाइगो की मदद से उन्होंने दूर दो ब्लैक होल के बीच हुई हालिया टक्कर में पैदा हुई गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाया। कुछ भौतिकविदों का कहना है कि यह खोज वर्ष 2012 की हिग्स बोसॉन कण (गॉड पार्टिकल) जितनी बड़ी है, वहीं कुछ वैज्ञानिक इसे उससे भी बड़ी खोज कह रहे हैं। खोज दल के सदस्यों से इतर पेन स्टेट के भौतिक विज्ञानी अभय अष्टेकर ने कहा कि इसकी तुलना सिर्फ गैलीलियो द्वारा दूरदर्शी यंत्र लेकर आने और उससे ग्रहों को देखना शुरू करने से ही की जा सकती है।
उन्होंने कहा कि ब्रह्मांड को लेकर हमारी समझ में नाटकीय ढंग से बदलाव आया है। गुरुत्वीय तरंगों की सबसे पहली व्याख्या आंइस्टीन ने वर्ष 1916 में अपने सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत के तहत की थी। ये चौथी विमा (फोर्थ डाइमेंशन) में पैदा हुई दिक्-काल में असाधारण रूप से कमजोर तरंगें हैं। जब बड़े लेकिन सघन पिंड, जैसे ब्लैक होल या न्यूट्रॉन स्टार आपस में टकराते हैं तो उनके गुरुत्व से पूरे ब्रह्मांड में तरंगें पैदा होती हैं। वैज्ञानिकों को 1970 के दशक में की गई गणनाओं के आधार पर गुरुत्वीय तरंगों के अस्तित्व का अप्रत्यक्ष साक्ष्य मिला था। इस उपलब्धि को वर्ष 1993 का भौतिकी का नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया था। बहरहाल, मौजूदा घोषणा गुरुत्वीय तरंगों की सीधी पहचान से जुड़ी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि जल्द ही हजारों की संख्या में हमें ऐसे संकेत मिल सकते हैं, जो कि लाइगो की पकड़ में आएंगे।
वैज्ञानिकों के अनुसार हमें इस बात की भी जानकारी मिली है कि ब्लैक होल्स हमारी आशाओं से अधिक अवसरों पर टकराते रहते हैं और कुछ शोधकर्ताओं ने यह भी अनुमान लगाया है कि ब्लैक होल्स में कई तरह का डार्क मैटर भी हो सकता है। इस बात को भी सुनिश्चित माना जा सकता है कि शोध के नए उपकरणों के हाथ लगने के साथ ही कुछ अप्रत्याशित निष्कर्ष भी सामने आ सकते हैं। पहली बात यह भी हो सकती है कि हमें पहले से ही खोजे गए ब्लैक होल्स की तुलना में ब्लैक होल्स की नई जोड़ियां देखने को मिलें। वर्तमान में हमारे पास जो उपकरण हैं, वे अपनी पूरी सामर्थ्य की तुलना में करीब तीन गुना कम संवेदनशील हैं। ये लाइगो जब अपनी संपूर्ण संवेदनशीलता से काम करेंगे तो अमेरिका के लुइसियाना और वॉशिंगटन स्टेट में दो लाइगो डिटेक्टर्स और पीसा के पास इटली में वर्गो प्रयोग प्रति वर्ष दर्जनों से लेकर सैकड़ों ब्लैक होल्स की मौजूदगी की जानकारियां देंगे।
इस तरह की बड़ी संख्या में जानकारियां ब्लैक होल्स की संख्याओं की जानकारी देंगी और खगोलविदों को सहारा देंगी कि वे समूचे ब्रह्मांड में उनकी जनसंख्या की विशेष बातों को बताएं और उन सिद्धांतों का पता लगाएं कि इनका निर्माण कैसे होता है? हम यह देखने की भी उम्मीद कर सकते हैं कि न्यूट्रॉन स्टार्स आपस में कैसे मिलते हैं, सितारों का अत्यधिक सघन व छोटा शेष भाग कैसे मिलकर ब्लैक होल्स बनाता है।
