janmashtami 2020 kab hai : ज्योतिष के अनुसार जानिए कब मनाएं श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

पं. हेमन्त रिछारिया
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हमारे सनातन धर्म का महापर्व है। हर सनातन धर्मावलम्बी इसे बड़े उत्साव व धूमधाम से मनाता है किन्तु अक्सर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत को लेकर श्रद्धालुओं में बड़ा संशय रहता है क्योंकि पंचाग में यह व्रत दो दिन दिया होता है। आज हम सभी श्रद्धालुओं के सुविधा के लिए इस सम्बन्ध में कुछ शास्त्रोक्त बातें यहां स्पष्ट करेंगे जिससे आप स्वयं इस व्रत की तिथि का निर्धारण कर सकेंगे।
 
1. स्मार्त व वैष्णव का भेद-
सामान्यत: पंचागों में व्रत के आगे स्मार्त व वैष्णव लिखा होता है इसका आशय यह होता है कि स्मार्त वाले दिन स्मार्त को एवं वैष्णव वाली तिथि को वैष्णवों को वह व्रत करना चाहिए। वैष्णवों का व्रत स्मार्त के व्रत वाली तिथि के दूसरे दिन होता है। 
 
स्मार्त की श्रेणी में वे श्रद्धालु आते हैं जो गृहस्थ हैं और जिन्होंने किसी सम्प्रदाय से दीक्षा ग्रहण नहीं की होती है जबकि वैष्णव की श्रेणी में समस्त संन्यासीगण और वे श्रद्धालु आते हैं जो किसी ना किसी सम्प्रदाय से विधिवत दीक्षित होते हैं।
 
ALSO READ: स्मार्त और वैष्णव में क्या अंतर है, जन्माष्टमी से पहले जान लीजिए
 
2. तिथि की शुद्धता-
 
जो तिथि सूर्योदय से लेकर मध्यान्ह तक ना रहे वह खंडा होती है। खंडा तिथि व्रत में सर्वथा त्याज्य व वर्जित है। सूर्योदय से सूर्यास्तपर्यंन्त रहने वाली तिथि अखंडा होती है। व्रत उपवास आदि में अखंडा तिथि को ग्राह्य करना श्रेष्ठ होता है। शास्त्रानुसार जिन व्रतों में रात्रिकालीन पूजा का विधान है उनमें चन्द्रोदयव्यापिनी तिथि मान्य होती है शेष सभी में सूर्योदयकालीन तिथि की मान्यता होती है।
 
वर्ष 2020 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी -
 
-योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि दिन बुधवार को रोहिणी नक्षत्र अर्द्धरात्रि में हुआ था। जब चन्द्रमा वृषभ राशि में स्थित था। श्रद्धालुगण उक्त बातों को आधार मानकर व्रत की तिथि का निर्णय करते हैं। शास्त्रानुसार तिथि के दो भेद होते हैं- शुद्धा और विद्धा। शुद्धा तिथि भी अखंडा की ही भांति सूर्योदय से सूर्योदयपर्यन्त मानी जाती है जो श्रेष्ठ होती है। 
 
श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी में सिद्धान्तअनुसार अर्द्धरात्रि में रहने वाली अष्टमी तिथि अधिक मान्य होती है किन्तु अष्टमी तिथि यदि दो दिन हो तो सप्तमी विद्धा को त्यागकर नवमी विद्धा को ग्राह्य किया जाता है क्योंकि अष्टमी के व्रत का पारण नवमी तिथि में ही किया जाता है। नवमी में व्रत के पारणा से व्रत की पूर्ती होती है।
 
- 11 अगस्त को सूर्योदयकालीन सप्तमी तिथि प्रात:काल 9 बजकर 06 मिनट के लगभग समाप्त हो रही है अत: यह खंडा तिथि हुई जो व्रत में त्याज्य होती है।
 
- 12 अगस्त को अष्टमी तिथि सूर्योदय से लेकर अपरान्ह 11 बजकर 15 मिनट के लगभग समाप्त हो रही है अर्थात अर्द्धरात्रि में नवमी तिथि रहेगी जो 13 अगस्त को अपरान्ह 12 बजकर 57 मि. के लगभग समाप्त होगी।
 
- 12 अगस्त को अर्द्धारात्रि में रोहिणी नक्षत्र व चन्द्रमा वृषभ राशि में स्थित होगा। 
 
- उपरोक्त शास्त्रानुसार निर्देशों के अनुसार श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी 12 अगस्त 2020 को ही मनाया जाना श्रेयस्कर रहेगा।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com

ALSO READ: janmashtami 2020 : इस जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें राशि अनुसार

janmashtami 2020

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

तुलसी विवाह देव उठनी एकादशी के दिन या कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन करते हैं?

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

आंवला नवमी कब है, क्या करते हैं इस दिन? महत्व और पूजा का मुहूर्त

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

सभी देखें

धर्म संसार

11 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

11 नवंबर 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

Saptahik Muhurat 2024: नए सप्ताह के सर्वश्रेष्ठ शुभ मुहूर्त, जानें साप्ताहिक पंचांग 11 से 17 नवंबर

Aaj Ka Rashifal: किन राशियों के लिए उत्साहवर्धक रहेगा आज का दिन, पढ़ें 10 नवंबर का राशिफल

MahaKumbh : प्रयागराज महाकुंभ में तैनात किए जाएंगे 10000 सफाईकर्मी

अगला लेख
More