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जानिए कैसे हुआ था श्रीकृष्ण-बलराम का नामकरण संस्कार

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वसुदेवजी की प्रार्थना पर यदुओं के पुरोहित महातपस्वी गर्गाचार्यजी ब्रज पहुंचे। उन्हें देखकर नंद अत्यधिक प्रसन्न हुए। उन्होंने हाथ जोड़कर प्रणाम किया और विष्णुतुल्य मानकर उनकी पूजा की। इसके पश्चात नंदजी ने उनसे कहा- आप मेरे इन दोनों बच्चों का नामकरण आदि संस्कार कर दीजिए। 
 
किंतु गर्गाचार्यजी ने कहा कि ऐसा करने में कुछ अड़चनें हैं। मैं यदुवंशियों का पुरोहित हूं, यदि मैं तुम्हारे इन पुत्रों का नामकरण संस्कार कर दूं तो लोग इन्हें देवकी का ही पुत्र मानने लगेंगे क्योंकि कंस तो पापमय बुद्धि है। वह सर्वदा निरर्थक बातें ही सोचता है। दूसरी ओर तुम्हारी व वसुदेव की मैत्री है।
 
अब मुख्य बात यह है कि देवकी की आठवीं संतान लड़की नहीं हो सकती क्योंकि योगमाया ने कंस से यही कहा था- अरे पापी मुझे मारने से क्या फायदा है? वह सदैव यही सोचता है कि कहीं न कहीं मुझे मारने वाला अवश्य उत्पन्न हो चुका है। यदि मैं नामकरण संस्कार करवा दूंगा तो मुझे पूर्ण आशा है कि वह बच्चों को मार डालेगा और सबका अत्यधिक अनिष्ट करेगा।
 
नंदजी ने गर्गाचार्यजी से कहा यदि ऐसी बात है तो किसी एकांत स्थान में चलकर स्वस्त्ययनपूर्वक इनके द्विजाति संस्कार करवा दीजिए। इस विषय में मेरे अपने आदमी भी न जान सकेंगे। नंद की इन बातों को सुनकर गर्गाचार्य ने एकांत में छिपकर बच्चे का नामकरण करवा दिया। नामकरण करना तो उन्हें अभीष्ट ही था, इसीलिए वे आए थे।
 
गर्गाचार्यजी ने वसुदेव से कहा- रोहिणी का यह पुत्र गुणों से अपने लोगों के मन को प्रसन्न करेगा। अतः इसका नाम राम होगा। इसी नाम से यह पुकारा जाएगा। इसमें बल की अधिकता अधिक होगी। इसलिए इसे लोग बल भी कहेंगे। यदुवंशियों की आपसी फूट मिटाकर उनमें एकता को यह स्थापित करेगा, अतः लोग इसे संकर्षण भी कहेंगे। अतः इसका नाम बलराम होगा।
 
अब उन्होंने यशोदा और नंद को लक्ष्य करके कहा- यह तुम्हारा दूसरा पुत्र प्रत्येक युग में अवतार ग्रहण करता रहता है। कभी इसका वर्ण श्वेत, कभी लाल, कभी पीला होता है। पूर्व के प्रत्येक युगों में शरीर धारण करते हुए इसके तीन वर्ण हो चुके हैं। इस बार कृष्णवर्ण का हुआ है, अतः इसका नाम कृष्ण होगा। तुम्हारा यह पुत्र पहले वसुदेव के यहां जन्मा है, अतः श्रीमान वासुदेव नाम से विद्वान लोग पुकारेंगे। 
 
तुम्हारे पुत्र के नाम और रूप तो गिनती के परे हैं, उनमें से गुण और कर्म अनुरूप कुछ को मैं जानता हूं। दूसरे लोग यह नहीं जान सकते। यह तुम्हारे गोप-गौ एवं गोकुल को आनंदित करता हुआ तुम्हारा कल्याण करेगा। इसके द्वारा तुम भारी विपत्तियों से भी मुक्त रहोगे।
 
इस पृथ्वी पर जो भगवान मानकर इसकी भक्ति करेंगे उन्हें शत्रु भी पराजित नहीं कर सकेंगे। जिस तरह विष्णु के भजने वालों को असुर नहीं पराजित कर सकते। यह तुम्हारा पुत्र सौंदर्य, कीर्ति, प्रभाव आदि में विष्णु के सदृश होगा। अतः इसका पालन-पोषण पूर्ण सावधानी से करना। इस प्रकार कृष्ण के विषय में आदेश देकर गर्गाचार्य अपने आश्रम को चले गए।


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