करवा चौथ का त्योहार भारतीय परंपरा का खास हिस्सा है। करवा चौथ से शीत ऋतु का आगमन माना जाता है। चौथ की तिथि को जोड़कर इसके बारहवें दिन दीपावली का पर्व होता है। दशहरा और दीपावली के बीच यह महत्वपूर्ण पर्व है। ऐसी भी मान्यता है कि जाड़ा करवे की टोंटी से निकलता है।
करवा चौथ की रात्रि ऐसी रात होती है, जब चंद्रोदय की प्रतीक्षा बहुत रहती है, परंतु चंद्रदेव अपेक्षा से ज्यादा देर से उदय होते हैं। प्रत्येक व्रती महिला चंद्रोदय का बेसब्री से इंतजार करती है। इस व्रत में यह भी भावना रहती है कि बाल चंद्रमा के दर्शन से अगले जन्म में भी सुखमय दांपत्य जीवन की प्राप्ति होती है।
चंद्रमा के उदय के बाद चंद्रमा का प्रतिबिंब एक जल की थाली में देखा जाता हैं। कई स्थानों पर छलनी के माध्यम से भी चंद्रदर्शन किए जाते हैं। चंद्रमा की व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से पूजा-अर्चना की जाती है। व्रत की कथाएं सुनाई जाती हैं, पति के चरण स्पर्श किए जाते हैं।
करवे में रखे मिठाई या पताशे बांटे जाते हैं। इसके बाद व्रत समाप्त माना जाता है और सभी व्रत करने वाली स्त्रियां अन्न-जल ग्रहण करती हैं।
करवा चौथ के दिन तोहफों में दो चीजें काफी महत्वपूर्ण होती है- 'सरगी' और 'बाया'। यह दो चीजें तोहफे में जरूर दी जाती हैं। इसके बिना करवा चौथ का पर्व अधूरा माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसे देने से पति-पत्नी का रिश्ता और भी गहरा होता है।
सरगी :- 'सरगी' में तरह-तरह की मिठाइयां और कुछ कपड़े दिए जाते हैं। जिसे करवा चौथ करने वाली महिलाएं सूर्योदय के पहले तक ही खा सकती हैं। उपवास शुरू होने के बाद इसे नहीं खाया जाता।
बाया :- 'बाया' लड़के को ससुराल पक्ष की ओर से दिया जाता है। जिसमें बादाम, मठरी और कुछ कपड़े दिए जाते हैं। जबकि 'सरगी' सास अपनी बहू को देती है।
पहले जहां 'सरगी' और 'बाया' एक परंपरा के रूप में लिया जाता था, वहीं अब इसमें फैशन का पुट भी शामिल हो गया है। इसमें साधारण कपड़ों की जगह डिजाइनर कपड़े दिए जाने लगे हैं। परंपरा से अलग हटकर ही सही लेकिन आज भी त्योहारों का महत्व कम नहीं हुआ है।