राजस्थान रॉयल्स की टीम बेहतरीन खेली। फाइनल में पहुंची, बड़ी बड़ी टीमों के हराया लेकिन फाइनल जीतने के लिए जो चाहिए था वह टीम को नहीं मिल पाया। इसका सबसे बड़ा कारण रहा टीम के पास एक ढंग के ऑलराउंडर की कमी।
अगर दूसरी टीमों को देखा जाए तो कम से कम एक ढंग का भारतीय ऑलराउंडर टीम में मौजूद रहा और खासकर भारतीय क्योंकि विदेशी ऑलराउंडर्स को खिलाने के चक्कर में एक महत्वपूर्ण विदेशी खिलाड़ी को बैंच पर बैठाना पड़ता है।
पंजाब की ओर से शाहरुख खान, कोलकाता की ओर से वैंकटेश अय्यर, दिल्ली की ओर से अक्षर पटेल, हैदराबाद की ओर से अब्दुल समद, लखनऊ की ओर से दीपक हुड्डा, बैंगलोर के पास शाहबाज अहमद। चेन्नई और गुजरात की टीम में तो 2-2 भारतीय ऑलराउंडर रहे। इसके अलावा मुंबई के पास विदेशी ऑलराउंडर्स रहे।
राजस्थान के पास ले देकर एक ही ऑलराउंडर था जिम्मी नीशम लेकिन नीशम को टीम में जगह देने पर 1 विदेशी खिलाड़ी बाहर बैठाना पड़ता। जोस बटलर, शिमरन हिटमायर, ट्रैंट बोल्ट और डेविड ओबोए में से किसी 1 को ड्रॉप करना पड़ता।
जिम्मी नीशम को कुछ मौके तो तब मिले जब शिमरन हिटमायर बच्चे के जन्म के लिए जमैका गए हुए थे। हालांकि जब वह लौटे तो फ्रैंचाइजी ने छवि के कारण नीशम को टीम में नहीं रखा।
रियान पराग को बेमतलब खिलाना पड़ा
एक मैच को छोड़ दे तो पूरे सत्र में रियान पराग को संजू सैमसन ने ऐसे ही खिलाया है। ना ही बल्ले से चल पाए और ना ही गेंद से। 2020 और 2021 सत्र में कुछ खास ना करने के बाद भी मेगा नीलामी में राजस्थान ने उन पर 3.8 करोड़ रुपए देकर भरोसा जताया लेकिन लगातार तीसरे सत्र में धोखा ही मिला।
17 मैचों में रियान पराग ने 16 की औसत और 138 की स्ट्राइक रेट से 183 रन बनाए। इस सत्र में वह सिर्फ 1 बार 50 का आंकड़ा छू पाए। गेंदबाजी तो उनसे कभी कभार ही कराई गई। कुल 4 ओवरों में उन्होंने 59 रन लुटाए और सिर्फ 1 विकेट लिया।
अश्विन को विशुद्ध रूप से ऑलराउंडर
इस कमी को राजस्थान भांप गया था और उसे सुलझाने की कोशिश भी कर रहा था। यही कारण रहा कि रविचंद्रन अश्विन को विशुद्ध ऑलराउंडर बनाने की कोशिश शुरु हुई। लेकिन इसमें सफलता नहीं मिली। अश्विन को एक मैच में ऊपर भेजा गया और उन्होंने अर्धशतक भी जड़ा लेकिन उन पर हर बार विश्वास दिखाना घातक हो सकता था। (वेबदुनिया डेस्क)