आईपीएल टीम चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) ने शनिवार को घोषणा की कि रवींद्र जडेजा ने सीएसके की कप्तानी की कमान वापस महेंद्र सिंह धोनी को सौंप दी है। वह सीएसके की कमान 2008 से संभाले हुए थे। उन्होंने अपनी टीम की कमान इस साल आईपीएल शुरू होने से पहले जडेजा को सौंप दी थी। धोनी इस सत्र में अपनी पहली कप्तानी रविवार को पुणे में सनराइजर्स हैदराबाद के केन विलियमसन खिलाफ करेंगे, जो अंक तालिका में शीर्ष भाग में है।
चेन्नई की हुई बुरी गत तो धोनी को फिर मिला कप्तानी का मुकुट
उल्लेखनीय है कि जडेजा के नेतृत्व में सीएसके ने इस सत्र में खराब शुरुआत करते हुए आठ मैच में से सिर्फ दो मैच जीत पायी है। इसी कारण सीएसके प्लेऑफ से बाहर होने के कगार पर है। जडेजा अपने खराब फर्म से जूझ रहे हैं। उन्होंने इस सत्र में अब तक 22.40 के औसत से सिर्फ 112 रन बनाए हैं जबकि आठ मैचों में वह मात्र पांच विकेट लेने में कामयाब हुए हैं।
धोनी की अगुवाई में ही चेन्नई बनी 4 बार चैंपियन
अगर उनके कप्तानी के रिकॉर्ड की बात करें तो महेंद्र सिंह धोनी 2021 में आखिरी बार टीम को खिताब जिताने से पहले 200 से ज्यादा आईपीएल मैचों में कप्तानी करने वाले पहले खिलाड़ी बने थे।
साल 2008 से चेन्नई से जुड़े धोनी कुल 204 मैचों मे अपनी टीम को 121 मैचों में जीत दिला चुके हैं। 82 बार टीम को हार का सामना करना पड़ा है। वहीं जीत प्रतिशत 59.6 है। इसमें से 1 मुकाबले में नतीजा नहीं आया था।इसके अलावा उन्होंने अपनी अगुवाई में उन्होंने 4 बार चेन्नई को चैंपियन बनाया।
माही की कप्तानी में चेन्नई 12 में से 9 बार खेली फाइनल
वह चेन्नई के थाला हैं जो कभी भी गलत नहीं होता। वह टीम का ऐसा कप्तान है जिसे कभी हराया नहीं जा सकता और इसके पीछे कारण भी है क्योंकि कोई भी फ्रेंचाइजी 12 चरण में 9 बार आईपीएल के फाइनल तक नहीं पहुंची है (इसमें दो साल टीम को निलंबित भी किया गया था)।
इन दो चीजों पर आधारित थी धोनी की कप्तानी
धोनी की कप्तानी दो चीजों पर आधारित रही - व्यावहारिक ज्ञान और स्वाभाविक प्रवृति। व्यावारिक समझ यह कि कभी भी टी20 क्रिकेट के मैचों को पेचीदा नहीं बनाना। स्वाभाविक प्रवृति में इस बात की स्पष्टता कि कौन खिलाड़ी कुछ विशेष भूमिका निभा सकता है और वह उनसे क्या कराना चाहते हैं।
धोनी ने कभी भी आंकड़ों, लंबी टीम बैठकों और अन्य लुभावनी रणनीतियों पर भरोसा नहीं किया। इसलिये उन्होंने आजमाये हुए भरोसेमंद अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों पर विश्वास दिखाया और खुद ही कुछ घरेलू खिलाड़ियों को तैयार भी किया।
इनमें ड्वेन ब्रावो, फाफ डु प्लेसी हो या फिर जोश हेजलवुड या फिर सुरेश रैना, अंबाती रायुडू, रविंद्र जडेजा और रूतुराज गायकवाड़ शामिल हो। उन्हें विभिन्न भूमिकाओं के आधार पर चुना गया जिसमें वे साल दर साल प्रदर्शन करते रहें।
धोनी अगर लीग में कप्तानी के लिये तैयार रहते तो भी सीएसके प्रबंधन (विशेषकर एन श्रीनिवासन) को कोई दिक्कत नहीं होती जो उनकी बल्लेबाजी फॉर्म को लेकर भी चिंतित नहीं है जो पिछले छह वर्षों में फीकी हो रही है।
चेन्नई को थाला ने रखा सबसे ऊपर
लेकिन धोनी के लिये सीएसके के हित से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है और यह फैसला भावना में बहकर नहीं बल्कि व्यावहारिक चीजों को देखकर लिया गया है। कप्तानी भले ही रविंद्र जडेजा को सौंप दी गयी थी जिन्होंने रणजी ट्राफी में कभी भी सौराष्ट्र की कप्तानी नहीं की थी। लेकिन धोनी ने कप्तानी का पद छोड़ा पर नेतृत्वकर्ता की भूमिका नहीं छोड़ी थी।
जडेजा भले ही मैदान पर छद्म कप्तान की तरह दिख रहे थे कई बार तो खुद महेंद्र सिंह धोनी फील्ड सजाते हुए दिख रहे थे। शायद इस कारण ही टूर्नामेंट से बाहर होने की कगार पर खड़ी चेन्नई ने यह अंतिम दांव खेला है।