एक था सिपाही जो भूल गया था रास्ता, भूख से उसका बुरा हाल था। जंगल में दिखी उसे एक झोंपड़ी, उसने दरवाजे पर जाकर खटखटाई कुंडी। एक बुढ़िया बाहर निकली लाठी टेक, सिपाही ने कहा उसको लगी है भूख। बुढ़िया ने कहा उसके पास नहीं है कुछ भी सामान, कुछ भी बनाना होगा नहीं उसके लिए आसान। सिपाही ने कहा कोई बात नहीं मैं कुल्हाड़ी का हलवा बनाऊँगा, उसका स्वाद आपको भी चखाऊँगा।
सिपाही ने निकाली कुल्हाड़ी झोले में से, और जलते चूल्हे में लकड़ियाँ कर दी आगे। उसने माँगी एक पतीली, जो बुढ़िया ने बहुत बुरा मुँह बनाकर दी। सिपाही ने गुनगुनाते हुए पतीली को आग पर चढ़ाया, फिर कुल्हाड़ी डालकर थोड़ा सा हिलाया। पास में पड़े लोटे से पानी पतीली में उँडेला, फिर हिलाकर मुँह में ऊँगली डाली और फिर बुदबुदाया- 'वाह!'। सुनकर बुढ़िया चौंकी और चूल्हे के पास आकर बैठी। सिपाही ने कहा-'पर...अगर होता कुछ आटा तो बात बन जाती'
बुढ़िया उठी और आटा लाकर सिपाही को दिया, उसने फौरन आटा पतीली में डाल लिया। फिर एक बार कुल्हाड़ी को पतीली में हिलाया और बड़बड़ाया-'वाह-वाह! क्या बात है! पर..।' 'पर क्या? बुढ़िया बोली हिलाकर सिर। 'अगर इसमें पड़ जाती कुछ चीनी तो बात बन जाती नानी।' नानी संबोधन सुनकर बुढ़िया और पिघली, वह कोठरी से दो कटोरी चीनी लेकर निकली।
सिपाही ने डाल दी चीनी पतीली में और फिर हिलाई कुल्हाड़ी। 'हूँ..' उसने हुँकारा भरा, अब बना है कुल्हाड़ी का हलवा शानदार, लाओ कटोरी आपको भी परोसूँ चम्मच चार। बुढ़िया बहुत खुश थी हलवा खाकर, सिपाही की भूख भी मिटी पेट भरकर। बुढ़िया जान ही नहीं पाई, सिपाही ने हलवा खाने की क्या तरकीब थी अपनाई!