इतिहास : भगवान श्रीकृष्ण अपने बचपन में वृंदावन में रहते थे। यह स्थान उनकी बाल लीलाओं का स्थान है। यहां पर वे ब्रजवासियों के यहां अपने मित्रों के साथ माखन चोरी करके खाते थे। जब यह बात वहां की महिलाओं को पता चली तो वे अपनी माखन की मटकी को छत से लटकाकर रखने लगी। यह देखकर बालकृष्ण ने एक युक्ति अपनाई और वे अपने सखाओं के साथ मानव पर्वत बनानकर हांडी से दही और माखन चुराना प्रारंभ कर दिया। भगवान कृष्ण की दही चुराने की यह बाल लीला अब भारतीय लोककथा और कला का अभिन्न हिस्सा बन गई। तभी से दही हांडी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाने लगा। जो ग्रुप इस हांडी को फोड़ देता है उसको इनाम मिलता है।
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गोविन्दा आला रे! - यह जय-घोष समय के साथ दही-हाण्डी उत्सव की पहचान बन चुका है।
दही हांडी प्रतियोगिता : मुंबई और गोवा में दही-हाण्डी प्रतियोगिता का आयोजन होता है। महाराष्ट्र में दही-हाण्डी उत्सव को गोपालकाला के नाम भी जाता जाता है। प्रति वर्ष युवाओं की सैकड़ों टोलियाँ दही-हाण्डी प्रतिस्पर्धा में भाग लेती हैं। दही-हाण्डी की प्रतियोगिता को अधिक चुनौतीपूर्ण बनाने के लिए हाण्डी को भूमि से कई फीट ऊपर किसी खुले स्थान अथवा चौराहे पर बांधा जाता है। युवाओं के दही-हाण्डी तक पहुंचने के प्रयासों को लड़कियां पानी अथवा कोई चिकना पदार्थ डालकर विफल करने का प्रयास करती हैं। उल्लेखनीय है कि हाल के वर्षों में दही-हाण्डी प्रतियोगिता की पुरुस्कार राशि 1 करोड़ भारतीय रुपयों तक पहुंच चुकी है।
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