नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Netaji subhash bose) के घर के सामने एक बुढ़िया रहती थी। वो एक गरीब भिखारिन (Bhikarin) थी। वे देखते थे कि वह भिखारिन (Beggar) हमेशा भीख मांगती थी और उसका दर्द साफ दिखाई देता था। उसकी ऐसी अवस्था देखकर उसका दिल दहल जाता था। भिखारिन से मेरी हालत कितनी अच्छी है यह सोचकर वे स्वयं शर्म महसूस करते थे।
उन्हें यह देखकर बहुत कष्ट होता था कि उसे दो समय की रोटी ( Roti) भी नसीब नहीं होती। बरसात, तूफान, कड़ी धूप और ठंड से वह अपनी रक्षा नहीं कर पाती। यदि हमारे समाज में एक भी व्यक्ति ऐसा है कि वह अपनी आवश्यकता को पूरा नहीं सकता तो मुझे सुखी जीवन जीने का क्या अधिकार है और उन्होंने ठान लिया कि केवल सोचने से कुछ नहीं होगा, कोई ठोस कदम उठाना ही होगा।
सुभाषचंद्र बोस के घर (House) से उसके कॉलेज (Collage) की दूरी 3 किलोमीटर थी। जो पैसे उन्हें खर्च के लिए मिलते थे उनमें उनका बस का किराया भी शामिल था। उस बुढ़िया की मदद हो सके, इसीलिए वह पैदल कॉलेज जाने लगे और किराए के बचे हुए पैसे (Paise) वह बुढ़िया (Budhiya) को देने लगे।