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बाल कविता : गुड़ का ढेला

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Kids Poem
 
गुड़ का ढेला देख छबीली,
चींटी मन ही मन मुस्काई।
अभी चढ़ूंगी इस पर्वत पर,
कोई मुझे न रोके भाई।
 
चींटा बोला बहन संभलकर,
सोच समझकर इस पर चढ़ना।
गरमी पाकर गुड़ का ढेला,
कर देता है शुरू पिघलना।
 
गुड़ के ढेले पर चढ़कर ही,
मेरे दादा स्वर्ग सिधारे।
गुड़ के पास नहीं गरमी में,
जाता हूं मैं डर के मारे।
 
शक्कर के दाने ही मुझको,
चींटी दीदी बहुत सुहाते,
शक्कर के डिब्बे में मौका,
पाकर हम भीतर घुस जाते।

(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

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