जहां तक ब्लैक होल्स की बात है तो वे असाधारण रूप से सामान्य होने के साथ अत्यधिक विशाल आकार में होते हैं (और उनके द्रव्यमान, स्पिन या घूमने की गति और भार को पूरी तरह से वर्णित किया जा सकता है) लेकिन न्यूट्रॉन्स स्टार्स की दुनिया बहुत ही विचित्र और जटिल होती है। उनका भार मैनहटन के आकार के हिस्से में पैक किए गए सूर्य के भार की तुलना अधिक होता है और उनका चुम्बकीय पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र की तुलना में अरबों गुना अधिक होता है।
इनके बारे में हमें इतना ही पता है कि कभी-कभी न्यूट्रॉन्स स्टार्स (सितारों) का जोड़ा एक-दूसरे में ही चक्कर लगाता रहता है। इनसे पैदा होने वाली गुरुत्वीय तरंगें हमें पहली बार इस बात की जानकारी देंगी कि न्यूट्रॉन सितारों की अबाधित तस्वीर यह बताने के लिए काफी होगी कि वे कैसे परस्पर प्रभाव डालते हैं। ब्लैक होल्स के ठीक विपरीत नग्न आंखों से दिखने वाले न्यूट्रॉन्स तारे प्रकाश छोड़ते हैं और इनसे अन्य तरह का विकिरण होता है। जब ये मिलते हैं तो ये गामा किरणों या एक्स किरणों का बहुत तेज प्रकाश पैदा करते हैं। इन किरणों के साथ-साथ एक ऐसी हल्की दिखाई देने वाली चमक (आफ्टरग्लो) दिखती है जिसे कई दिनों या सप्ताहों के बाद तक देखा जा सकता है।
लाइगो और वर्गो के साथ से हम आसमान में कुछेक डिग्री पर ही आपस में टकराते न्यूट्रॉन्स की स्थिति का सही-सही पता लगा सकते हैं। इसके बाद ऑप्टिकल टेलीस्कोप की मदद से हम इनके विलय के दौरान छोड़े गए रेडियोएक्टिव पदार्थ को हल्के से सिग्नल के तौर पर आसमान के एक छोटे से टुकड़े में खोज सकते हैं। गुरुत्वीय और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिग्नल्स का एकसाथ अवलोकन खगोल विज्ञान के बहुत सारे दीर्घकालिक रहस्यों पर से पर्दा उठा सकता है। इस प्रकार के रहस्यों में ऊर्जा संपन्न उस चमक के बारे में जानकारी होगी जिसे शॉर्ट गामा बर्स्ट्स के नाम से जाना जाता है। इसी तरह से प्रकृति में पाए जाने वाले भारी तत्वों और पृथ्वी में पाए जाने वाले सोने की उत्पति का राज पता लगेगा।
गुरुत्वीय तरंगें हमें यह भी बता सकती हैं कि 'सुपरनोवा विस्फोट में भीतरी क्षरण' के तौर पर क्या होता है? यह स्थिति तब आती है जबकि विशाल आकार वाले तारे का भीतरी भाग इसके परमाणु ईंधन को समाप्त कर देता है और यह तारे के विशालकाय भार के नीचे दब जाता है। यह बात एस्ट्रोफिजिक्स के जानकारों के लिए भी अहम है, क्योंकि तारे में विस्फोट की कार्यप्रणाली तारे के बहुत गहरे भाग में स्थित होती है। सुपरनोवा से निकलने वाली तरंगें सीधे तारे के केन्द्रक से चलकर हमारे डिटेक्टर्स तक पहुंच सकती हैं। जब किसी सुपरनोवा का भीतरी भाग नष्ट हो जाता है तो यह क्षण असाधारण रूप से दुर्लभ होता है। हमारी आकाशगंगा के पास इसे आखिरी बार 1987 में देखा गया था। इस तरह की अंतिम ज्ञात घटना हमारी आकाशगंगा में करीब 400 वर्ष पहले हुई थी।
