हर मां अपने शिशु में देखती है नटखट कृष्ण की छवि

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Shri Krishna Leela
 
सूरदास हो या रसखान, कृष्ण के मोह से कोई नहीं बच पाया...
 
- डॉ. शिवा श्रीवास्तव, भोपाल
 
घर में नए शिशु का आगमन ढेर खुशियां ले कर आता है। उसकी चंचलता, चपलता, मुस्कुराहट और नटखट पन से सारा क्षोभ, सारा कष्ट पल भर में ही लोप हो जाता है। हर मां अपने शिशु में कृष्ण की छवि देखती है। उसे लगता है जैसे कृष्ण ही उसके आंचल में उतर आए हैं। कृष्ण हैं ही ऐसे।

कृष्ण की बाल लीलाओं की चर्चा करते ही नटखट कृष्ण की छवि आंखों में तैर जाती है। नंद बाबा और यशोदा के घर में कृष्ण के आगमन पर छठवें दिन कृष्ण की छठी पूजी, तो मानो वात्सल्य का मंथन आरंभ हो गया। कृष्ण अपनी माता का हृदय मथ रहे थे और उससे यशोदा का प्रेम और भाव मक्खन से तिरने लगे थे। सही अर्थों में कहे तो कृष्ण (जगदीश्वर) ने बाकी जगत की माताओं को यह बतलाया, की यशोदा के जैसा प्रेम मिले तो मैं पुत्र रूप में भी आपके यहां जन्म ले सकता हूं। 
 
कंस ने पूतना को कृष्ण वध के लिए भेजा, बालक ने अपनी पूरी शक्ति से उस राक्षसी के प्राण ही खींच लिए। पूतना जब कृष्ण को लिए मधुपुरी दौड़ रही थी तो यशोदा के प्राण पूतना के पीछे दौड़ पड़े। यशोदा तभी पुनः सचेत हुई जब कृष्ण दोबारा आकर उनके आंचल में समा गए और यशोदा ने पूरा लाड़ उड़ेलते हुए गाय की पुंछ फिराकर उनकी शुभ-मंगल कामना की। 
 
देवकी ने जन्म दिया और यशोदा मां कहलाई। माता और पुत्र प्रेम की यह सबसे बड़ी मिसाल बनी। जब कर्ण युद्ध भूमि में अपने प्राण त्याग रहे थे तब, राधा मां बहुत करुण स्वर में बोली, तुम मेरे पुत्र हो कर्ण, मैं ही तुम्हारी माता हूं। मैंने तुम्हारा हर वो क्षण जिया है, जब तुम्हें मां के प्रेम की सबसे अधिक आवश्यकता थी। कर्ण के कुंती पुत्र कहलाने से वे बहुत दुखी हो गई थी। कर्ण ने वासुदेव के सामने ही उनको आश्वस्त किया और कहा -  'वासुदेव की भी तो दो मां थी और लोग उन्हे यशोदा नंदन के नाम से अधिक जानते हैं। मैं भी 'राधेय' नाम से ही जाना जाऊंगा मां।
 
कृष्ण के प्रेम से भाव विभोर यशोदा सब सुध-बुध भूल चुकी थी। कृष्ण की लीलाएं देख-देख फूली न समाती थी-
 
असुमती फूली-फूली डोरती 
अति आनंद रहत सगरों दिन हसि हसि सब सौं बोलती 
मंगल गाय उठत अति रस सौं अपने मनका भायो 
विकसित कहति देख ब्रिजसुन्दरी कैसी लगत सुहायो।। 
 
यशोदा के प्राण बसे थे, कृष्ण में। कृष्ण के बाल मुख से कहे गए शब्दों पर यशोदा बलिहारी हुई जाती थी। कृष्ण और यशोदा के बीच का वह प्रसंग- मैया मैं नहीं माखन खायो, री मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो। यशोदा को पता है की कृष्ण सच नहीं कह रहे, पर उनके भोले मुंह से ये सब सुन कर वे उन्हें और प्यार करने लगती हैं और कृष्ण की शिकायत करने वालों से रुष्ट।
 
चाहे सूरदास हो या रसखान, कृष्ण के मोह से कोई नहीं बच पाया। रसखान ने तो लिखा ही- 
 
शिव, स्वयं जिनका ध्यान करते हैं, सारा संसार जिनको पूजता है, उनसे महान और कोई देवता नहीं। वही मनुष्य रूप रख कर कृष्ण में अवतरित हुए हैं, और अपनी लीलाएं सबको दिखा रहे हैं। विराट देव बालक रूप रख नंद जी के आंगन में मिट्टी खाते घूम रहे हैं। ऐसे हैं श्री कृष्ण। 
 
संभु धरै ध्यान जाकौ जपत जहान सब,
ताते न महान और दूसर अब देख्यौ मैं।
कहै रसखान वही बालक सरूप धरै,
जाको कछु रूप रंग अबलेख्यौ मैं।
 
कहा कहूं आली कुछ कहती बनै न दसा,
नंद जी के अंगना में कौतुक एक देख्यौ मैं।
जगत को ठांटी महापुरुष विराटी जो,
निरजंन, निराटी ताहि माटी खात देख्यौ मैं।
 
रसखान कृष्ण प्रेम में ऐसे डूबे कि उन्होंने बाल लीला, रासलीला, फागलीला, कुंजलीला सबको अपने काव्य में बांध लिया। कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम रखने वाले रसखान धर्म से हिंदू नहीं थे, निश्छल प्रेम ही था, जिसने उनको कृष्ण भक्ति और कृष्ण प्रेम में सर्वोपरि रखा। 
 
मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं संग गोकुल गांव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मंझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो कियो हरि छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी कूल कदंब की डारन॥
 
कृष्ण बाल लीला की चर्चा हो और सूरदास के दोहे और पदों की बात न हो तो अधूरापन रह जाता है। कहने को सूरदास जन्मांध थे, पर कृष्ण का जितना सुंदर चित्रण उन्होंने किया, उससे ये संशय हुआ की उनका नेत्रहीन होना संभव ही नहीं।
 
मुख दधि लेप किए सोभित कर नवनीत लिए।
घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥
चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।
लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥
कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।
धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥
 
इसको पढ़कर कौन कह सकेगा की सूरदास ने कृष्ण की छवि कभी देखी ही नहीं। ऐसा वर्णन तो आंखों वालों के लिए भी अकल्पनीय है। जैसे इस दृष्य में लग रहा है कि कृष्ण ने सूरदास के सामने ही यह शिकायत की है-
 
मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥
कहा करौं इहि रिस के मारें खेलन हौं नहिं जात।
पुनि पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात॥
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।
चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसुकात॥
तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै।
मोहन मुख रिस की ये बातैं जसुमति सुनि सुनि रीझै॥
सुनहु कान बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत।
सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत॥
 
कृष्ण की बाल लीलाएं जितनी कहीं जाएं कम ही हैं। हर एक का अपना वर्णन और विस्तार है। यूं कृष्ण को शब्दों में समेटना असंभव है। कृष्ण अनंत हैं। 
जीवन चरित के हर रूप का नाम कृष्ण है। 
 
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है।)
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