भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को देश के कोने-कोने में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया जाता है। इसी प्रकार अन्य देवी-देवताओं के भी जन्मोत्सव व प्राकट्योत्सव मनाए जाते हैं। मेरे देखे यह बहुत सांकेतिक है जिससे जीव को यह स्मरण बना रहे कि उसे अपने अंत:करण में भी एक दिन परमात्मा का प्राकट्य करना है।
इस संदर्भ में श्रीकृष्ण के प्राकट्योत्सव की कथा बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि श्रीकृष्ण का जन्म आततायी कंस के कारागार में मध्यरात्रि में हुआ। मनुष्य का अंत:करण भी विकारों का एक कारागार है जिसमें षड्विकारों के पहरेदार सदैव तैनात रहते हैं।
जब मनुष्य के मन में विकार हो तो उसे अंधकार घेर लेता है। इस स्थिति में जब अंत:करण में परमात्मा का प्राकट्य होता है, तब ठीक श्रीकृष्ण जन्म के जैसे ही हमारे विकारों के बंधन स्वत: ही कट जाते हैं और हमारे अंत:करण का कारागार स्वयमेव खुल जाता है।
श्रीकृष्ण के जन्म की कथा बहुत ही प्रेरक है अत: हम लौकिक रूप से तो यह पर्व अवश्य मनाएं किंतु हमारा प्रयास यह हो कि एक दिन हमारे अंत:करणरूपी कारागार में भी श्रीकृष्ण का प्राकट्य हो।
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
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