samvatsari parva: संवत्सरी पर्व क्यों और कैसे मनाया जाता है?

अनिरुद्ध जोशी
shwetambar jain samvatsari 2023: श्वेतांबर और दिगंबर जैन समाज के पर्युषण पर्व भाद्रपद मास में मनाए जाते हैं। श्वेतांबर के व्रत समाप्त होने के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं। श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे 'दसलक्षण' कहते हैं। श्वेतांबर समाज पर्युषण पर्व के समापन पर 'विश्व-मैत्री दिवस' अर्थात संवत्सरी पर्व मनाते हैं। अंतिम दिन दिगंबर जैन 'उत्तम क्षमा' तो श्वेतांबर 'मिच्छामि दुक्कड़म्' कहते हुए लोगों से क्षमा मांगते हैं।
 
क्यों मनाते हैं संवत्सरी : यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। इस पर्वानुसार- 'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' अर्थात आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो। संवत्सरी, प्रतिक्रमण, केशलोचन, तपश्चर्या, आलोचना और क्षमा-याचना। गृहस्थों के लिए भी शास्त्रों का श्रवण, तप, अभयदान, सुपात्र दान, ब्रह्मचर्य का पालन, आरंभ स्मारक का त्याग, संघ की सेवा और क्षमा-याचना आदि कर्तव्य कहे गए हैं।
 
संवत्सरी का मूल अर्थ : कालचक्र के अनुसार समय की सुई जैसे पहले नीचे की ओर और फिर उपर की और गति करती है उसी तरह से पर यहां काल को (अवसर्पिणी काल व उत्सर्पिणी काल) दो वर्गों में बांटा गया है। अवसर्पिणी काल में जहां ऊपर से नीचे उतरते हुए धर्म की हानि हो रही होती है, वहीं उत्सर्पिणी काल में धर्म का उत्थान हो रहा होता है। मतलब अवसर्पिणी काल में प्रकृति और व्यक्ति दुख की ओर बढ़ रहा होता है और उत्सर्पिणी काल में सुख की ओर। 
 
भीषण गर्मी से तप्त धरती पर मेघों की बरसात होती है। 49वें दिन तक यह बरसात धरती को हरा-भरा कर देती है। और तब अहिंसा, प्रेम, सद्भावना भाइचारे का वह मंगलकारी दिन ही संवत्सरी के रूप में मनाया जाता है। जैन धर्मानुसार चातुर्मास प्रारंभ होने के 50वें दिन इस पर्व को मनाता है।

संपूर्ण चातुर्मास का समय ही आत्मशुद्धि व अंतर्यात्रा का समय होता है। जो चातुर्मास का पालन नहीं कर पाते हैं वे पर्युषण के आठ दिनों में अपनी अंतर्यात्रा की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। अगर किसी कारणवश इन आठ दिनों में भी आत्म जागरण न कर सकें तो संवत्सरी के आठ प्रहरों में सात प्रहर धर्म आराधना करते हुए आठवें प्रहर में आत्मबोध कर सकते हैं। 
 
मिच्छामि दुक्कड़म् : सात दिन त्याग, तपस्या, शास्त्र श्रवण व धर्म-आराधना के साथ मनाने के बाद आठवें दिन को महापर्व के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन साधु-साध्वी व श्रावक-श्राविकाएं अधिक से अधिक धर्म-ध्यान और त्याग व तपस्या करते हैं।

जैन परंपरा के अनुसार पर्युषण पर्व के अंतिम दिन क्षमावाणी दिवस पर सभी एक-दूसरे से 'मिच्छामी दुक्कड़म' कहकर क्षमा मांगते हैं, जैन धर्म के अनुसार 'मिच्छामी' का भाव क्षमा करने और 'दुक्कड़म' का अर्थ गलतियों से है अर्थात मेरे द्वारा जाने-अनजाने में की गईं गलतियों के लिए मुझे क्षमा कीजिए। 'मिच्छामी दुक्कड़म' प्राकृत भाषा का शब्द है। श्वेताम्बर जैन स्थानकवासी भाद्रपद मास की शुक्ल पंचमी को संवत्सरी पर्व के रूप में मनाते हैं। एक-दूसरे से क्षमा मांगते हैं और दूसरों को क्षमा करते हुए मैत्रीभाव की ओर कदम बढ़ाते हैं। 
 
जय जिनेंद्र। 

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