Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

समर सीजन पर कविता : भाप सी निकलती है...

हमें फॉलो करें समर सीजन पर कविता : भाप सी निकलती है...
webdunia

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

हालत बेहाल हुई,
आता है अब मन में।
चड्डी-बनियान पहन,
दौड़ पड़े आंगन में।
 
गर्मी है तेज बहुत,
शाम का धुंधलका है।
हवा चुप्प सोई है,
सुस्त पात तिनका है।
 
चिलकता पसीना है,
आलस छाया तन में।
 
पंखों की घर्र-घर्र,
कूलर की सर्राहट।
एसी न दे पाया,
भीतर कुछ भी राहत।
 
मुआं उमस ने डाला,
घरभर को उलझन में।
 
आंखें बेचैन हुईं,
सांसें अलसाई हैं।
चैन नहीं माथे को,
नींदें घबराई हैं।
 
भाप सी निकलती है,
संझा के कण-कण में। 

 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

दोहे : गुटका पान चबाय के, लोग दिखाते शान...