यह घटना उन दिनों की है, जब सत्येन्द्रनाथ बोस जब एम.एस.सी. में पढ़ रहे थे। गणित के प्रश्न में सर आशुतोष मुखर्जी ने एक कठिन सवाल रख दिया। इस सवाल को किसी विद्यार्थी ने हल नहीं किया। यह देखकर सर आशुतोष बहुत नाराज हुए।
उन्होंने एक दिन छात्रों और अध्यापकों के सामने अपने मन की नाराजगी प्रकट कर दी। 'आप लोग क्या पढ़ाते हैं और ये छात्र क्या पढ़ते हैं, मेरी तो समझ में नहीं आता। इस बार गणित के पेपर में मैंने एक सवाल दिया जिसे कोई हल नहीं कर पाया। बड़ी शर्म की बात है।'
प्रो. आशुतोष मुखर्जी कुलपति और गणित के महान विद्वान थे। उनकी बात काटने का साहस किसी को न था। सिर झुकाए सबने उनकी बात सुन ली। लेकिन एक युवक ने कहा- 'सर! जब प्रश्न ही गलत हो तो उसे हल कैसे किया जाए।' उसके यह कहते ही चारों ओर सन्नाटा छा गया।
सर आशुतोष को चुनौती देना मामूली बात न थी।
प्रो. आशुतोष ने पूछा- 'तुम कैसे कहते हो कि वह प्रश्न गलत था?'
उस युवक का नाम सत्येन्द्रनाथ बोस था। उसने कहा- 'वह प्रश्न मुझे याद है। कहें तो इसी समय आपके सामने उसकी गलती बता सकता हूं।' और उन्होंने प्रश्न को गलत सिद्ध कर दिया।
सर आशुतोष ने युवक सत्येन्द्रनाथ की पीठ ठोक कर उनके प्रतिभा की प्रशंसा की। ऐसे थे महान भौतिक विज्ञानी और पद्मविभूषण से सम्मानित सत्येंद्रनाथ बोस।