आईपीएल के 11वें सीजन में पहली बार DRS सिस्टम का प्रयोग होने से इसका मजा और भी बढ़ गया है। डीआरएस में मुख्य रूप से तीन तकनीकों का संगम होता है। इनके आधार पर ही तीसरा अंपायर यह तय करता है कि बल्लेबाज आउट है या नहीं। लेकिन कई क्रिकेटरों को डीआरएस के बारे में पता ही नहीं होता है कि डीआरएस कैसे लिया जाता है।
डीआरएस तीसरे अंपायर को पूरी तस्वीर दिखाता है। वह रीप्ले में बार-बार देख सकता है कि आखिर ऑन फील्ड अंपायर का फैसला सही है या नहीं। मैचों में यह सिस्टम के आने से हर टीम को एक पारी में एक रिव्यू मिलने लगा। इसके तहत क्रिकेटर अंपायर के फैसले पर रिव्यू ले सकते हैं। टी-20 क्रिकेट में पहली बार DRS का प्रयोग 2017 में पीएसएल टूर्नामेंट में हुआ था। आईपीएल में डीआरएस आने से कई मैचों के परिणाम पर भी इसका असर देखने को मिला है। डीआरएस सिस्टम से सभी टीमों के कप्तान भी इसका भरपूर लाभ उठा रहे हैं। इस सिस्टम के आने से कई बल्लेबाजों और गेंदबाजों ने इस सीजन में अनचाहे रिकॉर्ड भी अपने नाम किए। आईपीएल के कुछ मैच में तो डीआरएस के कारण हराने वाली टीम भी जीत की डगर पर पहुच गई थी।
गेंदबाज सीधे नहीं कर सकता डीआरएस की अपील : कोलकाता नाइटराइडर्स और राजस्थान रॉयल्स के बीच कोलकाता के ईडन गार्डन पर 15 मई को खेले गए मुकाबले में देखने को मिला, जहां पर कोलकाता के नीतीश राणा 21 रनों पर बल्लेबाजी कर रहे थे और ईश सोढ़ी की गेंद पर एलबीडब्ल्यू हुए। अंपायर ने उन्हें आउट नहीं दिया था, लेकिन ईश सोढ़ी ने डीआरएस मांगा। अंपायर ने उन्हें मना कर दिया और कप्तान की तरफ इशारा किया। फिर कप्तान रहाणे ने डीआरएस मांगा, जिसका फैसला आउट आया। यह वाकया बताता है क्रिकेटरों को यह मालूम ही कि गेंदबाज सीधे अंपायर से डीआरएस नहीं ले सकता है, उसे कप्तान को यह बताना होगा। बल्लेबाज अपने आउट होने के फैसले पर सीधे डीआरएस ले सकता है।
कितना समय होता है : डीआरएस का इस्तेमाल अंपायर के फैसलों की समीक्षा करने, स्लो-मोशन रि-प्ले के इस्तेमाल, माइक्रोफोन और थर्मल इमेजिंक के लिए किया जाता है। डीआरएस लेने के लिए दोनों ही टीमों के कप्तान के पास 15 सेंकड का निर्धारित समय होता है। डीआरएस लेने के लिए कप्तान कि भी सहमति का होना बहुत जरूरी होता है। बिना कप्तान की सहमति के कोई भी खिलाड़ी डीआरएस नही ले सकता है।