किसी शहर में जगन नाम के एक व्यक्ति का छोटा-सा परिवार था। जगन अपनी पत्नी और छोटे-से बच्चे के साथ बड़े ऐश और आराम के साथ जीवन बिता रहा था। उसकी पत्नी और बच्चा रोज उसकी बातें प्रेम से सुनते थे।
जगन लोगों को बेवकूफ बनाने में माहिर था। वह हमेशा सोचता था कि उसका बच्चा उसकी बुद्धिमानी की वजह से एक बहुत अच्छा इंसान बनेगा। समय कब बीत गया, पता ही नहीं चला था।
एक दिन ऐसा आया, जब जगन के बच्चे का विद्यालय में प्रवेश हो गया। जगन को अपनी ट्रेनिंग पर पूरा भरोसा था। वह बड़े विश्वास के साथ कह सकता था कि उसके बच्चे को कोई भी बेवकूफ नहीं बना सकता है। जगन यह भी जानता था कि कोई अन्य समस्याग्रस्त बालक या फिर विशिष्ट बालक भी उसके बच्चे से मात खा जाएंगे।
एक दिन विद्यालय के शिक्षक जगन के सामने बालक की शिकायत लेकर आए। जगन के सामने जैसे ही उसके बच्चे का अपराध सामने आया, वैसे ही उसका पूरा दिमाग रिवर्स होकर वीडियो रील की तरह चलने लगा। अब तो सिर्फ अतीत की यादें थीं।
जगन को ठीक-ठीक याद है, जब वह अपने इस दोस्त की रोज कोई न कोई चीज चुरा लिया करता था और फिर वापस करता था। उसे कक्षा 2 से लेकर कक्षा 3 तक 'खोया-पाया' विभाग प्रमुख का पद दिया गया था। अपनी कार्यकुशलता को साबित करने के लिए जगन हर रोज कई सहपाठियों के कुछ सामान चोरी कर लेता था और बाद में वह उन्हें यह बताकर वापस कर देता था कि उसकी पेंसिल नल के पास पड़ी थी या फिर उसकी रबर कक्षा के बाहर पड़ी मिली थी।
विभाग ऐसा कि सबका रोज काम। अब कोई वस्तु किसी को मिलती तो फौरन जगन के पास आती और अगर किसी की कोई वस्तु खोती तो वह जगन के पास विनती करता था। जगन अपनी बुद्धिमत्ता के ऐसे ही किस्से रोज अपने बच्चे को सुनाता था। वह जिस विभाग में जैसे भी रहा, बिना काम किए लोगों को आसानी से बेवकूफ बना देता था।
आज उसका बेटा कक्षा 2 में आ चुका था और उसने किसी की पेंसिल को चुराया था। जगन अपने बच्चे को अच्छा बना देखना चाहता था। जगन सोच रहा था कि पता ही नहीं चला और मैं 42 साल का हो गया हूं। ऐसा लगता है, जैसे मैं आज भी वही बच्चा हूं।
जगन ने अपने बच्चे की ओर बिना गुस्सा किए प्यार से देखते हुए कहा- 'बेटे, 'खोया-पाया' विभाग आज भी मेरे पास है, लेकिन अब तक पता ही नहीं था कि क्या खोया और क्या पाया?'