जैन धर्म: 11 अगस्त को भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस, मनेगा मुकुट/मोक्ष सप्तमी पर्व

lord parshwanath moksh kalyanak day 2024
WD Feature Desk
शनिवार, 10 अगस्त 2024 (13:59 IST)
lord parshwanath moksh kalyanak diwas
 
Highlights 
 
जैन समुदाय का मोक्ष सप्तमी पर्व 11 अगस्त को।
भगवान पार्श्वनाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस।
मुकुट/ मोक्ष सप्तमी के बारे में जानें। 
 
Moksha Kalyanak Diwas 2024: प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल सप्तमी को जैनियों का प्रमुख पर्व मुकुट सप्तमी/ मोक्ष सप्तमी और भगवान पार्श्वनाथ (पारसनाथ) का मोक्ष कल्याणक दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष यह शुभ पर्व दिनांक 11 अगस्त, दिन रविवार को वीर निर्वाण संवत 2550, सावन मास की सप्तमी तिथि को पड़ रहा है। इसी दिन भगवान पार्श्वनाथ जी को तीर्थराज सम्मेद शिखर जी पर मोक्ष प्राप्त हुआ था। अत: यह तिथि जैन धर्मावलंबियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। 
 
जैन धर्म के अनुसार 11 अगस्त, रविवार के दिन दिगंबर और श्वेतांबर जैन मंदिरों में 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की विशेष पूजा, आराधना, शांतिधारा करके निर्वाण लाडू चढ़ाने की परंपरा है। धार्मिक मान्यतानुसार जिसका मोक्ष हो जाता है, उसका मनुष्य भव में जन्म लेना सार्थक हो जाता है और जब तक हम संसार है तब तक चिंता रहती है, पर जहां मोक्ष का पूर्णरूपेण क्षय हो जाता है वहीं मोक्ष हो जाता है।
 
भगवान पार्श्वनाथ के बारे में जानें : जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर जिनराज पार्श्वनाथ प्रभु हैं। उनका जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व पौष कृष्‍ण एकादशी के दिन वाराणसी में हुआ था। पिता अश्वसेन वाराणसी के राजा तथा माता 'वामा' थीं। उनका प्रारंभिक जीवन राजकुमार के रूप में व्यतीत हुआ तथा युवा होने पर उनका विवाह कुशस्थल देश की राजकुमारी प्रभावती के साथ संपन्न हुआ था।
 
भगवान पार्श्वनाथ ने 30 वर्ष की आयु में गृह त्याग कर संन्यासी बन गए। और पौष महीने की कृष्ण एकादशी तिथि को दीक्षा ग्रहण की। मात्र 83 दिन तक कठोर तपस्या करने के बाद 84वें दिन चैत्र कृष्ण चतुर्थी को उन्हें सम्मेद पर्वत पर कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई तथा श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन सम्मेदशिखर जी तीर्थ के पारसनाथ पहाड़ पर निर्वाण प्राप्त हुआ था।
 
भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व जन्म और प्रतीक चिह्न जानें : तीर्थंकर बनने से पूर्व पार्श्‍वनाथ स्वामी को नौ जन्म लेने पड़े थे। पहले जन्म में ब्राह्मण, दूसरे में हाथी, तीसरे में स्वर्ग के देवता, चौथे में राजा, पांचवें में देव, छठवें जन्म में चक्रवर्ती सम्राट और सातवें जन्म में देवता, आठ में राजा और नौवें जन्म में राजा इंद्र (स्वर्ग) तत्पश्चात दसवें जन्म में उन्हें तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इस तरह पूर्व के जन्मों से संचित पुण्यों के कारण और दसवें जन्म के तप के फलस्वरूप में उन्हें तीर्थंकर बनने का सौभाग्य मिला था। और इस तरह वे जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर बन गए। भगवान पार्श्वनाथ का प्रतीक चिह्न- सर्प, चैत्यवृक्ष- धव, यक्ष- मातंग, यक्षिणी- कुष्माडी। इनके शरीर का वर्ण नीला है। पार्श्वनाथ के यक्ष का नाम पार्श्व और यक्षिणी का नाम पद्मावती देवी हैं।
 
मोक्ष स्थली श्री सम्मेदशिखर जी : जैन धर्मावलंबियों अनुसार यह तीर्थ भारत के झारखंड प्रदेश के गिरिडीह जिले में मधुबन क्षेत्र में स्थित है। श्रावण सप्तमी के दिन जैन तीर्थक्षेत्र सम्मेदशिखर जी में भगवान पार्श्वनाथ की पूजा-अर्चना, निर्वाण कांड पाठ आदि के पश्चात निर्वाण लाडू चढ़ाया जाता है।

जिस प्रकार यह लाडू रसभरी बूंदी से निर्मित किया जाता है, उसी प्रकार अंतरंग से आत्मा की प्रीति रस से भरी हो जाए तो परमात्मा बनने में देर नहीं लगती। यही समझाना इस पर्व का उद्देश्य है। अत: इस खास दिन भगवान पार्श्वनाथ की मोक्ष स्थली श्री सम्मेद शिखर जी पारसनाथ की पवित्र भूमि पर देश के कोने-कोने से हजारों की संख्या में जैन श्रद्धालु आकर पारसनाथ भगवान का महान पर्व 'मोक्ष कल्याणक दिवस' मनाते हैं।
 
मोक्ष सप्तमी : इस दिन जैन धर्मावलंबियों द्वारा विशेष तौर पर मोक्ष सप्तमी या मुकुट सप्तमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन बालिकाएं एवं कुंवारी कन्याएं पूरे समय निर्जला व्रत रखकर अगले दिन इस व्रत का पारण करती हैं।

इस दिन जैन समाज की बालिकाएं सामूहिक रूप से निर्जला उपवास करके दिन भर पूजन, स्वाध्याय, मनन-चिंतन, सामूहिक प्रतिक्रमण करते हुए संध्या के समय देव-शास्त्र-गुरु की सामूहिक भक्ति कर आत्म चिंतन करती है। शाम के समय व्रतधारी बालिकाओं को घोड़ी या बग्घी में बिठाकर बाजार में घुमाया जाता है तथा अगले दिन उनका पारण कराया जाता है। 
 
आज का मंत्र- ॐ ह्रीं श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्राय नमो नम: का जाप अवश्य करना चाहिए। 
 
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