आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज का प्रथम समाधि स्मृति दिवस

WD Feature Desk
गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025 (15:53 IST)
Vidyasagarji Maharaj: आज, 06 फरवरी को जैन मुनि, संत शिरोमणि, परम श्रद्धेय आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का प्रथम समाधि स्मृति दिवस है। विगत वर्ष आज ही के दिन यानि माघ शुक्ल अष्टमी तिथि पर विद्यासागर जी ने समाधिपूर्वक संलेखना ली थी। उस वक्त तारीख के अनुसार यह तिथि 18 फरवरी 2024 को पड़ी थी। आज पूज्य महाराज श्री भौतिक रूप से भले ही हमारे साथ नहीं हैं, परंतु उनकी असीम करुणा, दया और आशीर्वाद की वर्षा प्रतिपल हम सब पर हो रही है। 
 
आचार्य श्री विद्यासागर जी का जन्म आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) की रात में विक्रम संवत्‌ 2003 सन्‌ 1946 में कर्नाटक (जिला बेलगाम) के ग्राम सदलगा के निकट चिक्कोड़ी ग्राम में श्री मलप्पाजी अष्टगे और माता श्रीमती जी अष्टगे के घर एक संपन्न परिवार में हुआ था। आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी ने 3 दिवस के उपवास के पश्चात माघ शुक्ल अष्टमी तिथि को देर रात 2.30 मिनट पर समाधिपूर्वक संलेखना ली थीं। समाधि के वक्त आचार्य श्री छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरी तीर्थ पर थे, जहां उन्होंने रविवार, 18 फरवरी 2024 को समाधि ली थीं।
 
आचार्य श्री विद्यासागर जी का जीवन परिचय
 
पूर्व नाम : श्री विद्याधर जी
पिताश्री : श्री मल्लप्पाजी अष्टगे (मुनिश्री मल्लिसागरजी)
माताश्री : श्रीमती श्रीमंतीजी (आर्यिकाश्री समयमतिजी)
भाई/बहन : 4 भाई, 2 बहन
जन्म स्थान : चिक्कोड़ी (ग्राम- सदलगा के पास), बेलगांव (कर्नाटक)
जन्मतिथि : आश्विन शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) वि.सं. 2003, 10-10-1946, गुरुवार, रात्रि  में 12.30 बजे। 
जन्म नक्षत्र : उत्तरा भाद्रपद।
मातृभाषा : कन्नड़।
शिक्षा : 9वीं मैट्रिक (कन्नड़ भाषा में)
ब्रह्मचर्य व्रत : श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र, चूलगिरि (खानियाजी), जयपुर (राजस्थान)
प्रतिमा : 7 (आचार्यश्री देशभूषणजी महाराज से)
स्थल : 1966 में श्रवणबेलगोला, हासन (कर्नाटक)
मुनि दीक्षा स्थल : अजमेर (राजस्थान)
मुनि दीक्षा तिथि : आषाढ़ शुक्ल पंचमी, वि.सं. 2025, 30-06-1968, रविवार
आचार्य पद तिथि : मार्गशीर्ष कृष्ण द्वितीया- वि.सं. 2029, दिनांक 22-11-1972, बुधवार
आचार्य पद स्थल : नसीराबाद (राजस्थान) में, आचार्यश्री ज्ञानसागर जी ने अपना आचार्य पद प्रदान किया।
तिथि : माघ शुक्ल अष्टमी, 18 फरवरी 2024 समाधिपूर्वक संलेखना। 
 
आचार्यश्री ने कन्नड़, मराठी भाषा के माध्यम से शिक्षा ग्रहण की थी, लेकिन उन्हें बहुभाषाविद् कहा जाता हैं, क्योंकि कन्नड़, मराठी के अलावा वे हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और बंगला जैसी अनेक भाषाओं के ज्ञाता भी रहे हैं। उन्होंने 'निरंजन शतकं', 'भावना शतकं', 'परीष हजय शतकं', 'सुनीति शतकं' व 'श्रमण शतकं' नाम से 5 शतकों की रचना संस्कृत में करके स्वयं ही इनका पद्यानुवाद किया है।

साथ ही मूकमाटी के रचयिता, बाल ब्रह्मचारी, तपस्वी, आध्यात्मिक विद्वान, विश्व गुरु, गौशाला एवं खादी कुटीर उद्योग के समर्थक रहे संत शिरोमणि परम पूज्य आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणों में उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर बारंबार नमोस्तु।
 
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