Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

आज के शुभ मुहूर्त

(आंवला नवमी)
  • तिथि- कार्तिक शुक्ल नवमी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-अक्षय आंवला नवमी
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

कौन हैं Imam Hussain जिन्होंने Karbala में दी थी कुर्बानी

हमें फॉलो करें कौन हैं Imam Hussain जिन्होंने Karbala में दी थी कुर्बानी
इमाम हुसैन (रअ) दरअसल इंसानियत के तरफदार और इंसाफ के पैरोकार थे। यह समझ लेना जरूरी होगा कि इमाम हुसैन कौन थे और उन्हें क्यों शहीद किया गया। मजहबे इस्लाम (इस्लाम धर्म) के प्रवर्तक और पैगंबर हजरत मोहम्मद (सल्लाहलाहु अलैहि व सल्लम) के नवासे थे इमाम हुसैन। 
 
इमाम हुसैन के वालिदे- मोहतरम (सम्मानीय पिताजी) 'शेरे-खुदा' (परमात्मा के सिंह) अली (रजि.) हजरत मोहम्मद यानी पैगंबर साहब के दामाद थे। बीबी फातिमा दरअसल पैगंबर मोहम्मद (सल्ल.) की बेटी और इमाम हुसैन (रअ) की माताजी (वालदा) थीं। 
 
किस्सा कोताह यह कि हजरत अली (रअ) अरबिस्तान (मक्का-मदीना वाला भू-भाग) के खलीफा हुए यानी मुसलमानों के धार्मिक-सामाजिक राजनीतिक मुखिया हुए। उन्हें खिलाफत (नेतृत्व) का अधिकार उस दौर की अवाम ने दिया था। अर्थात हजरत अली (रजि.) को लोगों ने जनतांत्रिक तरीके यानी आमराय से अपना खलीफा (मुखिया) बनाया था। 
 
हजरत अली के स्वर्गवास के बाद लोगों की राय इमाम हुसैन को खलीफा बनाने की थी, लेकिन अली के बाद हजरते अमीर मुआविया ने खिलाफत पर कब्जा किया। मुआविया के बाद उसके बेटे यजीद ने साजिश रचकर दहशत फैलाकर और बिकाऊ किस्म के लोगों को लालच देकर खिलाफत हथिया ली। 
 
यजीद दरअसल शातिर शख्स था जिसके दिमाग में फितुर (प्रपंच) और दिल में जहर भरा हुआ था। चूंकि यजीद जबर्दस्ती खलीफा बन बैठा था, इसलिए उसे हमेशा इमाम हुसैन (रअ) से डर लगा रहता था। कुटिल और क्रूर तो यजीद पहले से ही था, खिलाफत यानी सत्ता का नेतृत्व हथियाकर वह खूंखार और अत्याचारी भी हो गया। 
 
इमाम हुसैन (रअ) की बैअत (अधीनस्थता) यानी यजीद के हाथ पर हाथ रखकर उसकी खिलाफत (नेतृत्व) को मान्यता देना, यजीद का ख्वाब भी था और मुहिम भी। यजीद दुर्दांत शासक साबित हुआ। अन्याय की आंधी और तबाही के तूफान उठाकर यजीद लोगों को सताता था। यजीद दरअसल परपीड़क था। 
 
यजीद जानता था कि खिलाफत पर इमाम हुसैन का हक है क्योंकि लोगों ने ही इमाम हुसैन के पक्ष में राय दी थी। यजीद के आतंक की वजह से लोग चुप थे। इमाम हुसैन चूंकि इंसाफ के पैरोकार और इंसानियत के तरफदार थे, इसलिए उन्होंने यजीद की बैअत नहीं की। 
 
इमाम हुसैन ने हक और इंसाफ के लिए इंसानियत का परचम उठाकर यजीद से जंग करते हुए शहीद होना बेहतर समझा लेकिन यजीद जैसे बेईमान और भ्रष्ट शासक और बैअत करना मुनासिब नहीं समझा। यजीद के सिपाहियों ने इमाम हुसैन को चारों तरफ से घेर लिया था, नहर का पानी भी बंद कर दिया गया था, ताकि इमाम हुसैन और उनके साथी यहां तक कि महिलाएं और बच्चे भी अपनी प्यास नहीं बुझा सकें। तिश्निगी (प्यास) बर्दाश्त करते हुए इमाम हुसैन बड़ी बहादुरी से ईमान और इंसाफ के लिए यजीद की सेना से जंग लड़ते रहे। 
 
यजीद के चाटुकारों शिमर और खोली ने साजिश का सहारा लेकर प्यासे इमाम हुसैन को शहीद कर दिया। इमाम हुसैन की शहादत दरअसल दिलेरी की दास्तान है, जिसमें इंसानियत की इबारत और ईमान के हरूफ (अक्षर) हैं।

- अजहर हाशमी 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

नवरात्रि 2020 में कलश स्थापना के सबसे अच्छे चौघड़िया मुहूर्त