आपको याद दिला देंगे ये गेम्स आपका बचपन

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कुछ ऐसी चीजें होती हैं जिनका नाम सुनते ही आंखों के सामने से पूरा बचपन गुजर जाता है। एक बार फिर याद आ जाता है कि आपके बचपन के दिन कितने सुहाने थे। ऐसे लोग जिनका बचपन अस्सी और नब्बे के दशक में बीता है, उनके खेल या गेम्स थे बहुत ही निराले और मजेदार। 


 
 
आज के दौर की तरह तब कंपनियों का दिमाग लगे हुए मनोरंजन के साधन नहीं थे बल्कि बच्चों द्वारा सोचे और खोजे गए खेलों से ही बच्चे जमकर खुश रहते थे। एक दूसरे के साथ बैठे हुए या दौड़ते हुए, उस दौर के बच्चों को जो आनंद आता था वह अब नामुमकिन लगता है। आइए फिर याद करें उन खेलों की जिन्होंने हमारे बचपन को बना दिया सुनहरा समय। जिनमें से कुछ आज के बच्चों को पता है वहीं कुछ अब बिल्कुल ही गायब हो चुके हैं। 
 
1. छुपमछाई या हाइड एंड सीक : छुपमछाई सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि लगभग सारी दुनिया के बच्चे खेलते आए हैं। लुका छिपी के नाम से खेले जाने वाले इस खेल की खासियत थी कि इसे घर के अंदर और बाहर कहीं भी खेला जा सकता था। सभी बच्चे अपने हिसाब से छुपते थे कि जबकि कोई एक उन्हें खोजता था। छुपने के लिए जगह का दायरा निश्चित होता था। 
 
2. पव्वा या हॉपस्कॉच और चॉकलेट : जहां कुछ खेल लड़कियों और लड़कों द्वारा समान रूप से खेलें जाते थे वहीं कुछ खेल खासतौर पर लड़कियों की पसंद थे। जमीन पर कुछ आकृतियां बनाकर, कूदने वाले खेल खासतौर पर लड़कियों के गेम्स थे। ऐसे ही खेल थे पव्वा और चॉकलेट। पव्वा में कुल 10 बॉक्स, पांच पांच के सेट में बनते थे। जिन्हें घर कहा जाता था। इस गेम में पत्थर फेंककर एक घर घेरना होता था और इसके बाद पूरे 10 बॉक्स से उछलकर गुजरना होता था। चॉकलेट का पैटर्न ऐसा ही था परंतु आकृति का स्ट्र्क्चर बदल जाता था। 
 
अगले पेज पर सोलह सार का रहस्यमयी संसार ..... 
 

3. सितोलिया या पिट्टू : इस खेल के लिए दो टीमों की जरूरत होती थी। सात समतल पत्थरों को एक के उपर एक जमाकर उन्हें बॉल मारकर नीचे गिराना था परंतु हर टीम को यह काम दूसरी टीम के उन्हें पत्थर मारकर आउट करने के पहले करना होता था। 
 
4. सोलह सार : यह शतरंज के खेल की तरह था जिसमें हर खिलाड़ी के पास सोलह स्थान होते थे। शतरंज से अलग सभी गोटियां एक समान ताकत लिए होती थीं। इसमें न ही कोई राजा होता था और न ही प्यादा। 
 
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5. राजा मंत्री चोर सिपाही : चार लोगों में खेले जाने वाले इस इंडोर गेम में कागज की पर्चियों पर राजा, मंत्री, चोर और सिपाही लिखा होता था। सभी चारों खिलाड़ियों को एक पर्ची चुननी होती थी जिसमें मंत्री की पर्ची वाले खिलाड़ी को चोर और सिपाही की पर्ची चुनने वाले का पता लगाना होता था। यह खेल अब बच्चों द्वारा नहीं खेला जाता और इसे लुप्तप्राय माना जा सकता है। 


 
 
6. नाम, वस्तु, शहर, फिल्म : यह खेल एक तरह से बच्चों की जानकारी और याद्दाश्त का पता लगाता था। एक कागज पर नाम, वस्तु, शहर और फिल्म के कॉलम बना कर उनमें किसी अल्फाबेट पर नाम, वस्तु, शहर और फिल्म के नाम लिखना होते थे। सबसे यूनिक नाम बताने वाले खिलाड़ी जीत जाते थे। 
 
अगले पेज पर ताश के गेम पर बिजनेस ..... 

7. ताश के गेम (तीन दो पांच और सत्ती अठ्ठी) : ताश के पत्तों से कम खिलाड़ी होने की सूरत में मनोरंजने के लिए तीन दो पांच और सत्ती अठ्ठी का सहारा लिया जाता था। तीन दो पांच में तीन खिलाड़ी और सत्ती अठ्ठी में दो खिलादी खेलते थे। पत्ते दो सत्ती और उसके उपर के ही होते थे। इनमें बड़े पत्ते के सहारे सर बनाए जाते थे और एक खिलाड़ी को तुरुप बोलना पड़ती थी। इन दोनों गेम्स के कुछ नियम होते थे जिनके मुताबिक खिलाड़ी जीतता था। 
 
8. व्यापार या बिजनेस : यह एक बोर्ड गेम किस्म का था। इसमें कई छोटे बॉक्स में देश के शहरों के नाम लिखे होते थे। हर खिलाड़ी को कुछ पैसे मिलते थे जिनसे उन्हें शहर खरीदने को मिलता था। इन शहरों पर आने वाले खिलाड़ी उन्हें कुछ किराया चुकाते थे। इसे व्यापार या बिजिनेस कहा जाता था। इसमें किसी का हारना घंटों या दिनों का काम था क्योंकि खिलाड़ी पर कर्ज, कंगाल होने जैसी स्थितियां बहुत बाद में आती थीं।