अगर इस घटना के बारे में विस्तृत प्रभावों के आधार पर देखा जाए तो न्यूट्रॉन तारों से निकलने वाली गुरुत्वीय तरंगें इस बात को जाहिर कर सकती हैं कि हमारे ब्रह्मांड का विस्तार कितना है? ब्रह्मांड विज्ञान की वास्तविक स्थिति यह मानी जाती है कि बड़े विस्फोट (बिग बैंग) के बाद ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है और यह विस्तार इस कारण से हो रहा है, क्योंकि इसे अदृश्य 'डार्क इनर्जी' से सहायता मिल रही है। यह विचार भी दूरस्थ ब्रह्मांड में सुपरनोवाओं के प्रेक्षण के बाद आया है। गुरुत्वीय तरंगें और भी कई तरह की पूरक जानकारी दे सकती हैं। क्या गुरुत्वीय सिग्नल्स हमें इनकी गहनता या गहराई के बारे में बताते हैं कि इस घटना की दूरी क्या है? जबकि इस विलय का ऑप्टिकल एपीयरेंस बताता है कि धरती तक इसके रास्ते के बीच इसकी कितनी अधिक रोशनी को खींचकर लंबा किया जाता है या रेडशिफ्ट किया जाता है।
(विदित हो कि भौतिक शास्त्र में रेडशिफ्ट का तात्पर्य यह है कि यह प्रक्रिया तब होती है जबकि किसी वस्तु से निकलना वाला प्रकाश या अन्य इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विकरण वेव्लेंग्थ (तरंग आयाम) में बदल जाता है अथवा स्पेक्ट्रम के रेडएंड पर केन्द्रित हो जाता है।)
इन दोनों जानकारियों से यह परिभाषित होता है कि किस दर से ब्रह्मांड फैल रहा है। अगर इस गति को स्वतंत्र रूप से माप लिया जाता है तो हमें अपने ब्रह्मांडीय मॉडल्स को जांचने, परखने में बहुत मदद मिलेगी। इतना ही नहीं, लाइगो और वर्गो की मदद से गुरुत्वीय तरंगों की पृष्ठभूमि में आती हल्की आवाज को भी सुन सकेंगे, जो कि समूचे जगत के खाली अंतरिक्ष में गूंज रही है। इस बारे में सैद्धांतिक भौतिकी के बहुत सारे सिद्धांत कहते हैं कि हमेशा मौजूद रहने वाली गुरुत्वीय ऊर्जा, ब्लैक होल्स के लगातार एक-दूसरे में समाने से पैदा होती है या फिर महाविस्फोट (बिग बैंग) के तुरंत बाद बहुत तेजी से होने वाले ब्रह्मांड के विस्तार की निरंतर घटनाओं से पैदा होती हैं। अगर यह गुनगुनाहट पर्याप्त तेज होती है तो इसे बहुत दूर अलग-अलग लगे डिटेक्टर्स जैसे लाइगो और वर्गो पर सहसंबद्ध सिग्नल के तौर पर सुनी जा सकती है।
आगामी कुछेक वर्षों तक गुरुत्वीय तरंग विज्ञान की प्रगति सीमित होगी, क्योंकि हमारे डिटेक्टर्स की संवेदनशीलता या क्षमता सीमित रहेगी। लेकिन अगर इसके प्रदर्शन में कोई बेहतरी आती है तो इस बात की भी संभावना है कि हम विभिन्न स्रोतों की मदद से घटनाओं का पता लगा सकेंगे। एक बड़े अंतरराष्ट्रीय निवेश के चलते लाइगो और वर्गो ने पहले ही असाधारण उपलब्धि हासिल की है। इसे हम 14 सितंबर, 2015 को हुई घटना की विशेषताओं के तौर पर समझ सकते हैं। अंतरिक्ष से मिला हमें सिग्नल किन्हीं दो वस्तुओं के द्वारा पैदा किया गया होगा और इनमें से प्रत्येक का भार मोटे तौर पर हमारे सूर्य की तुलना में 35 गुना बड़ा रहा होगा। इसे स्विट्जरलैंड के बराबर ऑर्बिट में बंद किया गया होगा, जो कि 1 सेकंड में कम से कम 50 बार चक्कर लगाता होगा।
इसमें लगी ऊर्जा भी चौंका देने वाली होगी, जो कि समूचे ब्रह्मांड में सक्रिय सितारों से भी थोड़े समय के लिए अधिक होगी। लेकिन पृथ्वी तक पहुंचने वाले इस सिग्नल दुनिया की सबसे अतिसूक्ष्म और ज्ञान न होने वाली घटनाओं में से एक होगी जिन्हें मनुष्यों ने कभी मापने की कोशिश की होगी। अब चूंकि गुरुत्वीय तरंगों के डिटेक्टर्स का परिवर्तन सनसनीखेज खोजों से लेकर एस्ट्रोफिजिक्स और कॉस्मोलॉजी के रूटीन उपकरणों में हो गया है इसलिए अंतरिक्ष में नजर न आने वाली कोई भी घटना समूचे ब्रह्मांड को जगमग कर देगी, जो कि अब तक पूरी तरह से अंधकार में था।