 
 
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9. लुडो : व्यापार की तरह लुडो भी एक बोर्ड गेम था। इसमें चार कलर के चार गोटियों के साथ चार खिलाड़ी अंत तक पासे के हिसाब से आगे बढ़ते थे। यह भारतीय गेम पचीसी पर आधारित था परंतु उसके मुकाबले कहीं आसान था। 


 
 
10. अश्ट चंग पे : अश्ट चंग पे अधिकतम चार खिलाड़ियों के साथ खेला जाने वाला गेम था। इसमें इमली के बीच को दो भागों में तोड़कर पासे का काम लिया जाता था। इनके माध्यम से आई संख्या के मुताबिक गोटी आगे बढ़ती थी और अन्य गोटी के आने पर मर जाती थी। इस खेल में एक नियत स्थान पर पहुंचने से जीत होती थी। 
 
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11. सांप-सीढ़ी : सांप-सीढ़ी या स्नेक लैडर का गेम उस दौर के बच्चों का पसंदीदा खेल हुआ करता था। यह एक ऐसा बोर्ड गेम था जिसमें खिलाडी को पांसे के अनुसार आगे बढ़ना होता था। जिस घर में उनका पांसा उन्हें पहुंचाता था उसके हिसाब से सीढ़ी होने पर कई घर उपर जाने को मिलता था और सांप होने पर गोटी की मौत हो जाती थी। 


 
 
12. कैरम : कैरम एक तरह का बोर्ड गेम था और इसके लिए बोर्ड, गोटियां और स्ट्राइकर कुछ अलग व्यवस्था होती थीं। यह अन्य बोर्ड गेम्स के मुकाबले महंगा होता था और सभी घरों में उपलब्ध नहीं था। इसमें गोटियां गोल लकड़ी की बनी होती थीं और एक खास तरह के उंगली के एक्शन से बोर्ड पर तेजी से सरकती थीं। इन्हें बोर्ड के चार किनारों पर बने छेदों में गिराना होता था। एक गोटी को रानी कहते थे। इसके खास नियम थे जिन पर चलकर जीत होती थी। 
 
अगले पेज पर कंचे और गिल्ली डंडा... 

13. कंचे : छोटी छोटी कांच की कई गोलियों को खुली जगह पर फैलाकर हाथ में कुछ गोलियां रखकर निशाना लगाया जाता था। यह काफी कठिन काम था क्योंकि गोलियां लुढ़कती थीं। बच्चे इसमें माहिर हो जाते थे और थोड़ी प्रेक्टिस के बाद कंचों से कंचो पर निशाना साध ही लेते थे। 
 
14. गिल्ली डंडा : बाहर खेले जाने वाले खेलों में गिल्ली और डंडा काफी प्रचलित खेल था। एक बडे डंडे और छोटी सी लकड़ी से गिल्ली और डंडा बनाए जाते थे। बड़े डंडे से छोटी लकडी पर मारा जाता था जिससे वह उछलती थी। इसी उछलने के दौरान उसे जोर से बॉल की तरह हिट किया जाता था और दूर पहुंचाया जाता था। यह खेल प्रचलित तो था परंतु काफी खतरनाक भी था। इसके कारण कई हादसे भी हो जाते थे। खासतौर पर आंखों को नुकसान होने के कई मामले सामने आए।
 
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15. मोशम्पबा : यह खेल खासतौर पर लड़कियों द्वारा खेला जाता था। एक छोटे गाने के बाद अन्य लड़कियों को दो नामों में से चुनना पड़ता था। जिस नाम को वे चुनती थीं वह उस लीडर लड़की की तरह हो जाती थी। अंत में दोनों ग्रुपों के बीच रस्साकशी की तरह शक्ति प्रदर्शन होता था और आखिर में किसी एक ग्रुप की जीत होती थी। 
 
16. नदी-पहाड़ और बर्फ-पानी : नदी पहाड़ या बर्फ पानी, ऐसे खेल थे जिनमें कम दौड़ने का काम था और कई बच्चों की जरूरत थी। एक नियत जगह पर छोटी छोटी जगहों को नदी और पहाड़ में बांट दिया जाता था। पहाड या नदी पर रहने वाले आउट होते थे। इससे पहले की आपको आउट कर दिया जाए, आपको सुरक्षित जगह पहुंचना होता था। बर्फ पानी में भी बच्चों को बर्फ कहने पर बिना हिले रहना पड़ता था। अगर आपने मूवमेंट की तो आप आउट। 
 
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17. कॉपी क्रिकेट : कॉपी क्रिकेट में क्रिकेट की तरह आउट, रन बनाने और टीमों की जरूरत होती थी परंतु यह किसी मैदान पर न खेला जाकर एक किताब की मदद से खेला जाता था। किताब पर डले पेज नंबरों पर नियम आधारित थे। हर एक खिलाड़ी को किताब का कोई भाग खोलना होता था जिसके बाद नियम पर आधारित रन बनते थे या खिलाड़ी आउट हो जाते थे। 
 
18. टिपी टिपी टॉप :  टिपी टिपी टॉप व्हाट कलर यू वांट। इसके बाद दाम दे रहा बच्चा अपनी पसंद का कलर बोलता था और जो भी बच्चा इस कलर को नहीं छू रहा होता था वह आउट हो जाता था। ट्रिक थी कि ऐसा कलर बोला जाए जो आसपास न हो। बच्चों को इतना मजा आता था कि उस समय गुजरने वाले लोगों के कपडों पर भी कोई कलर होने पर उन्हें पकड़ने से झिझकते नहीं थे। 
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